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वो तेरे बयान लीडर !

कनक तिवारी
अतीत के घने बादलों की खिड़की से छनकर आधी रात की रोशनी झिलमिला रही है. सतहत्तर साल पहले रात ग्यारह बजे से एक घंटे का संविधानसभा में मनाया गया जश्न इतिहास का भूकंप बन गया. उस रात बारह बजे के बजर ने हजारों बरस पुरानी सभ्यता के सदियों की गुलामी के देश का नया चेहरा आईन की हथौड़ी छेनी से वक्त की चट्टान पर उकेर दिया.

14 अगस्त 1947 की आधी रात तीन बड़े हिन्दू और एक नामालूम मुसलमान नेता के बयानों ने करोड़ों बेजुबानों और कुछ गूंगे देशवासियों की आत्मा को स्वर दिए.

अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने बिहारी भलमनसाहत और मासूमियत में इतिहास का पाथेय लाने का श्रेय ईश्वर को दिया. डॉ. प्रसाद ने नामालूम शहीदों की सुधि ली जो हंसते हंसते अंगरेजी सूली पर चढ़े. छप्पन इंच की छाती नहीं थी. फिर भी दधीचि की हड्डी थी.

बकौल राजेन्द्र प्रसाद बापू ने तीस बरस इतिहास गठरी अपने कांधों पर लादे रखी. भारतीय संस्कृति के कालजयी प्रतीक गांधी ने देश को आंधियों में पाया और फांसियों से निकाला. पहली बार दुनिया ने सच और अहिंसा के लोकव्यापी हथियारों से मुल्क को स्वराज हासिल करते देखा. उन्होंने अल्पसंख्यकों को आत्मीय भरोसा दिया सभी धर्म, संस्कृतियां, भाषाएं और सभ्यताएं नागरिकता के समान पैमाने पर वजूद रखेंगी.

जवाहरलाल नेहरू आजा़दी की गीता के संदेशवाचक बने. उन्होंने प्रतिज्ञा का प्रारूप तैयार किया. उसी शपथ को तालियों की गड़गड़ाहट ने देश के अस्तित्व के सिर माथे चंदन बनाकर लीप दिया. कवि नेहरू दुख को कविता की बुनियादी प्रेरणा समझते थे.

यूनानी समीक्षाशास्त्रियों के अनुसार सुख, हंसी, कॉमेडी, गद्य वगैरह लोकजीवन की सतह पर छितरे लक्षण हैं. मनुष्य होने की सराबोर उदात्त कथा को आंसुओं की स्याही से लिखा जाता है. जवाहरलाल की आंखों में विभाजन, हिंसा और दंगों की पृष्ठभूमि के आंसू छलछलाए. गला रुंधा.

नेहरू का ऐलान था भारत किसी पार्टी, समूह, धर्म या जाति का नहीं होगा. कंधे से कंधा मिलाकर मुसीबतजदा को हिम्मत बंधाएंगे.

जवाहरलाल के उत्तराधिकारियों ने पूर्वज ऐलान को लेकर कायरता का वोट कबाड़ूपन दिखाया. देश में हिंसक जमावड़ों की सरकारें अन्यथा नहीं बनतीं.

आधी रात का बजर बने जवाहरलाल ने कहा था किसी कौम या देश के इतिहास में ऐसे क्षण विरले होते हैं जब वह पुरानी ज़िंदगी से अलग होकर नए संसार के दरवाजे पर खड़ा हो. नया संसार गोरों की गुलामी कर रहा पंडितजी!

तालियां पिटीं जब डॉ. राधाकृष्णन और नेहरू ने गांधी को सबसे बड़ा इतिहास पुरुष बताते सम्मानजनक उल्लेख किया.

डॉ. राधाकृष्णन के इस वाक्य पर ताली पिटी कि हमारी राजनीति विभाजित है लेकिन इतिहास अविभाजित है. अशोक चक्र का राष्ट्रध्वज के प्रतीकचिन्ह के लिए चुनाव के कारण उन्होंने महान सम्राट का प्रसिद्ध अंगरेज विद्वान एच.जी. वेल्स के जुमले के जरिए उल्लेख किया.

वर्षों बाद संघ परिवार की विचारधारा के मुक्तानंद सरस्वती ने भारत के संविधान की समीक्षा करती अपनी चलताऊ किताब में अशोक पर फब्तियां कसीं. संघ परिवार को सम्राट अशोक अनुकूल नहीं लगते. संविधान सभा में आजा़दी की दहलीज पर किया गया अशोक-स्मरण उस क्षण को इतिहास बना गया.

कार्यवाही की शुरुआत सुचेता कृपलानी द्वारा वंदेमातरम गायन से हुई. किसी को ऐतराज नहीं हुआ था. आज क्यों होता है? आधी रात बजा घंटा नए भारत का सूर्योदय हुआ. उस चरित्र की रोशनी आज भी तेज है. आज नेताओं की आंखों में छुटभैयेपन का मोतियाबिंद होने से उसे यादों की आंखों से देख नहीं पाते हैं.

किसी संविधान सभा सदस्य ने 1909 में लिखी महात्मा गांधी की कृति ‘हिन्द स्वराज’ में संकेतित भारत के भविष्य का उल्लेख नहीं किया. राधाकृष्णन की पुनरावृत्ति में वर्षों बाद प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इंग्लैंड जाकर भारत को आधुनिक और शिक्षित बनाने में गोरों का खुलेआम अहसान माना.

पढ़े लिखे कहलाते लोगों में दृष्टिदोष क्यों होता है? चिंताजनक है संसद में चौदह अगस्त की हर आधी रात को पूर्वज वचनों की अनुगूंज नहीं होती.

सियासी चरित्र के कपड़े धुलकर अलगनी पर सूखते हैं. उन पर इतिहास की इस्तरी चलाने से सांसदों को अनैतिकता और अपराधों की महक से मुक्ति मिल सकती है.

वक्त घड़ी की माप से आजा़दी तो चौदह अगस्त की रात बारह बजे ही मिली है. लालकिले की प्राचीर से पंद्रह अगस्त की सुबह दिया गया नेहरू का भाषण उसका लोकव्यापी संस्करण है.

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