कुपोषण के शिकार भारतीय युवा
नई दिल्ली | समाचार डेस्क: भारत में सभी आय वर्गो के उपभोक्ताओं के भोजन में जरूरी पोषक पदार्थो की भारी कमी है. विशेषज्ञों के मुताबिक रोजाना के भोजन में कम से कम 400 ग्राम (पांच बार भोजन में 80 ग्राम हर बार) फल और सब्जियां होनी चाहिए. लेकिन सर्वेक्षण से पता चला है कि भारत में औसतन फल व सब्जियां 3.5 बार खाई जाती है, जिसमें 1.5 बार फल और 2 बार सब्जियां होती है. युवा वर्ग में इन जरूरी चीजों को खाने की मात्रा और भी कम देखी गई. 18-25 साल आयुवर्ग के युवा केवल 2.97 बार ही रोजान फल-सब्जी खाते हैं जबकि 18-35 साल के आयु वर्ग में यह मात्रा 3.3 बार रोजाना है. यह जानकारी इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकॉनामिक रिलेशन्स द्वारा जारी सर्वेक्षण रिपोर्ट में सामने आई है.
इस सर्वेक्षण के लेखक हैं अर्पिता मुखर्जी, सौविक दत्ता और तनु एम गोयल. एकेडमिक फाउंडेशन इंडिया ने गुरुवार को इसे प्रकाशित किया.
इस रिपोर्ट की लेखिका और प्रोफेसर अर्पिता मुखर्जी का कहना है कि फल और सब्जियां प्रमुख पोषक तत्व के मुख्य स्त्रोत हैं. भारत में अभी तक खाद्य पदार्थ और पूरक आहार को लेकर कोई विशिष्ट नियमन नहीं है. इसलिए हम इस संबंध में फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड को लेकर नियामक बनाने की सिफारिश करते हैं.
आईआईएम बेंगलुरू के सहायक प्रोफेसर सौविक दत्ता का कहना है कि जब सर्वेक्षण के दौरान यह पूछा गया कि आप ताजे फल और सब्जियों का इस्तेमाल क्यों नहीं करते हैं, तो युवाओं ने बताया कि उन्होंने बताया कि ताजे व सुंदर दिखने वाले फल-सब्जियों में भी भारी मात्रा में कीटनाशक पाए जाते हैं. उन्होंने इस साल लीची का उदाहरण दिया. वहीं, लोगों की आय भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. ज्यादा आय वाले ज्यादा पोषक आहार ज्यादा बार लेते हैं.
इसके अलावा भारत में जरूरी खाद्य पदार्थो का आयात बढ़ता जा रहा है जिससे इसकी कीमत भी बढ़ती है. 2015-16 में गोभी, गाजर, केला, अन्नानास, पपीता, तरबूज और हरी मिर्च का 30 फीसदी आयात किया गया, जबकि लहसुन का शत प्रतिशत आयात किया गया. मॉनसून में कमी और सूखा के कारण भी खाद्य पदार्थो का आयात बढ़ता जा रहा है.
आईसीआरआईईआर की सलाहकार तनु एम गोयल का कहना है कि पिछले कुछ दशकों से फलों और सब्जियों के उत्पादन पर कम ध्यान दिया जा रहा है.
यह सर्वेक्षण राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद और कोलकाता में किया गया.