जयललिता के बारे में यह सब जानिये
चेन्नई | संवाददाता: जयललिता क्यों लोकप्रिय हैं, यह बता पाना मुश्किल है. एक बड़ा कारण तो जयललिता की सरकारी योजनायें हैं और दूसरा बड़ा कारण है एक कड़क प्रशासक की उनकी छवि. एक फिल्म अभिनेत्री से राजनेता तक के उनके सफर में उनकी लोकप्रियता के पीछे एक कारण और गिनाया जाता है और वह है एमजी रामचंद्रन की विरासत.
चार बार की मुख्यमंत्री जयललिता की राजनीतिक समझ को भी इसका एक बड़ा कारण माना जाता है कि अम्मा अपनी सुविधा के लिये किसी भी राजनीतिक गठबंधन को तोड़ने और किसी भी राजनीतिक गठबंधन को जोड़ने में कभी हिचकती नहीं हैं.
भ्रष्टाचार के कई आरोपों से जूझती रही जयललिता का जन्म 24 फ़रवरी 1948 को हुआ और करियर की शुरुआत 13 साल की उम्र में अंग्रेजी फिल्म से हुई. 1961 में उन्होंने ‘एपिसल’ नाम की एक अंग्रेजी फिल्म में काम किया, बाद में 1964 में प्रदर्शित कन्नड फिल्म ‘चिन्नाडा गोम्बे’ से उनकी भारतीय भाषा की फिल्मों की शुरुआत हुई.
लेकिन उनकी असली पहचान तमिल फिल्म ‘वेन्नीरादई’ से हुई. वे तमिल की पहली ऐसी अभिनेत्री कही जाती हैं, जिसने फिल्म में स्कर्ट पहन कर भूमिका निभाई थी. उन्होंने लगभग 300 से अधिक तमिल फिल्मों में काम किया. हालांकि उनके हिस्से हिंदी की चार फिल्में भी हैं लेकिन इससे उन्हें कोई खास पहचान नहीं मिली.
फिल्में बनती रहीं और वे शीर्ष अभिनेत्रियों में शुमार होती रहीं लेकिन 1982 एक ऐसा दौर रहा, जब ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के नेता और फिल्म अभिनेता एमजी रामचंद्रन ने जयललिता को अपनी पार्टी का प्रोपेगेंडा सचिव और राज्यसभा सदस्य बनाया. रामचंद्रन के साथ के उनके रिश्ते बहुत साफ हो गये थे लेकिन पार्टी में उनका काफी विरोध हुआ और अंततः जया को प्रोपेगेंडा सचिव के पद से हाथ धोना पड़ा.
1984 में रामचंद्रन की जब तबीयत बिगड़ी तो जयललिता ने मुख्यमंत्री पद हासिल करने की कोशिश की लेकिन रामचंद्रन ने जयललिता को उपनेता पद से भी हटा दिया. 1987 में एमजी रामचंद्रन के निधन के बाद जयललिता ने खुद को रामचंद्रन का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. इसके बाद पार्टी दो भागों में बंट गई. एक की नेता थीं जयललिता और दूसरी की एमजी रामचंद्रन की विधवा जानकी रामचंद्रन.
जयललिता ने पहली बार सीधे-सीधे कमान संभाली और 1989 में उनकी पार्टी ने विधानसभा में 27 सीटें जीतीं. जयललिता को नेता प्रतिपक्ष का पद मिला. 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के साथ मिल कर उन्होंने चुनाव लड़ा और वे राज्य की सबसे कम उम्र की मुख्यमंत्री बनीं. हार-जीत का यह सिलसिला लगातार जारी रहा. अब सबकी नज़र इस बात पर लगी है कि क्या जयललिता इस बार मौत को भी हरा पायेंगी ?