कश्मीर में बाढ़ की आशंका थी
श्रीनगर | एजेंसी: जम्मू एवं कश्मीर में तबाही मचाने वाली बाढ़ के बारे में राज्य के बाढ़ नियंत्रण विभाग ने चार वर्ष पहले ही चेतावनी दी थी. यह जानकारी बुधवार को एक मीडिया रपट में दी गई है. अंग्रेजी दैनिक ग्रेटर कश्मीर के मुताबिक, बाढ़ नियंत्रण विभाग ने 2010 में अपनी रिपोर्ट में चेताया था कि अगले पांच वर्षो में राज्य में भारी बाढ़ आने की आशंका है.
यह रिपोर्ट केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय को बाढ़ से निपटने के लिए अधोसंरचना विकसित करने के लिए 2200 करोड़ रुपये की परियोजना रिपोर्ट के साथ भेजी गई थी.
रिपोर्ट में आकलन किया गया था कि श्रीनगर-जम्मू राजमार्ग बह सकता है जिससे घाटी देश के शेष हिस्सों से कट जाएगी.
इसमें कहा गया था कि हवाईअड्डे तक जाने वाला इंदिरा गांधी मार्ग भी डूब सकता है जिससे घाटी हवाई मार्ग से भी कट जाएगी.
वहीं, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट, सीएसई ने बुधवार को कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में आया बदलाव जम्मू एवं कश्मीर में आई विनाशकारी बाढ़ का कारण हो सकता है. सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि मुंबई में 2005, लेह में 2010, उत्तराखंड में 2013 और जम्मू एवं कश्मीर में आई आपदाओं में अत्यधिक बारिश आम बात है, जो जलवायु में परिवर्तन का परिणाम हो सकता है.
उन्होंने कहा कि अनियोजित विकास खासकर नदियों के किनारे बेतरतीब निर्माण के कारण ही जम्मू एवं कश्मीर इस आपदा से जूझ रहा है.
उन्होंने कहा, “बीते 100 वर्षो में 50 फीसदी से ज्यादा झीलों और तालाबों का अतिक्रमण कर उसपर इमारतें और सड़कें बना दी गईं. झेलम नदी के किनारे पर भी ऐसी ही गतिविधियां देखी गईं, जिसके कारण नदी के बहाव में अवरोध उत्पन्न हुआ.”
सीएसई के उप महानिदेशक चंद्र भूषण ने कहा कि जम्मू एवं कश्मीर अत्यधिक बारिश से निपटने में सक्षम नहीं है.
उन्होंने कहा, “जम्मू एवं कश्मीर में मौसम पूर्वानुमान की कोई प्रणाली नहीं है. वहां की आपदा प्रबंधन प्रणाली भी बेहद पुरानी है.”