लोया मामले की नहीं होगी जांच
नई दिल्ली | संवाददाता: लोया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्र जांच की मांग को ठुकराते हुये याचिका खारिज कर दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बृजगोपाल हरकिशन लोया मामले में निचली अदालत के चार जजों के बयान पर अविश्वास का कोई कारण नहीं है.
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने मामले को दुर्भाग्यजनक बताते हुये कहा कि अधिकांश सबूतों की जांच करने की जरुरत अदालत ने नहीं समझी. उन्होंने कहा कि एक कमरे में तीन जजों का एक साथ सोना, लोया के कपड़ों पर खून के निशान मिलना जैसे मुद्दों पर जांच के बजाये सुप्रीम कोर्ट का यह कहना कि बयान देने वाले दूसरे जजों को वो जानते हैं, फैसले का आधार बनाया गया.
प्रशांत भूषण ने कहा कि बहुत ही ग़लत फ़ैसला हुआ है. सुप्रीम कोर्ट के लिए काला दिन है. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने बजाय इसके कि एक स्वतंत्र जांच हो जाए इस पर पर्दा डालने का काम किया है. बावजूद इसके कि स्वतंत्र जांच की मांग हो रही थी यह फ़ैसला किस आधार पर दिया गया है?
अदालत ने कहा कि मौत प्राक्रतिक है और उसमें संदेह की गुंजाइश नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है.
गौरतलब है कि सोहराबुद्दीन शेख़ एनकाउंटर मामले की सुनवाई कर रहे सीबीआई की विशेष अदालत के जज बृजगोपाल हरकिशन लोया की 1 दिसंबर 2014 को कथित तौर पर दिल का दौरा पड़ने से नागपुर में मौत हो गई थी. वह वहां अपने मित्र की बेटी की शादी में भाग लेने गए थे. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली पीठ ने 16 मार्च को फैसला सुरक्षित रख लिया था.
बीबीसी के अनुसार जज लोया, सोहराबुद्दीन शेख के कथित फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे थे जिसमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अध्यक्ष अमित शाह भी आरोपी थे. बाद में शाह को इस मामले में बरी कर दिया था. नवंबर 2014 में जस्टिस लोया की मौत हुई थी. सोहराबुद्दीन अनवर हुसैन शेख़ की 26 नवंबर 2005 की फ़र्ज़ी मुठभेड़ में हत्या कर दी गई थी. इस हत्या के एक चश्मदीद गवाह तुलसीराम प्रजापति भी दिसंबर 2006 में एक ‘मुठभेड़’ में मारे गए.
सोहराबुद्दीन की पत्नी क़ौसर बी की भी हत्या कर दी गई थी. इन हत्याओं के आरोप गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह पर लगे. इन्हीं मामलों में बाद में उनकी गिरफ़्तारी भी हुई.
फिर सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में जाँच चलती रही. अदालत के आदेश पर अमित शाह को राज्य-बदर कर दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई गुजरात से बाहर करने, सुनवाई के दौरान जज का तबादला न करने जैसे कई निर्देश दिए.
सीबीआई के विशेष जज जेटी उत्पत ने अमित शाह को मई 2014 में समन किया. शाह ने सुनवाई में हाज़िर होने से छूट मांगी लेकिन जज उत्पत ने इसकी इजाजत नहीं दी, इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद 26 जून 2014 को उनका तबादला कर दिया गया. इसके बाद ये मामला जज लोया को सौंप दिया गया, मामले में अमित शाह जज लोया की अदालत में भी पेश नहीं हुए. एक दिसंबर 2014 को लोया की मौत नागपुर में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई.
जज लोया की जगह नियुक्त जज एमबी गोसावी ने जाँच एजेंसी के आरोपों को नामंज़ूर करते हुए अमित शाह को दिसंबर 2014 में आरोपमुक्त कर दिया था.