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नक्सलियों ने कहा-जघन्य अपराध

कई बार प्रदेश सरकार के मंत्रियों के दौरे का कार्यक्रम बना, पर नहीं पहुंचे. आखिरकार 25 जून को नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा का प्रवास कार्यक्रम बना. नेमेड़ में पहली बैठक ली. तब तक कुटरू से निकलकर नक्सलियों के खिलाफ विद्रोह भैरमगढ़ क्षेत्र में भी पैर पसार चुका था. नेमेड़ की बैठक में महेंद्र कर्मा ने घटना की जानकारी ग्रामीणों से ली. और नसीहत दी कि नक्सली बेहद खतरनाक होते हैं, जो भी करें संभल कर.

अथ: सलवा जुड़ूम
इसी बैठक में उन्होंने ग्रामीणों को बताया कि इस आंदोलन का नामकरण किया जाए. इसके बाद नाम को लेकर चर्चा होती रही. ग्रामीणों ने बताया कि गुड़ी यानी गांवों में देवी-देवता की पूजा के लिए बनाए गए स्थल में पूजा के बाद पुजारी ‘सलवा’ देता है. ‘सलवा’ यानी (शांति पानी) अनिष्ट से बचने के लिए जिसे गांव में छिड़का जाता है. (‘सलवा’ को लेकर यह तथ्य मेरी जानकारी में नहीं है कि यह सही है या गलत.) सलवा को लेकर जुड़ूम चलेगा. (जुड़ूम यानी समूह.)

मोटा मोटी मेरी समझ में जो बात आई, उसके अनुसार सलवा जुड़ूम का मतलब यही निकलता है कि क्षेत्र में अनिष्ट को रोकने के लिए समूह में लोग निकलेंगे और शांति पानी छिड़केंगे. ताकि क्षेत्र में शांति आ सके. मैं, एक पत्रकार के रूप में किसी विवादित मसले पर तथ्यों को समझना और समझाना कितना कठिन होता है, इसे बताने के लिए इसका उल्लेख कर रहा हूं.

इसी बैठक में सलवा जुड़ूम के नामकरण के पश्चात नेतृत्व चयन किया गया. महेंद्र कर्मा ने बताया कि किसी भी जिंदा व्यक्ति को अगर इसका नेतृत्व सौंपेंगे तो नक्सली सबसे पहले उसे खत्म कर डालेंगे इसलिए छद्म नाम का उपयोग करना सुरक्षित और सही होगा. लोग सहमत हुए. इसी बैठक में सोढ़ी देवा, कोरसा मंगू और कलमू दारा के नामों पर सहमति बन गई.

इस तरह से सलवा जुड़ूम का नाम और नेतृत्व के नायक 25 जून 2004 को महेंद्र कर्मा की मौजूदगी में तय किए गए थे. इसके बाद कई इलाकों में सलवा जुड़ूम की रैली और बैठकों का गवाह मैं रहा. रिपोर्टिंग के लिए यह सब करना पड़ता था.

कई बार संपादन की गलतियों का खामियाजा कैसा होता है. यह भी समझने की दरकार है. ऐसे ही एक दौर में अबूझमाड़ से सटे ताकिलोड़ में सलवा जुड़ूम की बैठक, रैली का कार्यक्रम बना. दोपहर में खबर आई कि वहां प्रेशर बम ब्लास्ट हो गया है.

इस बैठक में शामिल होने के लिए गृहमंत्री रामविचार नेताम भी पहुंचे थे. घायल जवान को हेलिकाप्टर से दंतेवाड़ा लाया गया. यहां हेलीकाप्टर के ताकिलोड़ लौटने के दौरान मैं सवार हो गया. मैं ताकिलोड़ पहुंचा. वहां से निकलने के दो रास्ते थे एक पैदल चीहका घाट होते हुए भैरमगढ़ निकलना था और दूसरा हेलिकाप्टर पर सवार होकर गृहमंत्री रामविचार नेताम के साथ रायपुर. मैंने पैदल चलना तय किया.

नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा, दंतेवाड़ा कलेक्टर केआर पिस्दा के साथ सलवा जुड़ूम की रैली में शामिल होकर पैदल ताकिलोड़ से चीहका घाट तक का सफर जिंदगी में कभी भूल नहीं सकता. करीब 15 किलोमीटर का फासला पैदल पार करना पड़ा. पहली बार नदी पार गांवों की हालत देखी.

माड़ इलाके में स्थित भैरमगढ़ ब्लाक के दर्जनों गांवों में जो कुछ देखा, उसे खबर बनाकर दूसरे दिन भेज दिया. इस खबर की एडिटिंग राजनारायण मिश्रा जी ने की. उन्होंने हैडिंग बदल दी- ‘नदी पार, धुएं में छिपे लाल चेहरे’ खबर का आशय बदल चुका था. खबर जिस तरह से संपादित की गई, इससे लगा कि नक्सलियों ने घरों में आग लगा दिए थे. जिससे धुआं उठ रहा था. खबर बाईलाइन प्रकाशित हुई.

प्रभात में नाम और…
करीब एक साल बाद 2006 में कुटरू क्षेत्र में पुलिस-नक्सली मुठभेड़ की खबर आई. वहां कैंप से बहुत सारा सामान बरामद किया गया था. इसी सामान के बीच में एक पत्रिका दिखी ‘प्रभात’. मैंने उसे यह सोचकर छिपा लिया कि दंतेवाड़ा पहुंचकर पढ़ूंगा. रास्ते में किताब को पलटना शुरू किया. एक पन्ने में देखा कि मेरी उसी खबर पर नक्सलियों ने टिप्पणी की थी. जिसमें लिखा था अगर झूठ लिखना सीखना हो तो दैनिक भास्कर के सुरेश महापात्र से सीखा जा सकता है.

खबर का अपने तरीके से विश्लेषण करने के बाद अंत में लिखा था ‘सुरेश महापात्र ने तथ्य को गलत लिखकर जघन्य अपराध किया है.’ मैं सहम गया. तब रिजनल डेस्क इंचार्ज राजेश दुबे हुआ करते थे. उन्हें बताया उन्होंने तत्कालीन संपादक दिवाकर मुक्तिबोध जी को बताया. प्रभात की कॉपी मूलत: रायपुर मंगाई गई.

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