अल जजीराः खास परिस्थितियों की उपज
23 जून, 2017 को सऊदी अरब के नेतृत्व वाले देशों ने जो 13 मांगें कतर से रखीं उनमें एक यह भी है कि समाचार नेटवर्क अल जजीराको बंद किया जाए. लेकिन यह बहुत अचंभित करने वाला नहीं है. यह टेलीविजन समाचार नेटवर्क खुद को अरब का पहला स्वतंत्र खबरिया नेटवर्क कहता है.
1996 में अपनी शुरुआत से ही यह इस क्षेत्र के कई राजशाही और तानाशाही शासकों के लिए मुसीबतें पैदा करता रहा है. यह नेटवर्क कतर से चलता है. यहां के बारे में अमेरिकी फ्रीडम हाउस ने 2016 की अपनी रिपोर्ट में बताया है कि यहां मीडिया स्वतंत्र नहीं है. लेकिन यह स्पष्ट है कि इस क्षेत्र में बाकियों के मुकाबले यह नेटवर्क तुलनात्मक रूप से अधिक स्वतंत्र है. जब सऊदी अरब ने बीबीसी की अरबी सेवा को प्रतिबंधित किया तो ठीक ढंग से प्रशिक्षित 150 पत्रकार खाली हो गए और इन लोगों को शामिल करके अल जजीरा अरबी की शुरुआत हुई.
पूरी दुनिया में अल जजीरा के अंग्रेजी चैनल को देखा जाता है. इस चैनल ने पहले के चैनलों से एक अलग दृष्टिकोण अरब देशों और उत्तरी अफ्रीका के बारे में दुनिया के सामने रखा है. लेकिन अल जजीरा के अरबी चैनल ने इस क्षेत्र के तानाशाही शासकों की नींद हराम कर रखी है. क्योंकि नियंत्रित मीडिया वाले इन देशों में इस चैनल ने वैसे लोगों को आवाज दी है जिन्हें कभी यह मौका नहीं मिलता. इसने ट्यूनिशिया और मिस्र की अरब क्रांति का व्यापक और लाइव कवरेज किया.
यह दुनिया का इकलौता चैनल था जिसने 9/11 के बाद ओसाम बिन लादेन का साक्षात्कार किया. इन चीजों से इस चैनल के दर्शकों की संख्या तो बढ़ी लेकिन कतर के पड़ोसी देशों में इसे लेकर संदेह पैदा होने लगा. इस चैनल को कतर के राजसी परिवार का समर्थन हासिल है और इसकी कुछ हिस्सेदारी भी उनके पास है. इस मीडिया समूह पर ये आरोप भी लगे कि वह मुस्लिम ब्रदरहुड के प्रति नरम है और अन्य ऐसे समूहों को प्रोत्साहित करता है. हालांकि, चैनल इसे यह कहकर खारिज करता है कि चरमपंथी की बातों को भी सामने लाना उनकी पेशेवर जिम्मेदारी का हिस्सा है. सऊदी अरब की अगुवाई वाला समूह इसे मानने को तैयार नहीं है.
2013 में अल जजीरा को मिस्र में चल रहे चैनल लाइव इजिप्ट के कैरो कार्यालय को बंद करना पड़ा था. क्योंकि इसने मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतेह अल-सीसी को लेकर आलोचनात्मक रुख अपना रखा था. हालांकि, 2014 में दोहा से इसकी फिर से शुरुआत हुई लेकिन मिस्र सरकार के दबाव में कतर सरकार ने इसे बंद करा दिया. इससे साफ है कि इस ‘स्वतंत्र’ समाचार चैनल पर कार्रवाई करने में कतर सरकार को भी गुरेज नहीं रहा. कतर के संविधान के अनुच्छेद-47 में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तो है लेकिन वक्त और परिस्थितियों के हिसाब से.
इसमें राजशाही की आलोचना नहीं की जा सकती है और न ही कतर की स्थिति की. 2013 में मीडिया फ्रीडम में दोहा केंद्र के निदेशक जॉन केउलिन को इसलिए नौकरी गंवानी पड़ी क्योंकि उन्होंने अपनी रिपोर्ट में यह कह दिया था कि गल्फ सहयोगी परिषद के छह देशों में दमनकारी प्रेस कानून हैं और कतर को अपने यहां यह स्थिति सुधारनी चाहिए. कतर सरकार यह बर्दाश्त भी नहीं करेगी कि उसके यहां काम करने वाले 94 फीसदी लोगों की स्थिति पर कोई रिपोर्ट की जाए. इन मजदूरों में से अधिकांश दक्षिण एशिया के हैं.
इस क्षेत्र में अल जजीरा कोई पहला चैनल नहीं है जिसे अपने केंद्र वाले देश के अतिरिक्त किसी दूसरे देश का दबाव झेलना पड़ रहा है. 2007 में दुबई मीडिया सिटी से दो पाकिस्तानी समाचार चैनल जिओ और एआरआई वन वल्र्ड इस शर्त के साथ चल रहे थे कि उनकी सामग्री को लेकर सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा. लेकिन इसके बावजूद संयुक्त अरब अमीरात ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की इन चैनलों को बंद कराने की मांग को मान लिया. अंत में समझौता हुआ और उन्हें मनोरंजन के कार्यक्रमों के प्रसारण की अनुमति मिली लेकिन खबरों की नहीं.
अल जजीरा अंग्रेजी को कई अंतरराष्ट्रीय पत्रकारों और संगठनों का समर्थन मिला है लेकिन इसे बंद कराने की कोशिशों को सिर्फ अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला नहीं माना जा सकता. अल जजीरा एक ऐसा पौधा है जिसे खास परिस्थितियों में ऐसे क्षेत्र में बढ़ाया गया जहां प्रेस की आजादी की अवधारणा ही नहीं रही.
हर देश में किसी न किसी तरह की तानाशाही है. इनमें से अधिकांश सरकारों के लिए मीडिया प्रोपगैंडा का एक औजार है जिसका इस्तेमाल निश्चित दायरे में होता है. पत्रकारों को नियमित तौर पर धमकियां मिलती हैं और अगर वे अपनी हदों से बाहर जाएं तो उन्हें जेल में भी बंद कर दिया जाता है. अल जजीरा को कतर के शासकों का साथ इसलिए मिलता रहा है कि यहां के आंतरिक मामलों को लेकर यह चैनल भी सरकार द्वारा तय दायरों में रहा है.
अभी तक की स्थिति यह है कि सऊदी अरब की अगुवाई वाले देशों की एक भी मांग मानने को कतर तैयार नहीं है. यह सबसे बुरा होगा अगर समझौते के तहत कतर अल जजीरा को बंद कराने या इसके पर कतरने को तैयार हो जाए. अगर ऐसा होता है तो यह न सिर्फ इस क्षेत्र के लिए बल्कि पूरी दुनिया का नुकसान होगा. क्योंकि अपनी सीमाओं के बावजूद अल जजीरा वैचारिक विविधता और एक अलग दृष्टिकोण देते हुए प्रचलित धारणाओं का चुनौती दे रहा है.
1966 से प्रकाशित इकॉनोमिक ऐंड पॉलिटिकल वीकली के नये अंक के संपादकीय का अनुवाद