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हाइड्रोजेल से कम पानी में होगी बेहतर खेती

रायपुर|संवाददाताः रबी फसल उगाने वाले किसानों को हमेशा पानी की समस्या से जूझना पड़ता है. समय पर पर्याप्त पानी नहीं मिलने से फसलें मर जाती हैं. इससे किसानों को बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है.

ऐसे किसानों को अब ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है. क्योंकि हाइड्रोजेल तकनीक का उपयोग करके कम पानी में भी बेहतर खेती कर सकते हैं.

इस तकनीक से बार-बार सिंचाई की समस्या से किसान बच सकते हैं और बेहतर उत्पादन हासिल कर सकते हैं.

यह तकनीक धान, गेहूं, सरसो सहित सभी प्रकार की फसलों के लिए वरदान साबित हो रही है.

कृषि वैज्ञानिकों का भी मानना है कि जहां पानी की कमी है या सिंचाई के पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं हैं, वैसे जगह के लिए हाइड्रोजेल का इस्तेमाल बड़ा कारगर साबित हो सकता है.

छत्तीसगढ़ में जल स्तर लगातार घट रहा है. गर्मी के दिनों  में तो जल स्तर काफी नीचे चला जाता है. जिस वजह से अब बोर भी जवाब देने लगे हैं.

जबकि रबी फसल बोर के पानी के सहारे ही की जाती है. जब बोर से ही पर्याप्त पानी आना बंद हो जाता है तो किसान परेशान हो जाते हैं.

ऐसे में उनके सामने फसल बचाने की चुनौती खड़ी हो जाती है. इन्हीं परिस्थितियों से निपटने के लिए हाईड्रोजेल तकनीक पर जोर दिया जा रहा है.

इस तकनीक से वर्तमान सिंचाई की तुलना में महज 30 फीसदी पानी में ही फसल की अच्छी तरह से पैदावार हो जाएगी.

हाइड्रोजेल लंबे समय तक धान या अन्य पौधों की जड़ों में नमी बनाकर रखता है. साथ ही खेतों में पानी को ज्यादा दिनों तक स्टोर करके भी रखता है.

प्रदेश में घटते जल स्तर को देखते हुए हाइड्रोजेल तकनीक कृषि में नई क्रांति ला सकती है.

इस तकनीक का उपयोग अभी तक पंजाब, हिरयाणा, दिल्ली जैसे राज्यों में सर्वाधिक किया जा रहा है.

बारिश के पानी को स्टोर करने की क्षमता

वैज्ञानिकों के अनुसार हाइड्रोजेल में पानी सोखने की जबरजस्त क्षमता है. यह बारिश के पानी को ज्यादा दिनों तक खेतों में संग्रहित रखता है.

इसी तरह खेतों की पुनः बारिश या सिंचाई होती है, तो हाइड्रोजेल के दाने दुबारा पानी को सोख लेते हैं.

इसके बाद पौधे की जरूरत के मुताबिक फिर पानी रिसकर पौधों को जीवित रखता है. पानी रिसने से खेत में नमी को भी बनाए रखता है.

वैज्ञानिकों का कहना है कि खाद के दाने के आकार के हाइड्रोजेल अपने आकार का 400 गुना पानी अपने अंदर संचित कर लेता है.

हाइड्रोजेल 25 दिनों तक पौधे को पानी नहीं मिलने पर भी पानी की आपूर्ति करते रहते हैं.

एक एकड़ में एक किलो की आवश्यकता

वैज्ञानिकों के मुताबिक एक एकड़ खेत के लिए महज एक से डेढ़ किलोग्राम हाइड्रोलेज के दाने की जरूरत होती है.

इसकी कीमत भी अधिक नहीं है. हाइड्रोजेल की कीमत प्रति किलोग्राम 1000-1200 रुपए है.

भारतीय कृषि अनुसंधान द्वारा विकसित हाइड्रोजेल साधारण खाद के आकार का होता है. यूरिया खाद से थोड़ा बड़ा होता है.

हाइड्रोजेल के दाने का छिड़काव खेतों में सूखा या गीला दोनों तरह से प्रयोग किया जा सकता है. इससे मिट्टी पर किसी तरह का दुष्प्रभाव भी नहीं पड़ता है.

धान के फसल में हाइड्रोजेल का सूखा दाना रोपाई के समय खेतों में छिड़काव किया जाता है.

इसके बाद जब फसल की पहली सिंचाई की जाती है तो पूरा हाइड्रोजेल पानी को सोखकर 10 मिनट में ही फूल जाता है और जैल में बदल जाता है.

जैल में बदला यह हाइड्रोजेल तेज गर्मी या तापमान से सूखता नहीं है. यह पौधों की जड़ों से चिपका रहता है. इस लिए पौधा अपनी जरूरत के हिसाब से पानी सोकता रहता है.

क्या है हाइड्रोजेल

हाइड्रोजेल एक दानेदार कैप्सूल के रूप में उपलब्ध कृषि इनपुट है. इसे फसल बुवाई के समय मिट्टी में डाला जाता है.

वैज्ञानिकों ने हाइड्रोजेल का विकास ग्वारफली से किया है, जो पूरी तरह से प्राकृतिक पॉलिमर है.

इसमें पानी को सोख लेने की क्षमता होती है. मगर यह पानी में घुलता नहीं है.

यह मिट्टी में घुले बिना पानी को सोखकर अपने अंदर जमा करती है और जरूरत के समय धीरे-धीरे पौधों को जड़ों में पानी छोड़ती है.

इसके अलावा हाइड्रोजेल बायोडिग्रेडेबल होता है, जिसके कारण प्रदूषण का भी खतरा नहीं रहता है.

जब खेतों में हाइड्रोजेल का इस्तेमाल किया जाता है तो हाइड्रोजेल के दाने सिंचाई या वर्षा के दौरान अपनी क्षमता से कई गुना अधिक पानी सोख लेते हैं.

इसके बाद जब खेतों में नमी कम होने लगती है, तब हाइड्रोजेल के दाने से पानी रिस कर खेत में नमी को बनाए रखता है.

इसके बाद जब भी खेतों में बारिश हो या सिंचाई से पानी पहुंचता है तो पुन: हाइड्रोजेल के दाने दुबारा पानी को सोख लेते हैं.

भारत में 50 से अधिक कंपनियां कर रही तैयार

साल 1950 में मिस्र के वैज्ञानिकों ने सूखे से निबटने के लिए हाइड्रोजेल तैयार किया था.

धीरे-धीरे हाइड्रोजेल उत्पादन की तकनीक पूरे विश्व में फैल गई. वर्तमान में भारत में 50 से अधिक कंपनियां हाइड्रोजेल का उत्पादन करती हैं.

फसल के अनुसार हाइड्रोजेल का प्रयोग किया जाता है. धान, गेहूं, मक्का आदि फसलों में चार किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से हाइड्रोजेल का छिड़काव किया जाता है.

वैज्ञानिकों का कहना है किसान सभी फसलों में यूरिया का प्रयोग करता है, लेकिन नाइट्रोजन पानी में घुलकर मिट्टी में चला जाता है.

इससे पौधों को नाइट्रोजन का पूरा लाभ नहीं मिल पाता है, लेकिन हाइड्रोजेल के प्रयोग करने पर नाइट्रोजन को भी अवशोषित कर लेता है और पौधों को भी इसकी आपूर्ति करते रहता है.

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