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घड़ी का काम करती तोप

रायसेन | एजेंसी: वक्त भले बदल गया हो, मगर परंपराएं अब भी कायम हैं. भोपाल के नवाबों के काल में रमजान के महीने में सहरी व रोजा इफ्तारी का वक्त बताने के लिए शुरू हुई तोप चलाने की परंपरा अब भी कायम है. मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में रमजान के माह में तोप की गूंज घड़ी का काम करती है.

नवाबों के काल में भोपाल के अलावा रायसेन, सीहोर में रमजान के महीने में दरगाह व किले आदि से सहरी व इफ्तारी का वक्त बताने के लिए तोप से गोला चलाया जाता था. रियासतों के विलय के बाद कई स्थानों पर यह परंपरा खत्म हो गई, क्योंकि तोपें प्रशासन व नवाबों के वंशजों के कब्जे में चली गईं, मगर यह परंपरा आज भी रायसेन जिले में कायम है.

रायसेन जिले की पहाड़ी पर स्थित ईदगाह शरीफ से रमजान के महीने में आज भी तोप से छूटे गोले की आवाज सहरी व इफ्तारी का वक्त बता देती है. कलेक्टर जे.के. जैन बताते हैं कि रमजान को ध्यान में रखते हुए जिला प्रशासन एक माह के लिए इस तोप का लाइसेंस जारी करता है. साथ ही जरूरत के मुताबिक, बारूद आवंटित की जाती है.

तोप चलाने में उपयोग में आने वाली बारूद का खर्च आज भी भोपाल की मस्जिद कमेटी उठाती है, क्योंकि रियासत काल में भोपाल के अलावा सीहोर व रायसेन की मस्जिदों की व्यवस्था की जिम्मेदारी भोपाल मस्जिद कमेटी पर रही है. इस परंपरा को अभी भी कायम रखा जा रहा है.

रायसेन में रमजान के माह में तोप चलाने का काम पप्पू भाई करते हैं. उनका परिवार यह काम कई पीढ़ियों से करता आ रहा है. पप्पू भाई सुबह और शाम को तोप के जरिए गोला छोड़कर रोजा शुरू करने व रोजा खोलन के वक्त की सूचना देते हैं.

पप्पू भाई बताते हैं कि तोप से छोड़े जाने वाले गोले की आवाज लगभग 15 किलोमीटर तक सुनाई देती है और इस आवाज को सुनकर रोजेदार रोजा शुरूकरते व खोलते हैं. उन्हें घड़ी देखने की जरूरत नहीं पड़ती.

बहरहाल, रमजान के महीने में तोप चलने से नवाबों के काल की याद ताजा हो जाती है और वर्षो से चली आ रही परंपरा के बने रहने का संदेश भी मिल जाता है.

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