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देश तो लड़ेगा लेकिन किससे किससे?

कनक तिवारी | फेसबुक

दुनिया का सबसे बहुसंख्यक लोकतांत्रिक देश भारत है. अपनी आज़ादी के बाद पहली बार वह अधिक संकट में है. तीन चार माह से कोरोना वायरस की भयानक आवक के कारण देश का आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक जीवन भी टूट फूट गया है. उम्मीदज़दा लाखों मासूम लोग सरकारी लापरवाही, नाकामी, नासमझी बल्कि हेकड़ी के भी कारण बीमारी, गुमनामी, तकलीफों और मौत तक के आगोश में चले जा रहे हैं.

बिका हुआ बेईमान मीडिया उद्योग सरकारी विज्ञापन कमाने और तरह तरह की दो नम्बरी रियायतें पाते प्रथम पृष्ठ पर मंत्रियों के मुस्कराते चेहरे छापता जनता के हताश घावों पर नमक छिड़कता रहा है. कोरोना के कारण लाखों घरों में दो वक्त की रोटी भी मयस्सर नहीं है. यूरो अमेरिकी पूंजीवाद के गर्भगृह से उपजे नारे विकासशील देशों की छाती पर कील की तरह गाड़े जा रहे हैं.

मौजूदा निज़ाम से सार्थक तो कुछ नहीं हो पा रहा है. अलबत्ता देश की जनता के गाढ़े परिश्रम की कमाई लूटते, उस पर टैक्स का भार बढ़ाते अमीरों के चोचलों में कहकहा लगा रहा हैं. विकास का ढकोसला कोरोना की मार के सामने पानी का बुलबुला बनकर फूट गया है.

दूसरी भयानक मार पड़ोसी देश चीन के हमले के कारण झेलनी पड़ रही है. सरकारी डींगें मारी जा रही थीं कि पाक अधिकृत कश्मीर जेब में डालकर ले आएंगे. जिससे राजनीतिक रंजिश होती, उसे ‘पाकिस्तान जाओ‘ का फतवा भी दे रहे थे. मातृ संगठन संघ कह रहा था भारत की सेना को मुस्तैद होने में छः माह लग सकता है. हमारे स्वयंसेवक दो दिन में सरहद के किसी मोर्चे पर डट सकते हैं.

चीनी राष्ट्रपति छिपाकर भारत की पीठ पर मारने के लिए छुरा भी लाया था. मेजबान प्रधानमंत्री उसके इश्क में ग़ाफ़िल होकर झूम झूमकर अंतरंगता की कहानी सुना रहे थे. सामने बैठे आलिम फाज़िल नौकरशाह, नेता, उद्योगपति भविष्य के आक्रमण से बेखबर तालियां बजाते अपने अपने स्वार्थ के सपने बुनते रहे.

चीन ने इधर कई वर्षों में भारतीय अर्थनीति और बाजार पर अपना शिकंजा नेताओं की लापरवाही के कारण कस लिया था. वह प्रधानमंत्री से मुलाकातों में सब कुछ समझ गया था. भारतीय नेता उसे समझ नहीं पाए. सरकार तो जनता से सत्य और तथ्य छुपाती रही. सच आखिर उजागर हो गया.

चीन को ठेके अब भी पूरी तौर पर निरस्त नहीं हुए हैं. चीनी मोहब्बत के जोश में सब कुछ ‘खुल जा सिमसिम‘ था. अब यक ब यक ‘बंद हो जा सिमसिम‘ कहा जाए तो कैसे सफल होगा. पांच और सात सितारा होटलों में बैठकर काले धन के बादशाहों से गलबहियां करते आसमान की बुलंदियों तक लोकप्रियता के ख्याली परचम मीडिया की सुर्खियों में लहराए जा रहे थे.

रूस से रिश्ते बिगाड़े. अकेले हिन्दू राष्ट्र रहे नेपाल से हिन्दुत्व के रिश्ते बिगड़े. भूटान भी असमंजस में आ गया है. श्रीलंका से लगाव कम है. म्यांमार से चलताऊ रिश्ता है. पाकिस्तान और चीन मिलकर आगे शातिराना हरकतें नहीं करेंगे. इसकी गारंटी कौन ले सकता है.

पहली बार भारत की विदेश नीति अमेरिका की गोदपुत्र बन गई है. अमेरिका का मौजूदा प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप ‘एकमेवो द्वितीयो नास्ति‘ मुहावरे का तुनकमिजाज़, मुंहफट और दुश्चरित्र तर्जुमा है. वह भारत आकर सौगात में कोरोना वायरस की लंबी चैड़ी खेप लाया. अहमदाबाद आज उसके नाम से मर्सिया गा रहा है.

जनता को बेवकूफ बनाने का नाटक चीन ने समझ लिया था. लेकिन भारतीय नहीं समझ पाए थे. अपने उद्योगपति मित्रों की मदद करते चीन और पाकिस्तान को शत्रु कहते भी उनको अरबों रुपयों के ठेके दिलवाए गए. देश की जनता के संकट के बावजूद उन ठेकों की रक्षा की जा रही है.

कोरोना वायरस की विभीषिका के दौर में भी जहां गरीब मर रहे हैं, ठीक वहीं अरबों रुपयों के कोयला ब्लॉक नीति बदलकर आवंटित कर दिए जाएंगे. जंगलों को नेस्तनाबूद करते पेड़ भी काटने के ठेके दे दिए जाएंगे. लूट के इस अभियान में हुक्काम के चेहरे पर शिकन नहीं है. यह छद्म जनता पढ़ नहीं पाती है. जनता मुग्ध है, मासूम है, पस्तहिम्मत है, भ्रम में है, सपने के हिंडोले में झुलाई जा रही है. यह समय कॉरपोरेटी रक्तपिपासु कहे गए उद्योगपतियों के पक्ष में धन कबाड़ने का है.

चीन भूत या पिशाच नहीं है जिसे फूक मारकर किसी ओझा, गुनिया या तांत्रिक के जरिए भगा दिया जाए. वह संसार की सबसे बड़ी सामरिक, सांख्यिकी, व्यापारिक और कूटनीतिक शक्तियों में एक होने के साथ जल्लाद तबीयत का देश है. उसने हर मुल्क का मुगालता दूर कर दिया है. आज़ादी की दहलीज़़ पर भारत की आर्थिक हालत बहुत कमजोर थी. लेकिन आज़ादी के सिपहसालारों ने देश को हिम्मत और सूझबूझ के साथ धीरे धीरे जनवादी कारवां में बदलते कदम-ब-कदम चलना सिखाया.

‘पी0 एल0 480 का बदनाम समझौता‘, ‘सड़ा गेहूं‘, ‘खारिज दवाइयां‘, ‘लुंजपुंज हथियार‘, ‘आर्थिक कर्ज़‘ और ‘सोना तक गिरवी रख देने की स्थितियां‘ पिछले पचास साठ वर्षों में आती रही हैं. फिर भी जनता का हौसला नेताओं की मर्द और आश्वस्त कदकाठी के कारण नहीं टूटा था. सांप्रदायिक ताकतों ने तब हिन्दू मुसलमान का ज़हर बोते कत्लेआम और देश के विभाजन का मौसम उगाया था.

आज ज्यादा शक्तिशाली और फरेबी इरादे सत्ता से दूर नहीं हैं. जनता इसके बावजूद हौसलामंद है. उसे लगता है कुल मिलाकर उसका भविष्य स्वावलंबन और उसकी सरकार को सहने की विश्व में सबसे ज्यादा आदत के कारण संदिग्ध नहीं होगा.

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