राज्यपाल सचिवालय को हाईकोर्ट का नोटिस
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में आरक्षण संबंधी विधेयक रोके जाने को लेकर हाईकोर्ट ने राज्यपाल सचिवालय को नोटिस जारी किया है. जिसमें एक सप्ताह के भीतर जवाब मांगा गया है.
सुप्रीम कोर्ट के वकील और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने सरकार की ओर से कहा कि राज्यपाल को सीधे तौर पर विधेयक को रोकने का कोई अधिकार नहीं है.
उन्होंने कहा कि विधानसभा में विधेयक पारित होने के बाद राज्यपाल सिर्फ सहमति या असमति दे सकते हैं. लेकिन, बेवजह, किसी बिल को इस तरह से लंबे समय तक रोका नहीं जा सकता. सिब्बल ने आरोप लगाया कि राज्यपाल अपने संवैधानिक अधिकारों का दुरुपयोग कर रही हैं.
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में आरक्षण विधेयक पर अब तक हस्ताक्षार नहीं किये जाने को लेकर राज्यपाल के ख़िलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है. इस याचिका में छत्तीसगढ़ की राज्यपाल पर कथित रुप से भाजपा के इशारे पर विधेयक को रोक कर रखने का आरोप लगाया गया है.
पिछले साल दिसंबर में भेजे गये विधेयक को लेकर राज्यपाल अनुसूईया उइके ने साफ कहा है कि जब कोर्ट ने 58% आरक्षण को अवैधानिक कह दिया है तो 76% आरक्षण का बचाव सरकार कैसे करेगी?
गौरतलब है कि दो दिसंबर को आरक्षण से संबंधित विधेयक विधानसभा से पारित होने के बाद उसे राज्यपाल के हस्ताक्षर के लिए भेजा गया था.
कांग्रेस पार्टी ने कहा था कि उसी रात को हस्ताक्षर हो जाए, इसकी कोशिश की जाएगी. लेकिन राज्यपाल के पास विधेयक अभी तक लटका हुआ है.
राज्यपाल ने इस मसले पर कहा कि मैंने केवल आदिवासी वर्ग का आरक्षण बढ़ाने के लिए सरकार को विशेष सत्र बुलाने का सुझाव दिया था, लेकिन राज्य सरकार ने सबका आरक्षण बढ़ा दिया.
उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने 2012 के विधेयक में 58% आरक्षण के प्रावधान को अवैधानिक कर दिया था. इससे प्रदेश में असंतोष का वातावरण था. आदिवासियों का आरक्षण 32% से घटकर 20% पर आ गया. सर्व आदिवासी समाज ने पूरे प्रदेश में जन आंदोलन शुरू कर दिया.
राज्यपाल अनुसूईया उइके ने कहा कि सामाजिक संगठनों, राजनीतिक दलों ने आवेदन दिया. तब मैंने सीएम साहब को एक पत्र लिखा था. मैं व्यक्तिगत तौर पर भी जानकारी ले रही थी. मैंने केवल जनजातीय समाज के लिए ही सत्र बुलाने की मांग की थी.
उन्होंने कहा कि विशेष सत्र तक उनकी चिंता केवल 2018 के अधिनियम में दिए गए 58% आरक्षण को बचाने की थी. अगर 58% वाले को ही बचा लेते तो समाधान हो जाता. अब सरकार ने और शामिल कर लिया तो वह आधार तो मुझे जानना है ना. 58% वाली स्थिति रहती तो मुझे कोई दिक्कत नहीं होती.
अनुसूईया उइके ने कहा कि अगर मुझे लगता है कि इस मामले में सरकार के पास सही डाटा है, उसकी तैयारी पूरी है तो मुझे कोई दिक्कत नहीं है.
उन्होंने कहा कि अभी तो जनरल वालों ने भी मुझे आवेदन दिया है कि इसपर हस्ताक्षर नहीं करना. इसमें हमारे 10% को 4% कर दिया गया है.
विधेयक
दो दिसंबर 2022 को विधानसभा से पारित आरक्षण से संबंधित विधेयक में आदिवासियों को 32 प्रतिशत, पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत, अनुसूचित जाति को 13 प्रतिशत और आर्थिक रुप से कमज़ोर वर्ग को 4 फीसदी आरक्षण का प्रावधान रखा गया है.
गौरतलब है कि राज्य में सितंबर के बाद से आरक्षण का रोस्टर ही सक्रिय नहीं था.
यही कारण है कि राज्य में बड़ी संख्या में प्रवेश और भर्ती परीक्षा रुकी हुई थीं.
रमन सरकार का फैसला
भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल में रमन सिंह की सरकार ने 18 जनवरी 2012 को एक अधिसूचना जारी करते हुए आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 4 में संशोधन करते हुए आरक्षण का दायरा बढ़ा दिया था.
रमन सिंह की सरकार ने अनुसूचित जनजाति को 32 फीसदी, अनुसूचित जाति को 12 और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14 फीसदी आरक्षण दिया था.
आरक्षण का यह दायरा 58 प्रतिशत था.
पहले से लागू अनुसूचित जाति के 16 फीसदी आरक्षण को घटाकर 12 प्रतिशत किए जाने से काफी नाराजगी थी.
अनुसूचित जनजाति को तब तक 20 फीसदी आरक्षण ही मिलता था, जिसे रमन सिंह की सरकार ने 32 फीसदी किया था.
आरक्षण के इस फैसले के खिलाफ कई संगठनों ने याचिका दायर की थी. जिसे सितंबर में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था.
भूपेश सरकार का फैसला भी लंबित
भूपेश बघेल की सरकार ने 15 अगस्त 2019 को आरक्षण के दायरे को 58 फीसदी से 72 फीसदी तक पहुंचा दिया.
भूपेश बघेल सरकार ने अनुसूचित जाति के आरक्षण को 12 फीसदी से बढ़ा कर 13 फीसदी कर दिया.
उन्होंने सर्वाधिक बड़ा बदलाव अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण में किया. अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 14 फीसदी था, जिसे बढ़ा कर 27 फीसदी कर दिया गया.
लेकिन इस फ़ैसले के लागू होने से पहले ही हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी.