Indo-US परमाणु समझौते का नकारात्मक प्रभाव: पाकिस्तान
इस्लामाबाद | एजेंसी: भारत-अमरीका के बीच 6 वर्ष पुराने असैन्य परमाणु समझौते को क्रियान्वित करने से पाकिस्तान अपने-आप को दक्षिण एशिया में अलग-थलग पा रहा है. इसको लेकर पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज ने चिंता भी जाहिर की है. उल्लेखनीय है कि बराक ओबामा के भारत दौरे के बाद भारत, अमरीका का मुख्य रणनीतिक सहयोगी बनता जा रहा है जिससे पाकिस्तान की परेशानी बढ़ गई है. भारत-अमरीका के बीच परमाणु समझौते के मूर्त रूप लेने पर पाकिस्तान ने गंभीर चिंता व्यक्त की है. पाकिस्तान ने कहा है कि इस समझौते से क्षेत्रीय स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज ने मंगलवार को कहा, “राजनीतिक और आर्थिक फायदे के लिए भारत-अमरीका परमाणु समझौते के क्रियान्वयन से दक्षिण एशिया की स्थिरता पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा.”
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, अजीज ने कहा, “पाकिस्तान अपने राष्ट्रीय सुरक्षा हितों की हिफाजत करने का अधिकार सुरक्षित रखता है.”
गौरतलब है कि भारत, अमरीका के बीच छह साल पहले हुए असैन्य परमाणु समझौते के क्रियान्वयन की दिशा में सफलता सोमवार को अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुई बातचीत में प्राप्त हुई. ओबामा भारत के तीन दिवसीय दौरे पर आए थे, और उनका दौरा मंगलवार को समाप्त हुआ.
अजीज के मुताबिक पाकिस्तान अमरीका के साथ अपने रिश्तों को महत्व देता है और दक्षिण एशिया में रणनीतिक स्थिरता और संतुलन के लिए रचनात्मक भूमिका अदा करने की उम्मीद करता है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता पर अमरीका के समर्थन के बाद पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता का विरोध किया.
अजीज के मुताबिक, “जम्मू एवं कश्मीर विवाद जैसे अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के मामलों में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के उल्लंघन के लिए उत्तरदायी भारत को सुरक्षा परिषद में विशेष दर्जा मिलने का सवाल ही नहीं उठता.”
पाकिस्तान ने भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह का सदस्य बनाए जाने के सुझाव का भी विरोध किया है.
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान हमेशा से चयनात्मकता और भेदभाव की नीतियों के खिलाफ रहा है. पाकिस्तान गैर-परमाणु अप्रसार संधि देशों के साथ असैन्य परमाणु सहयोग और उनकी एनएसजी सदस्यता के खिलाफ नहीं है, लेकिन उन्हें गैर भेदभाव के सिंद्धांतों और परमाणु अप्रसार के उद्देश्य पर आधारित होना चाहिए.