कांग्रेस का अंतर्कलह रमन की ताकत
रायपुर | अन्वेषा गुप्ता: छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से कहा है रमन की मदद करने वाले उन्हें न सिखाये कि रमन सिंह से कैसे लड़ना है. परोक्ष रूप से कही गई बात से भी साफ तौर पर समझा जा सकता है छत्तीसगढ़ कांग्रेस का इशारा किसकी ओर है. जाहिर है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस अंतर्कलह से ग्रसित है तथा खुले में आकर तीर चलाने से भी परहेज कर रही है. इसीलिये कहा जाता है कांग्रेस का अंतर्कलह ही छत्तीसगढ़ में रमन सरकार का सबसे बड़ा संबल है.
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस, रमन सरकार पर आरोप तो कई लगाती है परन्तु उसे जनता के बीच ले जाकर एक जन आंदोलन खड़ा करना उसके बस में नहीं है. हाल ही में देशभर में जब कांग्रेस नेतृत्व पर अगस्ता घोटाला को लेकर हमला जारी है उस समय छत्तीसगढ़ कांग्रेस अपने राज्य हुये अगस्ता सौदे को लेकर भाजपा को घेरने में असफल रही है. जबकि कैग के पुराने रिपोर्ट में इस सौदे को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार पर सवाल किये गये थे.
कांग्रेस के उलट आम आदमी पार्टी ने रमन सरकार के लोक सुराज के खिलाफ़ रमन मुक्ति यात्रा छेड़ रखी है तथा राज्य में इसका नेतृत्व घूम-घूमकर सभायें ले रहा है अपनी बात रख रहा है. रमन सरकार लोक सुराज के माध्यम से हर साल जनता के बीच जाती है तथा चौपाल लगाकर स्थानीय समस्याओं का निराकरण भी तत्परता से करती है. उस समय कांग्रेस नेतृत्व की ओर से एक वैकल्पिक जमीनी आंदोलन खड़ा करने एवं खुद को जनता से जोड़ने के बजाये अपने अंतर्कलह को सतह पर लाया जा रहा है.
इससे बेहतर तो आम आदमी पार्टी ने राज्य के कुछ हिस्सों में शराबबंदी को लेकर आंदोलन खड़ा किया तथा गिरफ्तारियां दी. इस तरह से ‘आप’ ने अपने आप को एक सामाजिक समस्या से लड़ते हुये जनता से जोड़ा तथा गांव की महिलाओं का विश्वास हासिल किया. सीमित क्षेत्र में ही सही.
यदि कांग्रेस में अंतर्कलह न होता तो साल 2013 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भाजपा को फिर से सत्तारूढ़ होने से रोका जा सकता था. उल्लेखनीय है साल 2013 के चार राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद ही देश में मोदी लहर बननी शुरु हुई थी. छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने एक राजनीतिक मौके को गंवा दिया. गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को साल 2013 के विधानसभा चुनाव में महज 0.70 फीसदी मत ही कम मिले थे. जिससे जाहिर है कि उसे जनता के अच्छे-खासे तबके का समर्थन हासिल है और यह उसके पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले बढ़ा है.
अंतागढ़ टेपकांड के सामने आने के बाद छत्तीसगढ़ कांग्रेस कमेटी की अनुशंसा पर अमित जोगी को छः साल के लिये पार्टी से निष्काषित किया गया. परन्तु कांग्रेस आलाकमान उसी के साथ छत्तीसगढ़ कांग्रेस द्वारा प्रस्तावित अजीत जोगी पर कार्यवाही करने का साहस नहीं जुटा पाई. जाहिर है कि इससे कांग्रेस के राज्य नेतृत्व की छवि को नुकसान पहुंचा है. इससे ऐसा संदेश निकलकर आता है कि कम से कम कांग्रेस में अजीत जोगी ऐसी शख्सियत है जिस पर हाथ डालने से आलाकमान भी परहेज करता है.
आज कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर अपने सबसे कठिन दौर से गुजर रही है. एक तरफ तो वह केरल में वामपंथ से खुली लड़ाई लड़ रही है दूसरे तरफ उसने पश्चिम बंगाल मे उसी वामपंथ के साथ मिलकर चुनाव लड़ा है. सवाल चुनावी रणनीति पर नहीं उठाये जा रहे है वास्तविकता यह है कि कांग्रेस अब वो कांग्रेस न रही जिसका दावा किया जाता है. कांग्रेस को भी अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिये राज्य स्तरों पर हालात के अनुसार समझौते करने पड़ रहे है. हालांकि, बिहार में यह कोशिश सफल रही है.
बात छत्तीसगढ़ कांग्रेस के अंतर्कलह की हो रही थी. बयानबाजी की हो रही थी. अजीत जोगी के खिलाफ़ बयानबाजी करना एक बात है और कार्यकर्ताओं के बीच जाकर उनका विरोध करना और बात है. इऩ तमाम तथ्यों के बीच कांग्रेस के सामने छत्तीसगढ़ की जनता के विश्वास को जीतना एक चुनौती है. छत्तीसगढ़ में जोगी, वोरा, संगठन खेमा में बंटे कांग्रेस को एकजुट करके ही रमन सरकार को चुनौती दी जा सकती है. आपसी बयानबाजी रमन सरकार को अपराजेय बना देगी.