कंगना रनौत से सवाल
कृष्णकांत | फेसबुक: प्रिय कंगना, नरेंद्र मोदी पर बनी फ़िल्म की स्क्रीनिंग के दौरान आपने मुक्त कंठ से न सिर्फ उनकी तारीफ की, बल्कि उन्हें ‘मोस्ट डिजरविंग’ कैंडिडेट बताया है. आपने उस एक धारणा को साबित किया है कि अपनी निजी कुंठा या हित के लिये लड़ रहे व्यक्ति को हम अस्मितावादी समझ लेते हैं. अगर आप फेमिनिस्ट हैं तो आपके इस फेमिनिज्म पर कुछ गंभीर सवाल उठ रहे हैं-
1- गुज़री मई से अब तक 35 लिंचिंग की घटनाओं पर प्रधानमंत्री ने मुंह तक नहीं खोला है. इस लिंचिंग कल्चर के प्रणेता आपको मोस्ट डिजरविंग कैसे लगते हैं?
2- यदि कोई अमीर घराने से नहीं है, कोई मम्मी पापा के बगैर खड़ा हुआ है तो क्या उसे स्थापित लोकतंत्र को बर्बाद करने का भी अधिकार है?
3- क्या यह तारीफ उस डर से निकली है जिसे आमिर खान बहिष्कार के रूप में भुगत चुके हैं?
4- क्या आपका फेमिनिज्म अपनी निजी लड़ाई और निजी फायदे से आगे झांक पाने में असमर्थ है?
5- आपका फेमिनिज्म उस राजनीतिक हिंदुत्व के बारे में क्या सोचता है जो पार्कों में घूमने वाली बच्चियो को पीटता है और नरेंद्र मोदी उस हिंदुत्व के राजनीतिक सेनापति हैं?
6- आप कह रही हैं कि देश को आगे ले जाने के लिए 4 साल बहुत कम होते हैं. क्या विकास की आड़ में चार साल से सिर्फ हिंदू मुस्लिम दंगा अभियान से आप अनजान हैं?
7- जो संगठन अपने चरित्र में निहायत महिलाविरोधी, मर्दवादी, सामंती होते हुए खुल कर साम्प्रदायवादी एजेंडे पर खेल रहा हो, उसका नेता आपको मोस्ट डिजरविंग कैसे लगता है?
8- अगर इतने सारे लोगों की ग़ैरन्यायिक हत्या के बाद भी आप सत्ता की तारीफ करती हैं तो इसे एक लगभग फेल हो रहे करियर की कुत्सित राजनीतिक महत्वाकांक्षा क्यों न समझा जाए?
9- जिस समय बिहार में एक बालिका गृह को घिनौना यातना घर बना दिया गया, आप उस नेता की तारीफ में कसीदे पढ़ रही हैं जिसकी वहां सरकार है. क्या आपका बगावती तेवर उन दर्जनों बच्चियों या रोज हो रहे बलात्कार से कोई सरोकार नहीं रखता.
10- रेप जोक पर ठहाका लगाने वाली कंगना रनौत की कोई गलती नहीं है. आप बरसों तक एक झूठी लड़ाई लड़ती रहीं जो वकील के सबूत मांगते ही समाप्त हो गई. वह करियर को बूस्ट देने का एक प्रोजेक्ट था, जिसे अति आशावादी स्त्रीवादियों ने स्त्रीवाद समझ लिया. परिवर्तनकामी लोगों को लड़ता हुआ इंसान खूबसूरत लगता है और आपने इसका फायदा उठाया. जैसे आप बाई चांस फेमिनिस्ट थीं, अब बाई चांस नेता बनने का प्रोजेक्ट तो नहीं लांच होने वाला है?
11- सबसे अंतिम सवाल है कि जब लिंचिंग कल्चर अपने चरम पर पहुंचेगा, जब मुस्लिम राष्ट्र की तर्ज पर सावरकर और गोलवलकर का हिन्दुराष्ट्र बनेगा, तब उसमें आपके फेमिनिज्म को कितनी जगह मिलेगी? कभी वक़्त निकालकर सोचिएगा. जिस विचारधारा की उन्मुक्त घोषणा है कि “मुसलमान, ईसाई और कम्युनिस्ट देश के दुश्मन हैं”, जिस विचारधारा में महिला विमर्श और दलित विमर्श को समाज तोड़क बताया जाता है, वहां पर स्त्री अधिकार का ढिंढोरा कौन सुनेगा?
आपका
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