देश विदेश

तो क्या कन्हैया वाकई बेकसूर है?

नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: क्या जेएनयू अध्यक्ष कन्हैया कुमार नाहक की ‘देशद्रोह’ के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था? क्या दिल्ली पुलिस कन्हैया को उसके बीते हुये दिन वापस दिला सकती है. यह लाख टके का सवाल इस लिये पूछा जा रहा है क्योंकि अब खुलासा हुआ है कि जेएनयू में देश विरोधी नारे बाहरी लोग लगा रहे थे. देश के प्रमुख समाचार साइटों में मंगलवार को खबर प्रकाशित हुई है कि केन्द्रीय जांच टीमों ने उऩ बाहरी लोगों की पहचान कर ली है जिन्होंने 9 फऱवरी को जेएनयू में देश विरोधी नारें लगाये थे.

वैसे पहले ही जेएनयू की हाईलेवल इंक्वारी कमेटी ने पाया था कि नारें बाहरी तत्वों ने लगाये थे.

पुलिस ने जिन चार लोगों की पहचान की है, जिनमें एक महिला भी शामिल है. बताया जा रहा है कि ये सभी कश्मीरी हैं. इन्होंने भीड़ को देश विरोधी नारे लगाने के लिए उकसाया और खुद भी नारेबाजी की. मामले की जांच जारी है इस वजह से अब तक उनके नाम उजागर नहीं किए जा रहे हैं.

सीनियर पुलिस अधिकारी ने बताया कि इस पूरे घटनाक्रम में दो भाई शामिल हैं, जिन्होंने भीड़ को गुमराह किया. इनमें से एक जेएनयू का छात्र है, जबकि दूसरा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का छात्र है. इनके अलावा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जामिला मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों की भी पहचान की गई है.

सूत्रों के मुताबिक, पुलिस ने जिन लोगों की पहचान की है उनमें से एक जर्नलिस्ट है, जो एक एनजीओ से जुड़ा हुआ है और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का छात्र रह चुका है. देश विरोधी नारे लगाने वालों में वह भी शामिल था.

यदि कन्हैया कुमार ने नारें नहीं लगाये थे तो दिल्ली पुलिस ने किसके आदेश से उसे गिरफ्तार किया था. उस पर कन्हैया कुमार के साथ दिल्ली की पटियाला हाऊस कोर्ट में मारपीट की गई.

कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी तथा उसके अंतरिम जमानत पर रिहा होने के बाद उसका राष्ट्रीय नायक के रूप में स्वागत किया गया. पूरे देश में एक माहौल बना जिसमें उंगली केन्द्र पर उठाई गई.

आपातकाल के बाद पहली बार छात्र आंदोलन ने फिर से देश में अपनी पहचान बनाई. देश के युवा जिस भगत सिंह को भूलकर सोशल मीडिया में मशगूल हो गये थे उस सोशल मीडिया में भगत सिंह की धमाकेदार इंट्री हुई. कन्हैया की तुलना भगत सिंह से हो या न हो इस पर बहस चल रही है.

कन्हैया की गिरफ्तारी पर कुछ लोगों ने इसकी तुलना आपातकाल के की. कुछ ने कहा बुद्धीजीवियों की आवाज को कुचलने का प्रयास जारी है. जाहिर है कि इससे सबसे ज्यादा नुकसान केन्द्र की छवि का हुआ है. कहीं इसका असर पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव पर पड़ा तो लेने के देने पड़ जायेंगे.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!