कुलभूषण का नाम दर्ज कीजिए (उपन्यास : अलका सरावगी)
नवनीत पांडेय | फेसबुक
‘हिन्दुस्तानी लोग प्रेम करना ही नहीं जानते, सब सौदेबाजी करना जानते हैं. कहीं कुल का सौदा है तो कहीं धन का, कहीं रंग का सौदा है तो कहीं जन्मपत्री गुणों का.’
‘अपने रिश्तेदार तो अपने होते ही नहीं, क्योंकि पैसा उन्हें दूर कर देता है. अपने तबके के गरीब भी अपने नहीं होते क्योंकि वे मालिक के कर्ज़दार होते हैं.’
‘मन चल जाता है इंसान का, बड़े बड़े पैसेवाले चोरी नहीं करते क्या? बड़े बड़े घर की औरतें हीरे की पुड़िया देखने घर मंगाती है, पुड़िया में से हीरे निकाल लेती है. नेता मंत्री उद्योगपति सब चोरी करते हैं, जेल जाते हैं.’
‘कुलभूषण अपने आपको चोर नहीं मानता, मां- बाप जिस धन पर चौकीदार की तरह बैठे होते हैं दरअस्ल होता तो बच्चों का ही है, मां- बाप कोई साथ लेकर थोड़े ही जाते हैं. चोरी तो असल में बड़े लोग ही करते हैं क्योंकि उनकी कोई मजबुरी नहीं होती.’
‘ये सारी गालियां पिताजी भी देते हैं. हो सकता है ये हमारी खानदानी गालियां हों, पिताजी ने अपने दादाजी से सीखीं हों
‘मेरे पास जितने भी मारवाड़ी रोगी आते हैं उनको एक ही रोग होता है. असली घाटा लगने का रोग नहीं, जितना लाभ सोचा था, उतना नफा नहीं होने के घाटे का सदमा, सस्ता खरीदो, मंहगा बेचो, यही सीखा है न तुमने दुष्ट महाजन!’
‘कोई बंगाली कितनी भी मीठी बातें करें अपने अंदर हर मारवाड़ी को अपना दुश्मन समझता है.’
‘प्रशांत को क्या मालूम काम और देश छिन जाना क्या होता है.’
‘मेरे बचपन के दोस्त मोहम्मद इस्लाम ने मुझे घर से बाहर आवाज देकर बुलाकर कहा था, हम देश छोड़ कर जाएं तो अपना घर उसके नाम कर दें, एक बार भी नहीं कहा कि हम लोग यहां है तुम्हें भागने की जरूरत नहीं है.’
‘पार्टीशन के समय और उसके तीन साल बाद कितने ही मुसलमान रातों रात मकान मालिक हो गए, सब जानते हैं.
‘हिन्दू होना तो एक बहाना है, पलायन का, असल में तो ज़मीन जायदाद मकान हड़पना ही मकसद होता है.’
‘कश्मीर के हजरत बल से मोहम्मद साहब की दाढ़ी का बाल कैसे चोरी हो सकता है, हुआ है तो चोर को पकड़ो, हजारों मील दूर यहां बंगाल में हिन्दुओं को मारने से क्या बाल मिल जाएगा.’
‘अमला और अली का बच्चा हिन्दू होगा या मुसलमान?’
‘आदमी और औरत का प्रेम अलग- अलग जाति, धर्म और रंग के बावजूद पनपता रहा है, कितने ही बच्चे ऐसे होते हैं, जिन्हें देखकर बुजुर्ग कह उठते हैं फिरंगी का खून है क्या?’
‘मुसलमानों पर हिन्दुओं को भरोसा नहीं है. मन के अंदर न जाने सैंकड़ो साल पुराना क्या शक है जो कभी खतम नहीं होता. मौके बेमौके कोई एक दो वारदात हो जाती है और आनेवाले सौ दो सालों तक उस शक को और मज़बूत कर देती है.’
‘खेल के अंदर भी एक खेल चलता है कुलभूषण!’
‘बांग्ला मुसलमान बांग्ला भाषा और रवीन्द्रनाथ के गीतों के कारण सच्चे मुसलमान नहीं हो पा रहे, वे हिन्दुआनी है, बंगाली औरते नाचती, गाती हैं, यह इस्लाम में कुफ्र है. पाकिस्तानी बंगालियों को चावल खानेवाले, नाटे, काले, पिलपिले लोग समझते हैं. उन्हें बिंगो कह कर मजाक उड़ाते हैं यहां के इस्लाम को भी घटिया इस्लाम समझते हैं.’
‘सर्वहारा अपनी गरीबी को भी छिपाकर रखता है कि इज्जत से जी सके. तुम्हें जब भी जरूरत पड़ेगी, तुम्हारी मदद करेगा लेकिन जब उसको जरूरत होगी, तुम्हें बता भी नहीं पाएगा. उसकी हिम्मत ही नहीं होगी.’
‘हम ऐसे समय में जी रहे हैं कुलभूषण जहां मन में आयी कोई भी बात कहने से पहले सौ बार सोचना पड़ता है कि कहना ठीक रहेगा कि नहीं.’
‘बंगाल में अड्डा मारना दुनिया का सबसे जरूरी काम होता है.’
‘यहां के पुराने बंगाली ईस्ट बंगालियों के बंगाल को ऐसे कहते हैं जैसे गाली दे रहे हों.’
‘बोर्डर होती ही इसलिए है कि लड़ाई झगड़ा चलता रहे.’
‘दो देशों की सरकारों में युध्द हो रहा है तो क्या. ये लोग तो इसी देश के रहनेवाले हैं क्या सारे हिन्दू इस देश की सरकार के लिए दुश्मन बन गए हैं? या यह कि युध्द तो एक बहाना है कुछ लोगों के लिए मुफ्त में अमीर बनने का?
‘पत्रकारों का हाल जैसे उसे मालूम नहीं है, यों तो ये लोग एक शराब की बोतल में भी खरीदे जा सकते हैं पर अमूमन ये सत्ता और पैसेवालों के पिट्ठू होते हैं इन से जो चाहो लिखवा लो. पत्रकार लोग सुनते कुछ हैं, लिखते कुछ और हैं, इसीलिए बार- बार कह रहा हूं, कुलभूषण का नाम दर्ज कीजिए.’
‘लूटपात करते लोग, आग की लपटों से बचकर भागते लोग, पेट में छुर्रा मारने से खून के फव्वारे छोड़ते लोग, बलात्कार की जाती औरतें, उठाकर ले जायी गयी लड़कियां और औरतें, मारकर नदी में फेंके गए बच्चों ने कुलभूषण के दिल और दिमाग सुन्न कर दिया था. आदमी ही आदमी पर धर्म, जाति के नाम पर ऐसा अत्याचार करता है.’
‘आप तो जानते होंगे, बंगाल में कम्यूनिस्ट पार्टी हर घर में घुसी है. बाप बेटे के झगड़े से लेकर मियां बीबी के झगड़े तक पार्टी ही सुलटाती है’,रिफ्यूजी तो बेचारा तकदीर का मारा होता है.’
‘रिफ्यूजियों को आत्महत्या करने की नौबत कम ही आयी, बहुत से परिवारों में लोग दंगो में मारे गए, कई बचने के लिए बोर्डर तक आने के रास्ते में लूटपाट या तकलीफों से मारे गए, कई कैंपों में बीमारियों से मर गए, कई आधे पेट खाने से. कई रेल वैगन तोड़ने या बम फेंकने के दौरान मरे तो कई नक्सली बनकर पुलिस की गोली से मरे. जेल में पिटाई से, कई तो अपने ही नक्सली साथियों के शक की वजह से मारे गए कि पुलिस के खबरिए हैं, कितने कालेपानी अंडमान गए, कितने दंडकारण्य के जंगलों में, और कितने ही वहां से भागकर सुंदरवन गए और पुलिस की गोली से मारे गए. औरतों के दुखों की सूची तो अनंत है. आत्महत्या की नौबत कैसे आती.’
‘अरे यहां कोई बंगालिन तो मिली नहीं, इन मुसलमानों को असली मुसलमान बनाना है, हमारे बीज से इनके बच्चे पैदा होंगे, तभी तो यहां पाकिस्तान बनेगा. कोई घर छूटना नहीं चाहिए.’
‘उन्नीस सौ अड़सठ का साल कलकत्ता में नक्सल आंदोलन के चरम का साल था, ऐसा हो ही नहीं सकता था कि कलकत्ता के उत्तर में दक्षिणेश्वर काली मंदिर से शहर के बीचोंबीच चौरंगी लेन के बस रूट पर उसने कोई काण्ड नहीं देखा हो.’
‘साहब शक्ल पर मत जाइए, यह शक्ल आपकी भारत सरकार की दी हुयी है, जिसने अपने ही लोगों को मारे और लूटे जाने के लिए एक दूसरी सरकार के हवाले कर दिया.’
‘आदमी अपने परिवार का सम्मान अपने मरने के बाद भी बचाना चाहता है.’
समकालीन कथा साहित्य में जिस कथाकारा ने मेरे पाठक मन को सर्वाधिक प्रभावित किया है उस में अलका सरावगी सबसे ऊपर है, अलका सरावगी की कलम से मैं कलिकथा वाया बाईपास के समय से जुड़ा हुआ हूं, अलका जी के रचना संसार का फैला हुआ फलक, उसमें कथा समय के काल, परिवेश, समाज के शोध, यथार्थ का ऐसा बारीक पठनीयता से भरपूर लेखा जोखा विस्मित करता है, पाठक को उस समय, कथा में बहा ले जाता है. इसका प्रमाण कलिकथा वाया बाईपास से लेकर ‘गांधी और सरलादेवी चौधरी: बारह अध्याय’ तक हर कृति में मिलता है.
अभी उनकी एक और कृति ‘कुलभूषण का नाम दर्ज कीजिए’ से गुजर रहा हूं. सरलादेवी चौधरी की तरह ही यह भी एक ऐतिहासिक काल, घटना क्रम को समेटता उपन्यास है जिस में कुलभूषण जैन उर्फ गोपाल चंद्र दास, श्यामा धोबी के माध्यम से उनके बहाने विभाजन, पलायन, मुक्तिवाहिनी, पाकिस्तानी सेना की क्रूरता, पूर्वी पाकिस्तान, बंगला देश के उदय, बांग्ला, बिहारी, मुसलमानों के बीच मचे बवाल, नर संहार, यातनाओं के अलावा स्त्रियों की दयनीय दशा, मारवाड़ी बनिया दुष्ट महाजन समाज की परतें खोलता जीवंत, कारुणिक, रोंगटे खड़े कर विचलित कर देनेवाला संवेदना से भरपूर ऐसा आख्यान, दस्तावेज है कि पढ़ने के बाद पाठक काफी समय तक किकर्तव्यमूढ हो जाता है, यही एक लेखक, कृति की सबसे सफलता है.
राजस्थान के बिसाऊ गांव से उठा कुष्ठिया आ बसा एक खास धनी मारवाड़ी समाज, परिवार में जन्मा नायक कुलभूषण अपने घर में ही भाई बहनों के बीच मां- बाप, भाई – भाभी बाकी बच्चों के विपरीत इतना साधारण, काला कुरुप, उपेक्षित है कि भाई बहन छोड़, मां बाप तक से कभी प्रेम, स्नेह नहीं मिलता, उसके हर काम में कमी निकालना, उसकी नीयत पर सवाल उठाना, उस पर चोरी चकारी के इल्ज़ाम लगाने से लेकर उसके मेहनत, मजदूरी करने व आम लोगों के बीच उठ बैठ, मित्रता को भी खानदान की इज्जत के खिलाफ माना जाता है, दादा कहते थे वह सिर्फ होशियारी में ही उन पर गया था, मिट्टी से भी सोना निकाल लेगा.
घर में सबकी आंखों में किरकिरी कुलभूषण घर से बाहर मेलजोल वाला, हर परिचित का आत्मीय, प्रिय है. श्यामा धोबी के साथ उसकी मित्रता जाति पांती वाले समाज के भीतर फैली सड़ांध से साक्षात कराती है. उसकी बस कंडेक्टरी की नौकरी उसके गालों पर भाई के थप्पड़ लगाती है. लेकिन वह किसी की परवाह न करते हुए अपने मन की करता है क्योंकि श्यामा ने उसे ‘भूलनेवाला बटन’ वाला मंत्र जो दिया था, जिससे वह अपने साथ हुए हर गलत, उत्पीड़न को भूला देता है. सब भाईयों, बहन की शादी हो गयी लेकिन उसके ब्याह के बारे में बात ही नहीं होती, कौन उसे अपनी बेटी देगा? तीनों भाईयों में केवल एक भाई, एक भाभी ही उससे थोड़ा बहुत स्नेह रखते हैं.
सबका कारोबार है केवल एक वही था जो न हिन्दुस्तान का था, न पाकिस्तान का, न कोई साथी था न संगी सिवाय एक श्यामा के. एक दुर्घटना वश अमला मिलती है, उससे प्रेम करते हुए भी उसका प्रेम पाने के बारे में संदेह से घिरा रहता है, अनिल मुखर्जी, डा. कासिम, कार्तिक बाबू जैसी कितनी अंतर्कथाओं से गुम्फित अपनी पहचान के संकट से जूझता हुआ नायक कुलभूषण जैन उर्फ गोपाल चंद्र दास पत्रकार से बतियाते, अपनी आत्मकथा के परत दर परत पन्ने खोलते, कुछ पन्ने छिपाते यही चाहता है कि अखबार में उसकी कहानी में उसका नाम कुलभूषण ही दर्ज़ किया जाए, और वह यह बात बार- बार दोहराता है, याद दिलाता है कहीं पत्रकार भूल न जाए. ‘आदमी अपने परिवार का सम्मान अपने मरने के बाद भी बचाना चाहता है.’
पुस्तक के इस संस्करण की सबसे बड़ी कमी हैं इसकी बाइंडिंग, पढ़ते- पढ़ते पन्ने बिखरते जाते हैं. प्रकाशक को इस पर ध्यान देना चाहिए.