भारत पर भी हो सकता है हमला?
नई दिल्ली | एजेंसी: क्या विपुल जनसंख्या वाला और कमजोर स्वास्थ्य सुविधाओं वाला भारत पश्चिम अफ्रीका के चार देशों में तांडव मचा रहे इबोला जैसी महामारी का आसान शिकार हो सकता है? सरकारी और निजी क्षेत्र के अस्पतालों में काम करने वाले चिकित्सकों का मानना है कि यह संभव है.
पश्चिम अफ्रीका के जिन चार देशों में यह महामारी फैली हुई है वहां करीब 1500 लोगों की मौत हो चुकी है. जिन देशों को इसने अपनी चपेट में ले रखा है वे हैं गुएना, लाइबेरिया, सिएरा लिओन और नाइजीरिया.
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव लव वर्मा ने कहा, “मैं इस बात से सहमत हूं कि सघन रूप से बसे और अत्यधिक दबाव झेल रही स्वास्थ्य सेवाओं वाले देश भारत में इस तरह के संक्रमण का तेजी से प्रसार संभव है.”
वर्मा ने हालांकि यह भी कहा कि सौभाग्य से इबोला वायु से प्रसारित होने वाला वायरस नहीं है और यह केवल शरीर से स्रावित होने वाले तरल पदार्थ से ही फैलता है. इसलिए इसका प्रसार पर्याप्त कदम उठा कर रोका जा सकता है.
पारस अस्पताल गुड़गांव में इंटर्नल मेडिसिन के परामर्शदाता राजेश कुमार ने आईएएनएस से कहा, “मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूं कि भारत में यदि एक भी मामला सामने आता है तो यह कई गुणा होता चला जाएगा.” उन्होंने दावा किया कि भारत के अधिकांश चिकित्सकों को अभी तक इस बीमारी के लक्षणों के बारे में भी पता नहीं है.
यहां तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि इबोला की रोकथाम के लिए भारत को अपने संक्रमण नियंत्रण तंत्र और इबोला का प्रसार रोकने के लिए निगरानी तंत्र को मजबूत करना चाहिए.
इस बीमारी के भारत पहुंचने का सबसे बड़ा खतरा अधिकृत सूत्रों के मुताबिक इबोला प्रभावित इलाकों में रहने वाले 45000 भारतीय हैं. इन भारतीयों में वहां शांतिकर्मी के रूप में तैनात अर्ध सैनिक बल केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के करीब 300 जवान शामिल हैं.
गुएना में करीब 500 भारतीय रह रहे हैं. लाइबेरिया में 300 और सर्वाधिक प्रभावित सिएरा लिओन में 1200 भारतीय हैं. सबसे ज्यादा 40,000 भारतीय नाइजीरिया में हैं.
गुड़गांव स्थित कोलंबिया एशिया अस्पताल में इंटर्नल मेडिसिन विभाग के सतीश कौल ने कहा कि विमान तल और बंदरगाहों पर निगरानी की कड़ी व्यवस्था व्यवस्था होनी चाहिए.
केंद्र सरकार ने इस बीमारी से निपटने के लिए राज्यों को दिशानिर्देश भेजे हैं जिसमें कहा गया है कि यात्र से आने वाले इस बीमारी के लक्षण वाले मरीजों का समय रहते उपचार किया जाए.
पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वाइरोलॉजी को इस बीमारी से संबंधित जांच की जिम्मेदारी दी गई है और वहां इसके लिए पृथक इकाई बनाई है.