आदिवासियों की उपेक्षा पर उठे सवाल
रायपुर | संवाददाता: समाज से लेकर संविधान तक आदिवासियों की अनदेखी हुई है. समाज में आदिवासियों को छोड़ कर सभी को मूल अधिकार मिला हुआ है लेकिन आदिवासी समाज अब भी उपेक्षा का दंश झेल रहा है. ये विचार हैं गांधीवादी चिंतक और वरिष्ठ अधिवक्ता कनक तिवारी के. वे वरिष्ठ पत्रकार सुदीप ठाकुर की किताब ‘लाल श्याम शाह-एक आदिवासी की कहानी’ के संदर्भ में आयोजित परिचर्चा में बोल रहे थे. रायपुर नागरिक परिषद और रायपुर प्रेस क्लब द्वारा आयोजित परिचर्चा में आदिवासियों से जुड़े कई सवाल उठे और उनकी पड़ताल की कोशिश की गई.
खचाखच भरे हुये रायपुर प्रेस क्लब में पत्रकार सुदीप ठाकुर ने कहा कि दो बार विधायक और एक बार सांसद चुने गये लाल श्याम शाह एक ऐसे अलक्षित नायक थे, जो मानते थे कि संसदीय परंपरा को बेहतर करने से ही समस्याओं का हल निकलेगा. उन्होंने भारतीय राजनीति में लगभग भुला दिये गये लाल श्याम शाह को लेकर कहा कि उनकी लड़ाई आदिवासी अस्मिता और स्वाभिमान की लड़ाई थी, जिसे उन्होंने गांधीवादी तरीके से लड़ा. जब उनकी नहीं सुनी गई तो उन्होंने संसद से और विधानसभा से भी इस्तीफा दे दिया.
सुदीप ठाकुर ने आदिवासियों की बहुलता के नाम पर बनाये गये छत्तीसगढ़ के हालात को लेकर कहा कि छत्तीसगढ़ के 90 विधानसभा क्षेत्रों में से 34 क्षेत्र आदिवासियों के लिए आरक्षित थे, वह घटकर 29 रह गए. इन 17 सालों में खदानों के नये ठेके दिए गए, नए बिजली संयंत्र खुले और हजारों करोड़ के एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए लेकिन आदिवासी आज भी हाशिये पर है.
परिचर्चा में अतिथि समाजवादी चिंतक रघु ठाकुर ने कहा कि लाल श्याम शाह अपने नाम के साथ आदिवासी लिखते थे और निर्दलीय चुनाव लड़ते और आदिवासियों के हितों के लिये लड़ते और अपने पद से इस्तीफा दे देते थे. किसी भी सरकार ने उन्हें न्याय नहीं दिया. रघु ठाकुर ने कहा कि राजनीति साधन हो सकती है साध्य नहीं.
पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने कहा कि लाल श्याम शाह बेबाक वक्ता के रूप में पहचाने जाते थे. वर्षो पूर्व उन्होंने जो आशंका जाहिर की थी वह आज सच साबित हो रही है. बस्तर में आज आदिवासी शरणार्थी बन गये हैं. उनका हक दूसरों को दे दिया गया है. अरविंद नेताम ने कहा कि सरकार ने आदिवासी और जमीन को समझने की कोशिश नहीं की. पहली प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी थी जो सीधे आदिवासियों से जुड़ी. उन्होंने कहा कि सरकारों को नागपुर के रंगीन चश्मे की जगह आदिवासियों के चश्मे से देखना चाहिए, जिससे वे आदिवासियों की वास्तविक स्थिति देख सकें.
गांधीवादी चिंतक और वरिष्ठ अधिवक्ता कनक तिवारी ने कहा कि सुदीप ठाकुर की किताब में प्रस्तावना लिखते समय रामचंद्र गुहा ने जो सवाल उठाये हैं, उस सवाल से आगे सोचने की जरुरत है. श्री तिवारी ने कहा कि लाल श्याम शाह को इतिहास में आदोलनों के नायक रहे हैं, लेकिन हमने उन्हें एक ताले में बंद करके रखा, ये किताब उसी ताले की चाबी है. छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में लाल श्याम शाह के साथ जुड़ी यादों को उन्होंने साझा किया.
देश में आदिवासियों के हालात का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार किसी की भी हो हर हाल में हर काल में आदिवासियों के साथ कभी पूरा इंसाफ नही हुआ. हम लोग ये बात लाल श्याम शाह को याद करते हुए कह रहे हैं. उन्होंने महात्मा गांधी को भी याद किया और कहा गांधी जी आप कहां हैं, अगर गुजरात में हैं तो वहां से बाहर निकल जाना. गांधी जी ने खुद माना था कि यह अपराध किया है कि आदिवासियों के लिए कुछ नहीं किया. उन्होंने कहा आदिवासियों को भूत बनाया उन्हें लंगोटी पहना दी. संविधान के अंत में आखिरी अनुच्छेद जोड़ दिया, राज्यपाल को उसके अधिकार दे दिए, लेकिन राज्यपाल प्रधानमंत्री के गोदपुत्र होते हैं, उनके खिलाफ सुप्रीमकोर्ट भी कोई फतवा जारी नहीं कर सकता. कनक तिवारी ने कहा कि संविधान ने अल्पसंख्यकों को अधिकार दिया है लेकिन आदिवासी इससे वंचित हैं. संविधान सभी की बराबरी की बात करता है लेकिन हकीकत ऐसी नहीं है. कनव तिवारी ने सेज जैसे मुद्दों पर कहा कि विशेष आर्थिक क्षेत्र में भारतीय श्रम कानून लागू नहीं होने का प्रावधान जैसी स्थितियां बताती हैं कि हमारी पूरी व्यवस्था किसके हक में काम कर रही है.
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के पूर्व वित्त मंत्री रामचंद्र सिंहदेव ने कहा कि आज अंग्रेजों के समय से ज्यादा शोषण आदिवासियों का हो रहा है. राजकुमार कॉलेज में लाल श्याम शाह और हम सहपाठी रहे. उस जमाने में समाजवाद और आदिवासी उत्थान को लेकर स्व. शाह में कसक थी. उन्होंने कहा कि विकास की परिभाषा बदलनी होगी. आदिवासियों के हितों और उनकी संपत्ति की रक्षा करने कदम उठाने की जरूरत है. आदिवासियों की लंगोटी वाली तस्वीर को बदलने के लिए उनके जीवन स्तर में सुधार करते हुए उनकी बनाई गई चीजों का उपयोग करने की जरूरत है.
सिंहदेव ने कहा कि आदिवासियों को उनकी भूमि से बेदखल न किया जाए. उनके नाम पर कोई प्रोजेक्ट बने तो उनसे पूछकर उनकी जरूरत के हिसाब से हो. श्री सिंहदेव ने कहा कि किसी जमाने में उन्होंने खुद यह प्रस्ताव सरकार के लिए तैयार किया था कि आदिवासियों की जमीनों पर अगले 50-60 साल तक किसी तरह का खनन न किया जाए. आदिवासियों को बच्चे जब खुद पढ़-लिखकर तैयार हो जाएंगे तो वे अपनी जरूरत के हिसाब से जमीन में दबी संपदा का उपयोग करेंगे. लेकिन इस प्रस्ताव पर कोई बात नहीं बन सकी. आदिवासी क्षेत्रों से कोई संपत्ति न निकाली जाए, उसकी रक्षा होनी चाहिए.
कार्यक्रम का संचालन नागरिक परिषद के मनमोहन अग्रवाल ने किया, जबकि स्वागत भाषण नागरिक परिषद के ही सनत जौन ने दिया. कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन प्रेस क्लब के अध्यक्ष के के शर्मा ने किया.
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में आदिवासी नेता, राज्य के वरिष्ठ पत्रकार, शीर्ष पुलिस अधिकारी, समाजसेवी, अलग-अलग राजनीतिक संगठनों के नेता और बुद्धिजीवी उपस्थित थे.