परमार के नाम पर क्या है विवाद?
रायपुर | संवाददाता: कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एम एस परमार विवादों में आ गये हैं.युवा कांग्रेस का आरोप है कि डॉ. परमार की 2015 की नियुक्ति अवैध है. हालांकि कुछ शिक्षाविदों का कहना है कि यह विवाद राजनीतिक कारणों से शुरु किया गया है.
डॉ. एम एस परमार का विवाद ऐसे समय में सामने आया है, जब एवीबीपी के विरोध और यूजीसी की अर्हता पूरी नहीं हो पाने के आरोपों के बाद राजभवन ने बिलासपुर विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर डॉ. सदानंद साही की नियुक्ति पर रोक लगा दी है.
कुलपति चयन को लेकर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का साफ निर्देश है कि कुलपति के लिये उसी उम्मीदवार को योग्य माना जाये, जिसके पास प्रोफेसर के पद पर 10 साल का कार्यानुभव हो या समकक्ष पद पर उसने कार्य किया हो.
दस्तावेज़ों की मानें तो देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में प्रोफेसर इन करियर एडवांसमेंट के पद पर कार्यरत डॉक्टर परमार को विश्वविद्यालय के क्रमांक क्रमांक स्थापना/ 3/ सीएएस/ 1/ 2013/ 1536 दिनांक 20 सितंबर 2013 के द्वारा प्रोफेसर पद पर पदोन्नत किया.
दूसरी ओर 29 अप्रैल 2015 को जब राजभवन से कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के कुलपति पद के लिये डॉक्टर परमार के नाम का आदेश जारी हुआ. इस तरह किसी भी हालत में डॉक्टर परमार का प्रोफेसर पद पर 10 साल का अनुभव नहीं साबित होता है.
हालांकि हमने इस बारे में डॉक्टर परमार से भी संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उनका पक्ष नहीं मिल पाया. दूसरी ओर कुछ शिक्षाविदों का कहना है कि डॉक्टर परमार ने विभागाध्यक्ष के तौर पर कई सालों तक काम किया है, इस लिहाज से उसे प्रोफेसर पद के समकक्ष माना जा सकता है. इस पर विवाद खड़ा करना उचित नहीं है.
इधर युवक कांग्रेस के परमीत हनी बग्गा ने कहा है कि उन्होंने इन विवादों को लेकर राज्यपाल समेत कई महत्वपूर्ण लोगों को मामले की शिकायत की है लेकिन इस मामले में कार्रवाई तो दूर, शिकायतों का जवाब भी देना जरुरी नहीं समझा गया. उन्होंने कहा कि इस मामले को लेकर वे अब कानूनी सलाह ले रहे हैं.
कौन-कौन था कुलपति की दौड़ में
2015 में जब डॉक्टर परमार की नियुक्ति कुलपति पद पर हुई थी, उस समय कुल पांच उम्मीदवार कुलपति की दौड़ में शामिल थे. इनमें डॉ. परमार के अलावा मराठवाड़ा विश्वविद्यालय के सुधीर गवाने, बीएचयू के ओमप्रकाश सिंह, पत्रकार लव कुमार मिश्रा और डॉ. बालाशंकर शामिल थे.
कुलपति की चयन समिति में छत्तीसगढ़ सरकार में पूर्व आईएएस डॉ. इंदिरा मिश्रा, वरिष्ठ पत्रकार अच्युतानंद मिश्र और यूजीसी के उपाध्यक्ष प्रोफेसर एच देवराज शामिल थे.