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कोरोना काल में भोजन की ख़राब गुणवत्ता में छत्तीसगढ़ नंबर-1

रायपुर | संवाददाता: कोरोना काल में पूरे देश में भोजन में पोषण देने वाले तत्व की गुणवत्ता और मात्रा की सबसे ख़राब स्थिति छत्तीसगढ़ में रही. 90 प्रतिशत लोगों को इससे जूझना पड़ा. सितंबर- अक्टूबर महीने में पुराने दिनों की तुलना में भोजन की स्थिति को लेकर हंगर वॉच की ताज़ा रिपोर्ट में यह बात सामने आई है.

भोजन का अधिकार अभियान की इस हंगर वॉच रिपोर्ट में कहा गया है कि लॉक डाउन खत्म होने के पांच महीने बाद भी हालात में सुधार नहीं हुआ है.

देश के 11 राज्यों में किये गये इस सर्वेक्षण में 59 प्रतिशत उत्तरदाता दलित या आदिवासी थे. 23 प्रतिशत लोग ओबीसी थे, जबकि 4 प्रतिशत आदिम जाति समुदाय से थे. उत्तरदाताओं में 55 प्रतिशत महिलाएं थीं.

रोज़ी-रोटी अधिकार अभियान के कार्यकर्ताओं ने 3,994 लोगों से बातचीत कर यह रिपोर्ट तैयार की है. इनमें छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, दिल्ली, महाराष्ट्र, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल के लोग शामिल हैं.

जिन लोगों से बात की गई, उनमें लॉकडाउन से पहले 79 फीसदी लोगों की आय प्रति माह 7 हज़ार रुपये से कम थी, जबकि 41 प्रतिशत लोग 3 हज़ार रुपये से कम कमाते थे.

इस रिपोर्ट के अनुसार, लॉकडाउन से पहले के दिनों की तुलना में सितंबर-अक्टूबर 2020 में 71 प्रतिशत लोगों के भोजन की पौष्टिकता में कमी आई. इनमें से 40 फीसदी लोगों के भोजन की गुणवत्ता काफ़ी ख़राब रही. दो-तिहाई लोगों के भोजन की मात्रा में कमी आई. इसी तरह 28 फीसदी लोगों के भोजन की मात्रा लॉकडाउन के बाद काफ़ी कम हो गई.

छत्तीसगढ़ में सितंबर-अक्टूबर में 55 फीसदी लोगों की आय में कमी आई, जबकि 36 प्रतिशत की कोई आय ही नहीं हुई.

दाल की खपत में 70 फीसदी की कमी

छत्तीसगढ़ में चावल या रोटी जैसे खाद्य पदार्थों की खपत में 48 प्रतिशत की कमी आई. इसी तरह दाल जैसी चीज़ों की खपत में 70 फीसदी की कमी आई.

हरी सब्जियों के उपयोग में 77 फीसदी की कमी आई.


सितंबर-अक्टूबर में छत्तीसगढ़ में 36 प्रतिशत लोगों को इस दौरान भोजन के लिये कर्ज लेना पड़ा. यह तब हुआ, जब 79 प्रतिशत लोगों के पास राशन कार्ड था.

लॉकडाउन के दौरान छत्तीसगढ़ में पीडीएस के अंतर्गत केवल 57 प्रतिशत लोगों को हर महीने अतिरिक्त अनाज मिला. 42 प्रतिशत लोग ऐसे थे, जिन्हें अतिरिक्त अनाज तो मिला लेकिन हर महीने नहीं मिला.

राहत की बात ये है कि छत्तीसगढ़ में मिड डे मील का लाभ, स्कूल जाने वाले 92 प्रतिशत बच्चों को मिला.

दुनिया के जाने-माने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि हंगर-वॉच का सर्वे बताता है कि 76 फीसदी लोग अब कम खा रहे हैं. लॉकडाउन में उनकी हालत ख़राब हुई है. इसके बावजूद भारत की मौजूदा सरकार मिड-डे मील और आइसीडीएस जैसी योजनाओं का बजट लगातार कम कर रही है. जबकि ये योजनाएं कुपोषण और भूख से लड़ाई में मददगार हैं.

उन्होंने कहा कि दरअसल इस सरकार की विकास की समझ उल्टी है. यह सरकार सिर्फ़ आर्थिक वृद्धि को ही विकास मानती है, जबकि विकास का मतलब यह नहीं है. आर्थिक वृद्धि और विकास में काफी फ़र्क है. विकास का मतलब यह भी है कि किसी देश में प्रति व्यक्ति आय या उसकी जीडीपी बढ़े, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा, डेमोक्रसी, सामाजिक सुरक्षा की हालत में भी सुधार हो.

ज्यां द्रेज़ ने कहा कि भारत में अभी ऐसा नहीं हो रहा है. यह संपूर्ण विकास नहीं है. हंगर वॉच और एनएफ़एचएस के सर्वे दरअसल एक ‘वेकअप-काल’ है. लेकिन दुख की बात यह है कि न सरकार और न ही मुख्यधारा का मीडिया इस पर ध्यान दे रहा है. इस कारण भारत में भूख और कुपोषण जैसी समस्याओं का समाधान नहीं निकल पा रहा है.

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