योगी की राजनीति का मतलब
मोदी-योगी राजनीति के उभार और भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की धमकी का विपक्षी दलों के पास क्या जवाब है? अब तक वे मूलतः आत्मघाती राजनीति करते रहे हैं. केवल बिहार विधानसभा चुनाव में विपक्षी दलों ने परिपक्वता दिखाई. कई नेता अपने संकीर्ण राजनीतिक लाभ के लिए अपने दलों के विचाराधात्मक मूल्यों की अवहेलना करते आए हैं. हमें यह समझना होगा कि हिन्दू राष्ट्र केवल अल्पसंख्यकों के लिए खतरा नहीं है. वह स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के संवैधानिक मूल्यों, सामाजिक न्याय और समाज के कमज़ोर वर्गों की बेहतरी के लिए उठाए जाने वाले सकारात्मक कदमों के लिए भी खतरा है.
कई राजनीतिक समीक्षकों का यह कहना है कि अब समय आ गया है कि सभी प्रजातांत्रिक ताकतें एक हों. जहां अन्य पार्टियां कम से कम कुछ हद तक प्रजातांत्रिक मूल्यों और सिद्धांतों का पालन कर रही हैं वहीं भाजपा खुलकर हिन्दू राष्ट्र के लिए काम कर रही है. वह एकमात्र ऐसी पार्टी है जिस पर आरएसएस का पूर्ण नियंत्रण है. आरएसएस प्राचीन भारत का गुणगान और महिमामंडन करता है. यह वह भारत था जहां जाति और वर्ण का बोलबाला था और जिसका शासक निरंकुश था.
यह सही है कि अन्य पार्टियां भी पूरी तरह से प्रजातंत्र और धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध नहीं रही हैं. उन्होंने कई अवसरवादी गठबंधन किए हैं. परंतु फिर भी वे मौटे तौर पर भारतीय राष्ट्रवाद की पैरोकार हैं. दूसरी ओर भाजपा हिन्दू राष्ट्रवाद की झंडाबरदार है. क्या भाजपा के रथ को रोका जा सकता है? अगर अन्य राजनीतिक दलों ने योगी के सत्ता में आने को एक गंभीर चेतावनी के रूप में नहीं लिया तो सन 2019 के आम चुनाव के नतीजे भी उत्तरप्रदेश जैसे हो सकते हैं.
हमने यह देखा है कि अगर विपक्ष दृढ़ और एकताबद्ध हो तो वह भाजपा-आरएसएस की सोशल इंजीनियरिंग और उसके राजनीतिक समीकरणों को ध्वस्त कर सकता है. पिछले आमचुनाव में भाजपा को 31 प्रतिशत वोट मिले थे. उस समय उत्तरप्रदेश में उसे कुल मतों का 41 प्रतिशत मिला था. विधानसभा चुनाव में यह घटकर 39 प्रतिशत रह गया है. कांग्रेस, जिसका सामाजिक जनाधार अब तक सबसे बड़ा रहा है, वह हमेशा से भाजपा-आरएसएस के खिलाफ रही है. परंतु विचारधारा के स्तर पर वह गांधी, नेहरू और मौलाना आज़ाद के धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का पालन नहीं कर सकी है.
कम्युनिस्ट पार्टियां भाजपा को एक आक्रामक सांप्रदायिक दल मानती हैं और उनमें से कुछ उसे एक फासीवादी राजनीतिक संगठन बताती हैं. क्षेत्रीय दलों का भाजपा के प्रति दृष्टिकोण अस्पष्ट है. उनमें से कुछ ने भाजपा से गठबंधन भी किए हैं. आप, जिसे कई लोग भारतीय राजनीति का नया उभरता सितारा बताते हैं, का एक ही एजेंडा है. वह केवल भ्रष्टाचार का विरोध करना चाहती है. क्या वह सांप्रदायिकता के खिलाफ राजनीतिक गठबंधन का हिस्सा बनेगी? इस प्रश्न का उत्तर समय ही बताएगा. अब तक तो वह केवल ऐसे स्थानों पर चुनावी मैदान में उतरती रही है जहां भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर है. अभी यह कहना मुश्किल है कि क्या आप, भाजपा की राजनीति को प्रजातंत्र के लिए खतरे के रूप में देखती है और वह राष्ट्रीय स्तर पर प्रजातंत्र को बचाने के गठबंधन का हिस्सा बनेगी. जो सामाजिक आंदोलन समाज के कमज़ोर वर्गों के हितों की रक्षा करने के प्रति प्रतिबद्ध हैं, उन्हें भी प्रजातंत्र की रक्षा के लिए आगे आना चाहिए.
योगी के सत्ता में आने से एक बात साफ है. या तो उन सभी पार्टियों को, जो आरएसएस से नियंत्रित नहीं हैं, एक मंच पर आना होगा या उन्हें चुनावी मैदान में धूल चाटने के लिए तैयार रहना होगा. केवल बिहार जैसा राजनीतिक गठबंधन ही प्रजातंत्र की रक्षा कर सकता है.
*लेखक आईआईटी में प्राध्यापक रहे हैं और सामाजिक कार्यकर्ता हैं.