विविध

कश्मीर का स्पष्ट संकेत

कृषि संकट की कोई दवा नहीं
कर्ज माफी किसानों की गंभीर समस्याओं का समाधान नहीं है

आजादी के सात दशक गुजरने के बावजूद भारत के किसानों और खेतों में काम करने वाले मजदूरों के लिए सूखा, बाढ़, फसलों का नुकसान आदि समस्याएं बेहद आम बनी हुई हैं. सच्चाई तो यह है कि समय के साथ ये समस्याएं और गहरी हुई हैं. कृषि के लेकर नीतिगत खामियों की वजहों से ग्रामीण भारत का हाल बुरा है. तमिलनाडु के किसानों ने जिस तरह से दिल्ली में विरोध प्रदर्शन किया है, उससे देश में किसानी की स्थिति का अंदाज लगता है. इन लोगों ने सांप और चूहों के साथ प्रदर्शन किया. क्योंकि फसल नहीं होने की वजह से इनके पास भूख मिटाने के लिए यही उपलब्ध थे. फसल नहीं होने की वजह से इनके जिन परिजनों की जान चली गई, उनकी खोपड़ियों को लेकर ये किसान दिल्ली आए थे.

दक्षिण पश्चिम मॉनसून के सामान्य होने के बावजूद देश के कुछ हिस्सों में लगातार दो साल सूखा पड़ा. ये वैसे क्षेत्र हैं जहां उत्तर पूर्वी मॉनसून की वजह से बारिश होती है. भारत सरकार ने आठ राज्यों केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश में सूखा प्रभावित घोषित किया है. इसी साल जनवरी में तमिलनाडु सरकार ने राज्य को सूखा प्रभावित घोषित किया और साथ ही छोटे और मझोले किसानों के सहकारी बैंकों के कर्ज को माफ किया. प्रदेश के कुल किसानों में ऐसे किसानों की हिस्सेदारी 92 फीसदी है. बाद में उच्च न्यायालय ने सरकार को आदेश दिया कि वह सभी किसानों का सहकारी कर्ज माफ करे. सहकारी बैंकों के कुल कर्ज का 30 फीसदी बड़े किसानों को दिया गया था. अब तमिलनाडु के किसान केंद्र सरकार ने राहत की मांग कर रहे हैं. इनकी मांग है कि राष्ट्रीयकृत बैंकों का कर्ज भी माफ किया जाए और उनके लिए राहत पैकेज की घोषणा की जाए. हाल ही में सत्ता में आई उत्तर प्रदेश की नई सरकार ने किसानों की 36,569 करोड़ रुपये की कर्ज माफी की घोषणा की है.

इन कदमों से किसानों को थोड़ी राहत तो मिलती है लेकिन उनकी गंभीर समस्याओं का इससे कोई खास समाधान नहीं हो पाता. कर्ज माफी अधिक से अधिक किसी आपातकालीन स्थिति से निपटने की एक कोशिश हो सकती है. 2008 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने कर्ज माफी की घोषणा की थी. इससे सरकारी खजाने से 70,000 करोड़ रुपये खर्च हुए. इससे एक बार तो किसानों को थोड़ी राहत मिल गई लेकिन कोई ऐसी व्यवस्था नहीं हो पाई कि फिर से यह कर्ज के बोझ तले नहीं दबे और ग्रामीण स्तर पर कर्ज लेने से बच जाएं.

किसी को इस बात से आश्चर्य नहीं हुआ कि अक्सर चुप्पी साधे रखने वाले भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर और नाबार्ड के प्रमुख सामने आए और कर्ज माफी के नैतिक आयामों पर बोले. इन लोगों ने कहा कि इससे कर्ज लेने वाले ईमानदार लोग समय पर कर्ज चुकाने को लेकर हतोत्साहित होंगे. रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने कहा कि इससे कर्ज का अनुशासन भंग होगा और सरकार को अधिक उधारी लेनी पड़ेगी इससे कर्ज महंगे होंगे.

इस मामले में तथ्य बिल्कुल स्पष्ट हैं. नेताओं को लगता है कि कर्ज माफी से उनकी लोकप्रियता बढ़ती है. कई लोग यह मानते हैं कि अगर संप्रग सरकार ने कर्ज माफी नहीं की होती तो 2009 में वापस सत्ता में नहीं आती. कर्ज माफी और सब्सिडी से गांवों में रह रहे सबसे गरीब लोगों का कोई भला नहीं होता. सच्चाई तो यह है कि कर्ज माफी से सबसे गरीब और भूमिहीन किसानों को कर्ज से भी मुक्ति नहीं मिलती. क्योंकि इन्हें बैंक तो कर्ज देते नहीं. मजबूर ये साहूकारों से कर्ज लेने को बाध्य होते हैं. कुल मिलाकर बात यह है कि कर्ज माफी से भारतीय कृषि की ढांचागत समस्या का कोई समाधान नहीं होता. इनमें सब्सिडी का असमान वितरण, जमीनों के स्वामित्व की समस्याएं और सरकार समर्थित कृषि विस्तार योजनाओं की कमियां शामिल हैं.

कृषि संकट न सिर्फ बनी हुई है बल्कि समय के साथ और गहरी होती जा रही है. जलवायु परिवर्तन ने समस्या को और गहरा किया है. सिंचाई का कोई मजबूत ढांचा नहीं है. इससे सिंचाई के लिए जमीन के अंदर के पानी पर निर्भरता बनी हुई है. देश में जितनी जमीन पर फसल उगाई जाती है उसके आधे पर कोई निश्चित सिंचाई सुविधा नहीं है. भारत सरकार द्वारा महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के तहत कार्यदिवसों को आठ सूखा प्रभावित राज्यों में बढ़ाकर 150 दिन किया जाना एक स्वागतयोग्य कदम है. जल संरक्षण, सिंचाई ठीक करने और सूखा से बचने के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण के काम में तेजी लानी होगी.

कई दूसरी समस्याएं भी हैं जिन्होंने भारत के किसानों के बही-खाते को गड़बड़ किया है. एक तरफ खेती की लागत बढ़ती जा रही है वहीं इससे होने वाली आमदनी घटती और अनिश्चित होते जा रही है. कृषि उत्पादों का बाजार भारत और पूरे विश्व में अपर्याप्त और अस्थिर है. खेती से कम होती आमदनी और ग्रामीण इलाकों में गहराती कर्ज की समस्या को इस नाते देखा जाना चाहिए. जब तक इनसे निपटने के लिए गंभीर प्रयास नहीं किए जाते तब तक यह कुचक्र बना रहेगा. कर्ज माफी अधिक से अधिक बैंड एड का काम कर सकती है. यह एक अस्थाई राहत है. राहत के स्थाई कदम अभी उठाए जाने बाकी हैं.

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