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भाजपा से नाराज क्षत्रिय समाज

भोपाल | एजेंसी: मध्य प्रदेश की सत्ता में क्षत्रिय समाज की हिस्सेदारी लगातार कम होती जा रही है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में क्षत्रिय समाज के प्रतिनिधि के तौर पर एक विधायक रामपाल सिंह ही मंत्री बन पाए हैं, लेकिन वह भी राजपूत नहीं, बल्कि रजपूत वर्ग से आते हैं. क्षत्रिय समाज सत्ता में कम होती अपनी हिस्सेदारी से नाखुश है.

मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने लगातार तीसरी बार जीत दर्ज की है. इस बार उसे पिछले चुनाव से भी ज्यादा मत मिले हैं. पार्टी के चुनाव जिताऊ नेता शिवराज सिंह चौहान तीसरी बार सरकार के मुखिया बनाए गए हैं. चौहान ने पहले चरण में 23 मंत्रियों को अपने मंत्रिमंडल में स्थान दिया है. इस मंत्रिमंडल में जातीय समीकरण का भी ख्याल रखने की कोशिश हुई है, मगर क्षत्रिय समाज को वह हिस्सेदारी नहीं मिली जिसकी वे अपेक्षा कर रहे थे.

राज्य सरकार के मंत्रिमंडल पर नजर दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि 23 मिंत्रयों में छह वैश्य, चार-चार पिछड़ा वर्ग व ब्राह्मण, तीन अनुसूचित जनजाति व दो अनुसूचित जाति से आते हैं. वहीं एक रामपाल सिंह का नाता क्षत्रिय समाज से है. राज्य सरकार में छह मंत्री ऐसे हैं, जिनके नाम के आगे सिंह लगा है, मगर ये क्षत्रिय समाज से नहीं हैं.

भाजपा के जीत कर आए विधायकों पर गौर करें तो पता चलता है कि 20 से ज्यादा विधायक क्षत्रिय समाज से हैं. जीतकर आए विधायकों में भंवर सिंह शेखावत, जयभान सिंह पवैया, मानवेंद्र सिंह, मालिनी गौड़ का दावा बनता था, मगर ये मंत्रिमंडल में स्थान नहीं पा सके.

अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा की युवा इकाई के प्रदेश उपाध्यक्ष दिलीप सिंह का कहना है कि राज्य की सरकार में दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में छह से आठ मंत्री क्षत्रिय समाज के हुआ करते थे, मगर भाजपा के काल में उनकी संख्या कम होती जा रही है, पिछले कार्यकाल में क्षत्रिय समाज के दो मंत्री थे मगर इस बार यह संख्या घट कर एक ही रह गई है.

उनका कहना है कि राज्य के क्षत्रिय समाज के 85 प्रतिशत से ज्यादा मतदाता ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया है, मगर सरकार में हिस्सेदारी न मिलने से समाज नाखुश है. मुख्यमंत्री को इस ओर ध्यान देकर क्षत्रिय समाज की हिस्सेदारी बढ़ानी चाहिए.

वहीं, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं विधायक डा. गोविंद सिंह भाजपा को क्षत्रिय विरोधी पार्टी करार देते हैं. उनका कहना है कि भाजपा और शिवराज ने क्षत्रियों का अपमान किया है. सिर्फ नरेंद्र सिंह तोमर ही क्षत्रिय नहीं हैं, जहां तक एक क्षत्रिय रामपाल सिंह को मंत्री बनाने की बात है तो वे भी राजपूत नहीं, बल्कि ‘रजपूत’ वर्ग से आते हैं. उन्होंने कहा कि क्षत्रिय नेताओं को अपने सम्मान की खातिर भाजपा से नाता तोड़ लेना चाहिए.

मंत्रिमंडल गठन के बाद से ही क्षत्रिय समाज की ओर से हिस्सेदारी बढ़ाए जाने की मांग जोर पकड़ने लगी है. सरकार में अभी भी 10 नए मंत्रियों को शामिल किया जा सकता है, देखना है कि अगले विस्तार में क्षत्रिय विधायक जगह पा लेते हैं या आगे भी उनकी नाराजगी जारी रहती है.

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