जोगी का मुख्यमंत्री पद मोह
दिवाकर मुक्तिबोध | रायपुर: छत्तीसगढ़ राज्य विधानसभा के लिए इसी वर्ष नवंबर में होने वाले चुनाव के संदर्भ में आमतौर पर लोगों की दिलचस्पी यह जानने में नहीं है कि चुनाव भाजपा जीतेगी या कांग्रेस. उनकी दिलचस्पी के केंद्र में है अजीत जोगी व उनकी पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस.
जोगी प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हैं तथा अपनी राजनीतिक विद्वत्ता व कूटनीतिक चालों के लिए देश-प्रदेश में बेहतर जाने जाते हैं. वे अनुभवी, कद्दावर व अच्छी सूझबूझ वाले ऐसे नेता हैं जिनकी जीवटता बेमिसाल है और जो कभी हार नहीं मानते. कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने बहुतेरे आंतरिक संकटों का सामना किया तथा उससे उबर पाने में सफल रहे. अब वे कांग्रेस से अलग है तथा अपनी अलग राजनीति कर रहे हैं. वे छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के संयोजक व नेतृत्वकर्ता है.
ऐसे बहुआयामी व्यक्तित्व वाले नेता के संबंध में यह दिलचस्पी स्वाभाविक है कि वे आगामी चुनाव में क्या गुल खिलाएंगे? किस पार्टी को कितना डेमैज करेंगे? किसकी संभावना को खारिज करेंगे और स्वयं कितनी ताकत बटोरेंगे? करीब डेढ़ वर्ष पूर्व अस्तित्व में आई उनकी पार्टी अपने पहले चुनाव में विधानसभा में अपनी उपस्थिति दर्ज करा पाएगी अथवा नहीं? यदि हाँ तो संख्या बल क्या होगा? कितने प्रत्याशी चुनाव जीत पाएंगे? दिलचस्पी इस बात में भी है कि जोगी परिवार के कितने सदस्य चुनाव लड़ेंगे? जीतेंगे या हारेंगे? एक और बात, चुनाव के बाद इस पार्टी का राजनीतिक भविष्य क्या होगा? जोगी के रहते हुए भी या जोगी के बाद भी?
ऐसे ही कुछ दिलचस्प सवालों के साथ बहुसंख्यक लोग अपनी-अपनी राजनीतिक समझ व गुणा-भाग के जरिए यह राय देते हैं कि छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस अधिक से अधिक 5 से 10 सीटों तक सीमित रहेगी. अगर ऐसा हुआ और कांग्रेस व भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो आगे का खेल खासा दिलचस्प रहेगा. यानी आम चर्चाओं में दिलचस्पी का प्रमुख सबब जोगी और उनकी पार्टी है हालांकि चुनाव में ऊंट किस करवट बैठेगा, फिलहाल किसी के लिए भी कहना मुश्किल है.
अब सवाल है कि क्या छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस राज्य में उभरती तीसरी शक्ति है? प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह इसे तीसरी शक्ति का दर्जा तो देते हैं पर उसे राजनीतिक विकल्प नहीं मानते. यह स्वाभाविक है. कोई भी राजनीतिक दल अपने प्रतिद्वंद्वी को विकल्प कैसे मान सकता है? फिर छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस कोई आम आदमी पार्टी तो हैं नहीं जिसने रातों रात भाजपा व कांग्रेस का राजनीतिक विकल्प पेश कर दिया और अनोखे बहुमत के साथ दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो गई.
लिहाजा यह माना जाता है कि जोगी की पार्टी भले ही बहुमत के लायक सीटें जीतने का दावा करें पर फिलहाल प्रदेश की जनता भी उसे विकल्प के रुप में नहीं देख रही है अलबत्त्ता वह तीसरी पार्टी जरुर है जो मतदाताओं को विचार करने का मौका देती है.
वैसे देखा जाए तो एक नवोदित राजनीतिक पार्टी के लिए लोगों के मन में इस तरह के विचार को ला पाना भी काफी है. इस मायने में यह उसकी सफलता है. यह दौर क्षेत्रीय पार्टियों का है और काफी पूर्व से इसकी नींव पड़ चुकी है. कई राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों की सरकारें हैं, जो सत्ता में नहीं है, वे ताकत बटोर रही है, लिहाजा छत्तीसगढ़ में भी इसकी संभावनाएं जीवित है पर यह निर्भर करता है कि वे जनता के कितने नजदीक जा पाएंगी, उनकी कठिनाईयों में उनका कितना साथ देंगी और उनके लिए कितने जन आंदोलन खड़ा करेंगी.
मानव विकास और खुशहाली के मामले में राज्य पिछड़ा हुआ है तथा गरीबों के सामने जीवन यापन की समस्या भीषण है. विशेषकर आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र की कुल आबादी के लगभग 52 प्रतिशत आदिवासी गरीबी रेखा से नीचे है तथा बस्तर व सरगुजा के इन क्षेत्रों में तेजी से विकास कार्य करने की जरुरत है. इस दृष्टि से विपक्षी पार्टियों को जनता के बीच अपना ग्राफ बढ़ाने मौका का मौका है लेकिन राज्य में जोगी कांग्रेस के अलावा अन्य कोई ऐसी प्रादेशिक पार्टी नहीं है जो आम जनता की नजरों में चढ़ी हो हालांकि बसपा, सपा, माकपा व भाकपा जैसी राष्ट्रीय पार्टियों की स्थानीय इकाईयों ने बीते वर्षों में घनघोर प्रयास किए हैं पर राजनीतिक तौर पर सफलता उनसे कोसों दूर रही है.
छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस ही एक मात्र ऐसी पार्टी है जिसने बहुत कम समय में अपना एक अलग स्थान बना लिया है. उसे तीसरी शक्ति, भले ही वह क्षीण क्यों न हो, मान लिया गया है. अपने राजनीतिक उद्देश्य के लिए आगे चलकर रमन सिंह उसे महाशक्ति भी कह सकते हैं क्योंकि उसका ताकतवर होगा, भाजपा के लिए संजीवनी जैसा है. भाजपा की धारणा यही है कि छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस जितनी ताकतवर होगी, वह कांग्रेस को ज्यादा नुकसान पहुंचाएगी. कांग्रेस के प्रतिबद्ध तथा छितरे हुए सामाजिक वोटों का विभाजन उसकी लगातार चौथी जीत का आधार बनेगा.
डा. रमन सिंह की यह खामख्याली हो सकती है पर आसार वैसे नहीं है. भाजपा भी इस तथ्य को बखूबी जानती है कि राज्य में सत्ता विरोधी लहर अब अपने पूरे उफान पर है तथा वह पार्टी को बहा ले जा सकती है. इसीलिए भाजपा ने अपनी पूरी ताकत काफी पहले से झोंक रखी है. बस्तर की आदिवासी सीटों पर उसका विशेष ध्यान है जहां पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 12 में से 8 सीटें जीतकर बाजी मारी थी. दरअसल बस्तर व सरगुजा संभाग की सीटें तीनों पार्टियों कांग्रेस, भाजपा व जोगी कांग्रेस के निशाने पर है.
कहा जा सकता है यहाँ से जो जीता वही सिकंदर. भाजपा की तरह कांग्रेस भी उम्मीदों से भरपूर है तथा वह इस बार सरकार बनाने का नायाब अवसर मान रही है. गुजरात में राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने जैसे चमत्कारिक परिणाम दिए थे, उसे दोहराने का अवसर छत्तीसगढ़ में भी है और मध्यप्रदेश में भी. प्रदेश कांग्रेस यह मानकर चल रही है कि अब उसे छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने से कोई नहीं रोक सकता. अजीत जोगी भी नहीं.
संघर्ष त्रिकोणीय होगा, यह तय है. पर घूम-फिरकर बात फिर इसी मुद्दे पर आ जाती है कि मतदाताओं पर छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस का प्रभाव कितना पड़ेगा तथा क्या वह वोटों में तब्दील होगा. इस बारे में अभी कोई अनुमान लगाना मुश्किल है क्योंकि अभी चुनाव के लिए 10 महीने शेष है. यह काफी लंबा वक्त होता है तथा समीकरणों के बनने-बिगडऩे की पूरी गुंजाइश बनी रहती है. जोगी क्या कर पाएगें कहना मुश्किल है पर वे अपनी पार्टी की राजनीतिक हैसियत बनाने घनघोर परिश्रम कर रहे हैं. नई सोच के साथ उनके नए उपाय भी खासी चर्चा में है.
मसलन शपथ पत्र के साथ संकल्प पत्र जारी करना, खुद के चित्र के साथ चांदी के सिक्के, डिनर डिप्लोमेसी, करीब डेढ़ दर्जन प्रत्याशियों के नामों की घोषणा, वादे पूरे न करने पर जनता की अदालत में बतौर मुजरिम पेश होने का वचन देना तथा इसी तरह के कई अन्य तरकीबें जो मुख्यत: मतदाताओं को आकर्षित करने एवं पार्टी के प्रति उनका विश्वास अर्जित करने की कोशिश के रुप में है. लेकिन दर्जनों घोषणाओं व संकल्पों के साथ ही वे गलतियां भी करते जा रहे हैं. अपने आप को बतौर मुख्यमंत्री पेश करने की उनकी कोशिश उनके लिए घातक है.
अखबारी खबरों के अनुसार उन्होंने धमतरी में 14 दिसंबर 2017 को दिए गए एक बयान में कहा था कि वे स्वयं मुख्यमंत्री का पद लेना नहीं चाहते लेकिन लाखों लोगों का विश्वास उनके साथ जुड़ा हुआ है अत: अपनी पार्टी से वे ही मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे. दरअसल शहरी जनता अभी भी उनके तीन वर्ष के कार्यकाल के दौरान उनकी छवि को विस्मृत नहीं कर पाई है. लिहाजा यदि वोटर उनकी पार्टी को समर्थन देना भी चाहे तो इस घोषणा से उनके कदम ठिठक सकते हैं. जोगी ने वर्ष 2008 के चुनाव में भी ऐसी ही भूल की थी. उन्होंने जनसभाओं में अपने को भावी मुख्यमंत्री बताया था. नतीजा क्या रहा- सबके सामने है.
इसलिए बेहतर होता वे स्वयं को पीछे रखते हुए अपनी पत्नी रेणु जोगी का नाम आगे बढ़ाते जिनकी छवि निर्मल और बेदाग है. इसी तरह उनका पुत्र प्रेम भी आड़े आ रहा है. दरअसल अजीत जोगी अपने पुत्र अमित जोगी को वर्चस्व की राजनीति में स्थापित करना चाहते हैं लेकिन जनता के बीच ऐसी उनकी स्वीकार्यता नहीं है. यह भी चर्चा है कि कांग्रेस जोगी की वापसी व उनकी पार्टी के विलय पर सहमत है पर अमित जोगी को छोड़कर. जाहिर है यह शर्त स्वीकार योग्य नहीं है फलत: चुनाव के पूर्व सीटों पर समझौता हो सकता है, विलय पर नहीं. लेकिन राजनीतिक भविष्य की दृष्टि से छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के लिए यह कदम भी आत्मघाती होगा. अब एक ही रास्ता शेष है, जोगी की पार्टी चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करते हुए वोटों को सीटों में तब्दील करें. यदि ऐसा करने में कामयाब होती है तो प्रदेश की भावी राजनीति में वह न केवल तीसरे विकल्प के रुप में पहचानी जाएगी वरन सत्ता में भागीदारी भी करेगी. क्या ऐसा हो पाएगा?
* लेखक हिंदी के वरिष्ठ पत्रकार हैं.