कैलाश सत्यार्थी को नोबेल मिला
ओस्लो | एजेंसी: भारत के बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी ने नोबेल पुरस्कार ग्रहण किया. उनके साथ पाकिस्तान की मलाला युसूफजई को भी नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इस मौके पर ओस्लो सिटी हॉल नंबर एक में नोबेल कमेटी के नेता थॉर्बजॉर्न जागलैंड ने कहा, “इस्लाम से और क्या उम्मीद की जा सकती है कि एक लड़की जिसकी केवल एक ही मांग थी कि लड़कियां स्कूल जाएं, उसे गोली मार दी गई. मलाला का दृष्टिकोण शुरुआत से ही स्पष्ट था कि स्कूल जाना लड़कियों का स्पष्ट अधिकार है.”
उन्होंने कहा, “सत्यार्थी का मानना है कि उनके जीवनकाल में बाल मजदूरी खत्म हो. उनके इस उम्मीद को यहां हर कोई साझा कर रहा है.”
उन्होंने कहा, “दुनिया में एक अंतरात्मा का वास है, जो सभी सीमाओं से परे है.”
उन्होंने कहा, “उनका कहना है कि बचपन बच्चों का अधिकार है और उन्हें स्कूल जाना चाहिए तथा मजदूरी के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए. उन्हें अपना जीवन दूसरों के दास के रूप में शुरू नहीं करना चाहिए. उपरोक्त अंतरात्मा शब्द की अभिव्यक्ति कैलाश सत्यार्थी और मलाला से बेहतर नहीं हो सकती.”
भारत के बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी ने बुधवार को कहा कि उनके जीवन का उद्देश्य प्रत्येक बच्चे की आजादी को सुनिश्चत करना है. सत्यार्थी ने यह बात पाकिस्तान में लड़कियों की शिक्षा के लिए आवाज उठाने वाली कार्यकर्ता मलाला युसूफजई के साथ यहां शांति का नोबेल पुरस्कार ग्रहण करने के बाद कही.
ओस्लो सिटी हॉल में अपने भाषण के दौरान सत्यार्थी ने कहा, “मेरे जीवन एकमात्र उद्देश्य इस बात को सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक बच्चा आजाद हो. मैं इस बात को स्वीकार करने से इंकार करता हूं कि सभी मंदिरों, मस्जिदों, गिरजाघरों तथा प्रार्थनाघरों में हमारे बच्चों के सपनों की कोई जगह नहीं है.”
सत्यार्थी ने एक गैर सरकारी संस्था ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के जरिए बाल अधिकार के लिए 30 वर्षो से अधिक समय तक काम किया है. इस दौरान उन्होंने भारत भर में 80,000 बच्चों को बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराया है.
सत्यार्थी ने कहा, “मैंने उन बच्चों की मुस्कान में ईश्वर को देखा है, जिन्हें मैंने आजाद कराया. मैंने चुप्पी की आवाज तथा मासूमियत की आवाज का प्रतिनिधित्व किया है.”
उन्होंने कहा, “वैश्विक प्रगति में दुनिया के किसी भी कोने में एक भी व्यक्ति नहीं छूटना चाहिए. पूरी दुनिया को बेहतर बनाने के लिए आइए हम सब मिलकर काम करें. मैंने उन लाखों बच्चों का प्रतिनिधित्व किया है, जो पीछे छूट गए थे.”
उल्लेखनीय है कि अल्फ्रेड नोबेल की पुण्यतिथि पर हर वर्ष 10 दिसंबर को नोबेल पुरस्कार दिया जाता है.