कहां है महंगाई पर मोदी की रिपोर्ट
नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: एनडीए ने लोकसभा चुनाव मोदी लहर पर सवार होकर जीता है. उसके बाद सरकार में आते ही उनका मुकाबला महंगाई के लहर से हो रहा है. देश की जनता ने भी मोदी लहर को महंगाई के लहर से परास्त होते महसूस किया है. बुधवार को मोदी कैबिनेट ने महंगाई से निपटने के लिये कई फैसले लिये हैं. उसके बावजूद यह तय माना जा रहा है कि महंगाई पर फौरी तौर पर राहत जरूर मिल सकती है परन्तु इससे महंगाई से स्थाई रूप से छुटकारा मिलना असंभव सा है.
इसका कारण यह है कि महंगाई को बढ़ावा देने वाले वायदा बाजार पर लगाम लगाने के लिये तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में बनी समिति ने जो अनुशंसा की थी उस पर अब भी गौर नहीं किया गया है. 2003 में कृषि जिंसो पर वायदा कारोबार शुरू करने के बाद महंगाई में इजाफा हुआ था. उसको देखते हुए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के अध्यक्षता में वर्ष 2010 में एक समिति का गठन तत्कालीन प्रधानमंत्री ने किया था.
मोदी समिति ने प्रधानमंत्री को 2011 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में वायदा कारोबार और महंगाई के बीच सकारात्मक संबंध पाया था. समिति ने महंगाई रोकने के लिए जो 20 सिफारिशें की थी उनमें सबसे प्रमुख था सभी आवश्यक खाद्य वस्तुओं के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगाना. इसके लिये मोदी समिति ने सिफारिश की कि खाद्य पदार्थो के वायदा बाजार को कुछ समय के लिये बंद कर दिया जाना चाहिये. इस रिपोर्ट की अन्य सिफारिशों में कहा गया था कि मूल्यों पर नियंत्रण रखने के लिये एक मूल्य नियंत्रण कोष की स्थापना की जाये जिससे राज्यों की मदद की जा सके तथा एपीएमसी कानून में सुधार लाया जाये इत्यादि.
महंगाई के मुद्दे पर सबसे दिलचस्प बात यह है कि व्यवहार से उदारवादी होने के बावजूद नरेन्द्र मोदी ने उदारवाद के मानस पुत्र, वायदा बाजार को महंगाई का कारण माना था. इसके लिये उनका शुक्रिया अदा किया जाना चाहिये कि उन्होंने देश में महंगाई को बढ़ावा देने वाले वायदा बाजार को ठीक-ठीक पहचाना था. जैसा कि कई वामपंथी झुकाव वाले अर्थशास्त्रियों का मानना है. यदि कड़ाई के साथ खाद्य पदार्थों के वायदा काराबार पर लगाम लगा दी जाये तो उनके महंगाई को बढ़ने से न केवल रोका जा सकता है बल्कि उसे कम भी किया जा सकता है.
असल में वायदा कारोबार का भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रवेश एक बिलकुल नए तरह का आर्थिक उपक्रम है जिसने कृषि जिंसों के मूल्यों पर गहरा असर डाला और किसानों को बेहाल करने में अपनी भूमिका निभाई है. भारतीय किसान वायदा कारोबार से होने वाले लाभ से वंचित रहा और सारा फायदा सटोरिए ले गए. ये सौदे ज्यादातर ऑनलाइन होते हैं और 95 फीसदी सौदे मुंबई स्थित दो बड़े कमोडिटी एक्सचेंजों में लिखे जाते हैं.
किसी आगामी तारीख के लिए किया जाने वाला कारोबारी सौदा, जिसमें शेष भुगतान और डिलीवरी उसी आगामी तारीख को ही होती है वायदा कारोबार के नाम से जाना जाता है. उत्पादक भविष्य में कीमतों की गिरावट की संभावना को देखते हुए वायदा कारोबार को सुरक्षा कवच के रूप में अपनाते हैं. अंतर्राष्ट्रीय खाद्य एवं कृषि संगठन ने भी स्वीकार किया था कि वायदा बाजार में सट्टेबाज कमोडिटी के दाम बढ़ाते जा रहे हैं. भारत में भी यही स्थिति है. यहां बड़े-बड़े सटोरिए बिना मेहनत के रोज लाखों-करोड़ों का वारा-न्यारा कर रहे हैं. जिसका भुगतान आम जनता को करना पड़ रहा है.
इन सब के बावजूद बुधवार को हुए मोदी कैबिनेट की बैठक ने रसोई गैस तथा केरोसिन के दामों में वृद्धि को कुछ समय के लिये टाल दिया है. प्याज के निर्यात को कम करने के लिये तथा घरेलू बाजार के लिये उपलब्ध करवाने के लिये निर्यात का न्यूनतम मूल्य बढ़ा कर 500 डॉलर प्रति टन कर दिया गया है. निश्चित तौर पर इससे प्याज के निर्यात को हत्तोसाहित किया जा सकेगा तथा भारतीय बाजार में इसके उपलब्धता बढ़ने से इसके मूल्यों को बढ़ने से रोका जा सकता है.
इसी तरह से मोदी कैबिनेट ने आलू तथा प्याज की जमाखोरी को रोकने के लिये इसके भंडारण की सीमा तय करने के लिये राज्य सरकारों को अधिकार दिये जाने वाले अध्यादेश लाने का फैसला लिया है. जमाखोरी पर रोक लगाकर मूल्यों को कृत्रिम तौर से बढ़ाने की कोशिश पर अंकुश लगाया जा सकता है यह एकदम सही बात है. लेकिन क्या आज हमारे देश में खाद्य पदार्थो की महंगाई के लिये केवल जमाखोरी तथा निर्यात ही जिम्मेदार हैं.
वास्तव में तो खाद्य पदार्थो के मूल्यों में बढ़ोतरी के लिये वायदा कारोबार जिम्मेदार है, उस पर कब रोक लगाई जायेगी. क्या मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी महंगाई को कम करने के लिये मोदी समिति ने पूर्व में जो वायदा कारोबार पर रोक लगाने की मांग की थी उसे लागू नहीं किया जा सकता है ?