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भारत-कनाडा: ट्रूडो के साथ भी, ट्रूडो के बाद भी…

सुदेशना रुहान
कनाडा में जस्टिन ट्रूडो के प्रधान मंत्री पद से इस्तीफ़ा देते ही दो बातें उजागर हुयी. एक कि अपनी ही पार्टी के भीतर उन्होंने विश्वसनीयता खो दी. दूसरा, अंतर्देशीय मामलों में भी वे अमरीका से ज़मीन हारते नज़र आये. भारत से तो उन्होंने पहले ही संबंध बिगाड़ लिए थे. उन्हें यक़ीन था कि अमरीका साथ खड़ा है. पर भावी अमरीकी राष्ट्रपति (ट्रम्प) ने कनाडा के ख़िलाफ़ अपने पत्ते खोल दिए. पहले तो अपने संबोधन में ट्रूडो को कनाडा का गवर्नर बताया.

दूसरा, कनाडा से निर्यात शुल्क बढ़ाने पर ज़ोर दिया. ट्रम्प ने इस संभावना से भी इंकार नहीं किया कि भविष्य में कनाडा स्वतंत्र रहने के बजाय, अमरीका का एक राज्य माना जायेगा. इलॉन मस्क और ट्रम्प के साथ होते हुए ऐसे किसी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.

मगर विपक्ष इससे विचलित नहीं है. ट्रूडो के इस्तीफे से कंज़र्वेटिव पार्टी के नेता पीये पॉलीवे ने इसे आम चुनाव से पहले लिबरल पार्टी का स्वांग बताया. उनका कहना है कि कनाडा की जनता केवल ट्रूडो को नहीं, बल्कि पूरे शासन का बदलाव चाहती है. भारत भी शायद यही चाहता है.

जस्टिन की विदेश नीति, देश के हित- अहित से ऊपर है. उसमें रंगभेद, पश्चिमी श्रेष्ठता और अपनी छवि का वर्चस्व शामिल है. पार्टी की कुछ सलाह उनके कानों तक नहीं पहुँचती. यही वजह थी कि 2024 में उप प्रधान मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया. हालांकि, वे ट्रूडो को चेताने से नहीं चूकीं कि देश उनकी विदेश नीति की भेंट चढ़ रहा है.

2013 में सत्ता में आने से, अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने ट्रूडो का कालीन बिछा कर स्वागत किया था. उनकी स्वास्थ्य, आवास और उद्योग नीतियों पर चौतरफ़ा वाह वाही हुयी थी. मगर अब मीडिया ‘ट्रूडो-मेनिया’ से बाहर आ चुका है, और वो भी उनके पेंशन विरोधी और अंधाधुंध अप्रवासियों को कनाडा में बसाए जाने की नीतियों के ख़िलाफ़ है.

जामिया मीलिया में अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ डॉ. प्रेम आनंद बताते हैं “जस्टिन की नीतियां उनके पिता पीये ट्रूडो से प्रेरित हैं, जो स्वयं 80 के दशक में कनाडा के प्रधानमंत्री थे. पिता की तरह वे अपनी पसंद- नापसंद को सर्वोपरि रखते हैं. आज भारत जितना बड़ा बाज़ार है, कोई भी पश्चिमी देश, अपने संबंध हमसे ख़राब नहीं करना चाहेगा. इसीलिए भारत से जो हालिया मतभेद रहे हैं, वे ट्रूडो के हैं, कनाडा या लिबरल पार्टी के नहीं. उनके पिता के शासन काल में भी ऐसा हुआ था.”

ट्रूडो के इस्तीफ़ा देते ही भारत के हिस्से एक और ख़बर आई. कई मीडिया ग्रुप के हवाले से पता चला कि जून 2023 में हुए हरदीप सिंह निज्जर हत्याकांड के चार भारतीय आरोपी करन ब्रार, करनप्रीत सिंह, कमलप्रीत सिंह और अमनदीप सिंह को ज़मानत मिल गयी है. मगर इससे पहले की ख़बर पंजाब, इनके पिण्ड पहुंचती, कनाडा सरकार ने इस ख़बर का खंडन कर चारों के हिरासत में होने की पुष्टि की. 11 फरवरी से इन पर मुक़दमा शुरू होगा.

ये बात छुपी नहीं है कि खालिस्तानी उपद्रवों में शामिल होने के कारण निज्जर भारत से फ़रार था. उसकी दो बार कनाडा में नागरिकता की अपील खारिज हो चुकी थी. वह भारत में “वॉन्टेड”, कनाडा और अमरीका की ‘नो-फ्लाई’ लिस्ट में शामिल था. पर निज्जर की मृत्यु पर ट्रूडो ने भारत से अपने संबंधों को दांव पर लगा दिया. छह भारतीय राजनयिक निष्कासित किये गए. जवाब में भारत ने भी यही किया.

इससे पहले 2018 के अपने आधिकारिक भारत दौरे में भी ट्रूडो खालिस्तानी उपद्रवी जसपाल अटवाल के साथ एक कार्यक्रम में नज़र आये. जसपाल पर पंजाब के पूर्व मंत्री मलकियत सिंह की हत्या का आरोप है. जस्टिन मौके को भांपते हुए टेबल पर चढ़कर मयूरासन करते दिखे, मगर तब तक दोनों देश के संबंध ‘शव-आसन’ में पहुँच गए थे. पूरा कैनडीआई कुनबा इस मामले में शर्मिंदा था.

उसके बाद से भारत से कनाडा के राजनीतिक संबंध सुधरते नहीं दिखे. ट्रूडो न केवल भारत, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे पर अमरीका से भी किनारे हो गए. घेरलू मामलों में भी उनकी चुनौतियाँ ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही. 2013 से अब तक के कार्यकाल में ट्रूडो की लोकप्रियता सबसे निचले स्तर पर है. आवास, स्वास्थ्य और अप्रवासी मुद्दों पर विपक्ष के कंज़र्वेटिव पार्टी ने उन्हें वैसे ही घेरा हुआ है.

लिबरल पार्टी जो अल्पमत में थी, उसे न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) का समर्थन था. इसके नेता और ख़ालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह का प्रभाव, बल्कि दवाब जस्टिन पर साफ़ देखा जा सकता था. 2019 में किसान आंदोलन पर भारत विरोधी बयान और हालिया कटु संबंध, एनडीपी के समर्थन का नतीजा है.

अक्टूबर 2025 में कनाडा में आम चुनाव है, जिसमे कंज़र्वेटिव पार्टी आगे दिख रही है. चुनाव तक लेबर पार्टी से कोई भी प्रधान मंत्री रहे, आम चुनाव में हारने का ठिकरा ट्रूडो के सिर ही फटेगा. और अगर कयासों के विपरीत पार्टी जीत गयी, तो जीत का श्रेय ट्रूडो के इस्तीफ़े को जाएगा.

फिलहाल पार्टी के नए नेता और प्रधान मंत्री के तौर पर भारतवंशी अनीता आनंद के अलावा क्रिस्टिया फ्रीलैंड और मार्क कार्नी का नाम सामने आ रहा है. लेकिन सवाल है कि कैनडीआई गुल्लक में भारत के लिए क्या?

ट्रूडो का हटना, भारत और कनाडा के संबधों को एक नयी उम्मीद है. प्रधान मंत्री जो भी और जिस भी पार्टी से हो, भारत जैसा बाज़ार कोई खोना नहीं चाहेगा. चुनाव से पहले लिबरल, विदेश नीतियों में घिरने से बचेंगे. जब एक तरफ़ मुट्ठीभर अलगाववादी और दूसरी तरफ शांतिप्रिय और समृद्ध सिख समुदाय जैसा बड़ा वोट बैंक हो, तो मुद्दों का चुनाव बहुत मुश्किल नहीं होगा.

उम्मीद करें, कि ट्रूडो की ग़लतियों की धूल साफ़ करते हुए, कनाडा सरकार घरेलू और अंतर्देशीय मामलों में लोगों को लुभाने में सफल रहेगी. बाकि अक्टूबर का महीना बताएगा.

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