भारत-चीन समझौते के दूरगामी प्रभाव
बीजिंग | एजेंसी: भारत और चीन के बीच बुधवार को सीमा रक्षा सहयोग समझौते पर बीजिंग में हस्ताक्षर हुआ. इस समझौते पर भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तथा चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग ने हस्ताक्षर किये.
भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि सीमा रक्षा सहयोग समझौता सीमा पर शांति स्थापित करने की मौजूदा प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगा. वहीं चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग ने कहा, “मैं इस बात से आश्वस्त हूं कि यह समझौता सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति लाएगा. हम इस बात पर सहमत हुए हैं कि दोनों पक्षों के नेतृत्व में सीमा पार मतभेदों को सुलझाने की क्षमता है.”
इसके अलावा दोनों देशों में सीमा पार नदियों के जल बंटवारे, सड़क परिवहन सहयोग, विद्युत उपकरणों से संबंधित समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए. बैठक में सांस्कृतिक आदान-प्रदान, चीन में नालंदा विश्वविद्यालय खोलने, दिल्ली व बीजिंग, बेंगलुरू व चेंग्डु, कोलकाता व कनमिंग के बीच सहयोग स्थापित करने को भी मंजूरी दी गई. इसके साथ ही यहां समुद्र से संबंधित गतिविधियों पर सहयोग की भी सहमति बनी.
भारत-चीन युद्ध
1962 में भारत तथा चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर एक युद्ध हो चुका है. उस वक्त भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु तथा चीन के प्रधानमंत्री चाई एन लाई थे. यह युद्ध मैकमोहन रेखा को लेकर हुई थी. इसके बाद के वर्षो में भी भारत तथा चीन के बीच तनाव तो बना रहा परन्तु आपसी सहयोग तथा शांति के लिये भी प्रयास किये गये. भारत-चीन .ुद्ध को नेहरु की रणनीतिक विफलता कहा जाता है.
वर्तमान स्थिति
वर्तमान में भारत तथा चीन को एशिया की महाशक्ति माना जाता है. दोनों ही देशों के पास सैन्य क्षमता अन्य एशियाई देशों के मुकाबले बेहतर है. आजकल चीन के साथ भारत का व्यापार अपने उत्कर्ष पर है. शायद चीन के सबसे ज्यादा उत्पाद भारत में ही बिकते हैं. भारत और चीन को उम्मीद है कि उनके बीच होने वाला आपसी व्यापार सन् 2015 तक 100 अरब डॉलर तक जा पहुँचेगा. वर्ष 2012 में दो देशों ने 66.4 अरब डॉलर का व्यापार किया.
भारत तथा चीन के हुए समझौतो से दोनों देशों के बीच न केवल व्यापार बढ़ेगा वरन् सीमा पर शांति भी कायम रहेगी. भारत-चीन के बीच यदि शांति बहाल रहती है तो एशिया के अलावा दुनिया में इन दोनों देशों का परचम लहरायेगा.