इंदिरा गांधी: डॉ. माथुर की जुबानी
नई दिल्ली | एजेंसी: अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार का आदेश देने की कीमत देश को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जान से चुकानी पड़ी. उनकी मौत को आज 30 वर्ष पूरे हो चुके हैं.
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के 30 वर्षो बाद उनके 90 वर्षीय चिकित्सक ने आंखों देखी उस घटना को इस तरह बयां किया, मानो वह कल की ही घटना हो.
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के स्वास्थ्य की 18 वर्षो से देखरेख कर रहे डॉ.के.पी.माथुर ने कहा, “रूटीन चेकअप के बाद रोजाना की तरह सुबह में उनसे बात करके अस्पताल के लिए निकला था. इसके ठीक 20 मिनट बाद उनके कार्यालय से आपात कॉल के बाद मैं वहां वापस लौट गया. उन्हें गोली मार दी गई थी.”
माथुर पूर्वी दिल्ली स्थित अपने आवास में बैठे हैं. उम्र का असर उन पर साफ दिख रहा है. इस उम्र में उनकी श्रवन क्षमता भले ही कम हो गई है, लेकिन याददाश्त यथावत है. 31 अक्टूबर, 1984 को हुई एक बड़ी राजनीतिक त्रासदी को वह इस कदर याद करते हैं, जैसे वह कल की ही घटना हो. उस घटना ने पूरे देश में भूचाल ला दिया था, जिसके परिणामस्वरूप देश में सिखों के खिलाफ बड़े दंगों को अंजाम दिया गया. देश की उस भयावह स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे परिस्थितियां देश के बंटवारे से भी बदतर थीं.
माथुर ने कहा, “उनके 1, सफदरजंग रोड स्थित आवास पर मैं हमेशा की तरह गया था, क्योंकि उनके स्वास्थ्य की जांच के लिए मुझे वहां सप्ताह के सातों दिन जाना होता था.”
माथुर ने कहा, “उस दिन भी इंदिरा गांधी हमेशा की तरह प्रसन्न तथा बेहद शांतचित्त थीं, जबकि उस दिन उन्हें दूरदर्शन पर पीटर उस्तिनोव को एक साक्षात्कार देना था, जो अपने दल के साथ पास के 1, अकबर रोड स्थित कार्यालय में उनका इंतजार कर रहे थे.”
उन्होंने कहा, “उन्होंने उस दिन मुझसे कई बातें की. मसलन, अमरीकी राष्ट्रपति रीगन टेलीविजन पर आने के पहले किस तरह की तैयारी करते थे, भुवनेश्वर से दिल्ली आते समय मैंने विमान में उनके बारे में क्या पढ़ा, मेरी छोटी बेटी ने हाई स्कूल की परीक्षा में किस तरह टॉप किया.”
माथुर ने कहा, “उसके बाद वह बगल वाले कमरे में गईं और वहां अपने निजी सेवक नाथुराम से शाम के अपने कार्यक्रम के बारे में बताया. साथ ही यह भी बताया कि विदेश यात्रा से लौट रहे राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की अगवानी करने उन्हें हवाई अड्डा जाना है. इसके बाद उन्होंने मुझे चाय पीने के लिए बुलाया.”
माथुर बताते हैं किस तरह वह उनके आवास से निकले और 10 मिनट में राम मनोहर लोहिया अस्पताल पहुंचे, जहां वह चिकित्सा अधीक्षक थे.
उन्होंने अभी अपनी गाड़ी पार्क भी नहीं की थी कि सामने से उनका सचिव दौड़ता हुआ आया और कहने लगा कि प्रधानमंत्री आवास में गोलीबारी हुई है और शायद प्रधानमंत्री को निशाना बनाया गया है.
उन्होंने कहा, “मैंने तत्काल अपनी गाड़ी स्टार्ट की और तुरंत वहां पहुंचा. सुरक्षकर्मी इधर-उधर दौड़ रहे थे. एक सुरक्षाकर्मी कह रहा था, उन्हें गोली लगी है, उन्हें गोली लगी है!”
जब माथुर परिसर के अंदर दाखिल हुए, तो पता चला आखिर हुआ क्या है. वह खून से लथपथ थीं. उनकी पुत्रवधू सोनिया गांधी अंदर से मम्मी-मम्मी चिल्लाते हुए बाहर निकलीं.
उन्हें करीब पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, एम्स ले जाया गया.
माथुर कहते हैं, “जब मैं वहां पहुंचा तो खून से लथपथ उनके शरीर को स्ट्रेचर पर पाया. मैंने उनकी नाड़ी देखी, लेकिन अब वे इस जहां में नहीं थीं.”
उनकी हत्या के बाद देश में जो भूचाल आया, पूरा देश उसका गवाह है. दंगों के दौरान केवल दिल्ली में ही तीन हजार से ज्यादा सिख मारे गए थे. उनके जख्म आज भी ताजा हैं.