आडवाणी का इस्तीफा बाण
नई दिल्ली | संवाददाता: भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के सब्र का बांध आखिरकार टूट ही गया. सोमवार को उन्होंने भाजपा के संसदीय बोर्ड, राष्ट्रीय कार्यकारिणी और चुनाव समिति से इस्तीफा दे दिया. अब वे केवल भाजपा के प्राथमिक सदस्य बने रहेंगे.
अंग्रेजी में लिखे अपने इस्तीफे में उन्होंने राजनाथ सिंह को लिखा है कि नई परिस्थितियो से वे अपने को जोड़ नही पा रहे हैं. अपने इस्तीफे में उन्होंने लिखा है कि मैंने पूरी जिंदगी जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के लिए काम करने में गर्व और संतुष्टि हासिल की है. कुछ समय से मैं अपने आपको पार्टी के मौजूदा काम करने के तरीके और दिशा-दिशा के जोड़ नहीं पा रहा हूं. मुझे नहीं लगता कि यह वही आदर्शवादी पार्टी है जिसे डॉक्टर मुखर्जी, पंडित दीनदयाल जी और वाजपेयी जी ने बनाया और जिस पार्टी का एकमात्र मकसद राष्ट्र और राष्ट्र के लोग थे.
आडवाणी ने अपने पत्र में आरोप लगाते हुये कहा है कि आज हमारे ज्यादातर नेता अब सिर्फ अपने निजी हितों को लेकर चिंतित हैं. इसलिए मैंने पार्टी के तीन अहम पदों राष्ट्रीय कार्यकारिणी, संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति से इस्तीफा देने का फैसला किया है. इस पत्र को मेरा इस्तीफा माना जाए.
राजनीतिक क्षेत्रो में इसे आडवाणी के रामबाण के रूप में देखा जा रहा है. एनडीए के संयोजक शरद यादव ने कहा कि हम आडवाणी के इस्तीफे से हैरान तथा दुखी हैं. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी एनडीए में बने रहने पर नए सिरे से विचार करेगी. शरद यादव ने कहा कि हम तो एनडीए में अटल जी और आडवाणी जी के साथ ही जुड़े थे. उन्हीं के साथ और सामने सारे समझौते हुए थे. अब वह नहीं है, तो हमें देखना होगा कि आगे की राह क्या हो.
कांग्रेस के प्रवक्त्ता जनार्दन द्विवेदी ने इसे भाजपा का अंदरुनी मामला बताया. सबेरे राजनाथ सिंह ने आडवाणी से मिलकर उन्हें विस्तार से गोवा बैठक की जानकारी दी थी. उन्होंने इस बात को स्पष्ट कर दिया था कि जो कुछ हो रहा है, वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कहे अनुसार ही हो रहा है.
शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ने कहा कि हमें आडवाणी जी के मार्गदर्शन, अनुभव और नेतृत्व की जरूरत है. आडवाणी के बिना एनडीए का नेतृत्व फीका, उन्हें मनाया जाए. एनडीए का कुनबा साथ रहना चाहिए.