सबके राज में हेल्थ गई भाड़ में
जेके कर
भारत में सरकारें जन स्वास्थ्य पर खर्चे में कंजूसी करती है. भारत में कांग्रेस, जनता पार्टी, कांग्रेस विरोधी गठबंधन, भाजपा की गठबंधन, कांग्रेस-वाम गठबंधन सरकारें रही हैं तथा वर्तमान में भाजपा की सरकार है. इसके बावजूद स्वास्थ्य पर खर्चे में कंजूसी जारी है. गौरतलब है कि पराधीन भारत में भारतीयों के स्वास्थ्य का सर्वेक्षण करने तथा उसके विकास पर एक समिति बनी थी. सर जोसेफ भोरे की अध्यक्षता में बनी इस समिति ने भारत की स्वतंत्रता के एक साल पहले अपनी रिपोर्ट ब्रिटिश भारत को सौंपी थी.
भोरे समिति की दो प्रमुख अनुशंसायें थी. पहला दाम चुकाने की क्षमता न होने पर भी किसी को स्वास्थ्य सेवा से वंचित न किया जाये दूसरा जन स्वास्थ्य की जिम्मेदारी सरकार उठाये. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद समाजवाद तथा समानता का दावा करने वाली कई सरकारें आई परन्तु भारतवासियों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी सरकारों ने पूरी तरह से नहीं उठाई, उलट जिनके पास स्वास्थ्य के लिये दाम चुकाने की क्षमता नहीं है वे स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित होते गये.
दरअसल जनता को स्वस्थ्य रखने के लिये सरकार को अपने बजट के माध्यम से उस पर खर्च करना पड़ता है. जिसमें कोताही बरती गई तथा लगातार बरतती जा रही है. नतीजन भारतीयों की औसत आयु आज भी दुनिया की आबादी की औसत आयु से कम है. दुनिया की औसत आयु 71 वर्ष है जबकि भारतीयों की 68 वर्ष. भारत के अलावा पास-पड़ोस के अन्य देशों के बाशिंदों की औसत आयु क्रमशः मालद्वीप 77 वर्ष, थाईलैंड 74 वर्ष, भूटान 69 वर्ष, नेपाल 70 वर्ष, श्रीलंका 75 वर्ष, बांग्लादेश 72 वर्ष, इंडोनेशिया 69 वर्ष, तिमोर-लेस्टे 68 तथा म्यनमार 66 वर्ष है.
इसी तरह से दुनिया के कुछ अन्य देशों के बाशिंदों की औसत आयु जर्मनी 81 वर्ष, इग्लैंड 81 वर्ष, कनाडा 81 वर्ष, आस्ट्रेलिया 82 वर्ष, फ्रांस 82 वर्ष, ब्राजील 74 वर्ष, कोलंबिया 74 वर्ष, क्यूबा 79 वर्ष, इटली 83 वर्ष, जापान 84 वर्ष, रूस 70 वर्ष तथा अमरीका में 79 वर्ष की है.
अब जरा देखें कि भारत में स्वास्थ्य पर कितना खर्च किया जाता है? विश्व-बैंक का कहना है कि साल 2014 में भारत में स्वास्थ्य पर सकल घरेलू उत्पादन का 4.7 फीसदी खर्च किया गया. जिसमें से केन्द्र एवं राज्य सरकारों ने मिलकर महज 1.4 फीसदी खर्च किया. जिसका सीधा-सादा अर्थ है कि बाकी का 3.3 फीसदी खर्च बीमार पड़ने पर जनता ने अपनी जेब से किया है. खुद सरकारी आकड़ों के अनुसार साल 2013-14 में स्वास्थ्य पर सरकार ने 1.12 लाख करोड़ खर्च किया है. जिसमें से केन्द्र सरकार ने 33 फीसदी तथा राज्य सरकारों ने 66 फीसदी खर्च किये थे.
|| इसका कारण है कि स्वास्थ्य पर सरकार को कितना खर्च करना है इसका फैसला जो लोग करते हैं उन्हें खुद कभी बीमार पड़ने पर अपनी अंटी से खर्च करके ईलाज करवाना नहीं पड़ता है. ||
जनता के स्वास्थ्य पर सरकार द्वारा (राज्य+केन्द्र) साल 2009-10 में 72,536 करोड़, 2010-11 में 83,101 करोड़, 2011-12 में 96,221 करोड़, 2012-13 में 1,08,236 करोड़, 2013-14 में 1,12,270 करोड़, 2014-15 (RE) में 1,40,152 करोड़ तथा 2015-16 (BE) में 1,52,267 करोड़ रुपये खर्च किये गये.
यदि इसे प्रति व्यक्ति खर्च के रूप में देखा जाये तो यह प्रतिवर्ष क्रमशः 621 रुपये, 701 रुपये, 802 रुपये, 890 रुपये, 913 रुपये, 1121 रुपये तथा 1211 रुपये का रहा. इसी को जब सकल घरेलू उत्पादन के लिहाज से देखेंगे तो पायेंगे कि यह प्रतिवर्ष यह क्रमशः 1.12%, 1.07%, 1.09%, 1.08%, 1.12% तथा 1.12% का ही रहा है.
इसे यदि केन्द्र और राज्य सरकारों के खर्चे के रूप में देखा जाये तो प्रतिवर्ष यह क्रमशः 36:64, 35:65, 35:65, 33:67, 34:66, 29:71 तथा 28:72 के अनुपात में रहा. इस तरह से केन्द्र सरकार वस्तुतः स्वास्थ्य पर किये जा रहे खर्चे में कटौती करती जा रही है जबकि राज्य सरकारें इसे बढ़ा रहीं हैं. जाहिर है कि राज्य सरकारों द्वारा स्वास्थ्य पर खर्चों में की जा रही बढ़ोतरी के बावजूद भी भारत में अन्य देशों की तुलना में स्वास्थ्य पर कम ही खर्च किया जा रहा है.
भारत की तुलना में अन्य देशों द्वारा स्वास्थ्य पर अपने सकल घरेलू उत्पादन का कितना फीसदी खर्च किया जाता है यह देखना भी दिलचस्प होगा. साल 2013 में इन देशों में से मालदीप की सरकार ने स्वास्थ्य पर अपने सकल घरेलू उत्पादन का 6.2 फीसदी खर्च किया. इसी तरह से थाईलैंड ने 3.7 फीसदी, भूटान ने 2.7 फीसदी, नेपाल ने 2.6 फीसदी, श्रीलंका ने 1.4 फीसदी, बांग्लादेश ने 1.3 फीसदी, इंडोनेशिया ने 1.2 फीसदी, तिमोर-लेस्टे ने 1.2 फीसदी, भारत ने 1.1 फीसदी तथा म्यमार ने 0.5 फीसदी खर्च किये थे.
यदि स्वास्थ्य पर विकसित देशों द्वारा किये जा रहे खर्चो को देखा जाये तो साल 2013 में ही जर्मन सरकार ने 8.7 फीसदी, इग्लैंड ने 7.6 फीसदी, कनाडा ने 7.6 फीसदी, रवांडा ने 6.5 फीसदी, आस्ट्रेलिया ने 6.3 फीसदी, कोलंबिया ने 5.2 फीसदी, ब्राजील ने 4.7 फीसदी, दक्षिण अफ्रीका ने 4.3 फीसदी, तुर्की ने 4.3 फीसदी, थाईलैंड ने 3.7 फीसदी, घाना ने 3.3 फीसदी, रूसी फेडेरेशन ने 3.1 फीसदी, मेक्सिको ने 3.2 फीसदी, चीन ने 3.1 फीसदी, फिलीपींस ने 1.4 फीसदी खर्च किये थे.
यदि केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन तथा राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन पर किये जा रहे खर्च को देखा जाये तो राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन पर साल 2013-14 में 10,998.10 करोड़, 2014-15 में 10,454.70, 2015-16 (RE) में 10,536.65 तथा 2016-17 में 11,159.00 करोड़ खर्च किये गये. इसी तरह से राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन पर इसी दौरान 662.23 करोड़ रुपये, 1348.17 करोड़, 796.28 करोड़ तथा 950.00 करोड़ रुपये खर्च किये गये हैं.
राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन पर तो साल 2014-15 में जो खर्च किया गया था बाद के दो सालों में उससे भी कम खर्च किया जा रहा है. वहीं राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में साल 2013-14 में जितना खर्च किया गया था उसकी तुलना में साल 2016-17 में महज 160.90 करोड़ ज्यादा खर्च किये गये जबकि साल 2013-14 में जनसंख्या 123 करोड़ की थी जो 2015-16 में बढ़कर 126 करोड़ की हो गई है तथा लोग गांवों से शहरों की ओर पलायन कर रहें हैं.
अब राज्यों द्वारा अपने बजट से स्वास्थ्य पर किये जा रहे खर्चो को देखे तो साल 2013-14 में आंध्रप्रदेश ने प्रति व्यक्ति 1030 रुपये, दिल्ली ने 1635 रुपये, गोवा ने 2723 रुपये, गुजरात ने 848 रुपये, हरियाणा ने 858 रुपये, हिमाचल प्रदेश ने 1876 रुपये, जम्मू-कश्मीर ने 1549 रुपये, कर्नाटक ने 829 रुपये, केरल ने 1033 रुपये, महाराष्ट्र ने 681 रुपये, पंजाब ने 1015 रुपये, तमिलनाडु ने 935 रुपये, पश्चिम बंगाल ने 630 रुपये खर्च किये.
इसी तरह से असम ने 855 रुपये, बिहार ने 385 रुपये, छत्तीसगढ़ ने 802 रुपये, झारखंड ने 461 रुपये, मध्यप्रदेश में 540 रुपये, ओडिशा ने 543 रुपये, राजस्थान ने 760 रुपये, उत्तरप्रदेश ने 492 रुपये, उत्तराखंड ने 1270 रुपये खर्च किये.
इनकी तुलना में उत्तर-पूर्व के राज्यों में से अरुणाचल प्रदेश ने 3002 रुपये, मणिपुर ने 1658 रुपये, मेघालय ने 1639 रुपये, मिजोरम ने 2700 रुपये, नगालैंड ने 1707 रुपये, सिक्किम ने 4145 रुपये तथा त्रिपुरा ने 1821 रुपये खर्च किये.
अब यदि इसे इसी साल राज्यों द्वारा अपने सकल घरेलू उत्पादन की तुलना में खर्च के रूप में देखा जाये तो आंध्रप्रदेश ने 1.92, दिल्ली ने 0.83, गोवा ने 1.05, गुजरात ने 0.68, हरियाणा ने 0.58, हिमाचल प्रदेश ने 1.58, जम्मू-कश्मीर ने 2.14, कर्नाटक ने 0.82, केरल ने 0.92, महाराष्ट्र ने 0.52, पंजाब ने 0.91, तमिलनाडु ने 0.75, तथा पश्चिम बंगाल ने 0.82 फीसदी खर्च किये हैं. इन राज्यों ने स्वास्थ्य पर औसतन अपने जीडीपी का महज 0.83 फीसदी खर्च किया है.
इसी तरह से अन्य राज्यों में से असम ने 1.69, बिहार ने 1.13, छत्तीसगढ़ ने 1.08, झारखंड ने 0.87, मध्यप्रदेश ने 0.93, ओडिशा ने 0.83, राजस्थान ने 1.03, उत्तरप्रदेश ने 1.20 तथा उत्तराखंड ने 1.06 फीसदी प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर खर्च किये. इन राज्यों ने स्वास्थ्य पर औसतन अपने जीडीपी का 1.09 फीसदी खर्च किया.
इऩकी तुलना में उत्तर-पूर्व के राज्यों में से अरुणाचल प्रदेश ने 2.83, मणिपुर ने 2.92, मेघालय ने 2.02, मिजोरम ने 2.71, नगालैंड ने 2.23, सिक्किम ने 2.11 तथा त्रिपुरा ने 2.53 फीसदी अपने राज्य के सकल घरेलू उत्पादन के हिसाब से प्रति व्यक्ति खर्च किये हैं. जबकि उत्तर-पूर्व के राज्यों ने स्वास्थ्य पर औसतन अपने जीडीपी का 2.44 फीसदी खर्च किया है.
इस हालात के बीच एक सच्चाई पर गौर किये जाने की जरूरत है, वह है भले की सरकार स्वास्थ्य पर जरूरत के हिसाब से खर्च करने में कोताही बरत रही है पर बीमारी ने अपना हमला जारी रखा है. अंत में एक नज़र इन पर भी डाल लेते हैं जिसके बिना स्थिति की गंभीरता को समझना मुश्किल होगा. भारत में साल 2015 में संक्रामक रोगों से हुई मौतों में 67 फीसदी मौतें श्वसन तंत्र में हुये संक्रमण के कारण हुई है. इसके अलावा पतले दस्त से 23 फीसदी, टाइफाइड से 3 फीसदी, टीबी से 3 फीसदी, मलेरिया से 2 फीसदी तथा निमोनिया से 1 फीसदी मौंते हुई है. इसके अलावा भी नये-नये रोग होते जा रहें हैं.
सरकारी आकड़ों के अनुसार साल 2011, 2012, 2013, 2014 और 2015 में चिकनगुनिया के केस इस तरह से क्रमशः बढ़ते गये है- 20402, 15977, 18840, 16049, 27225. इसी तरह से इस दरम्यान डेंगू से क्रमशः- 8, 4, 6, 3, 60 मौंतें हुई हैं. जाहिर है कि इन रोगों के उपचार खर्च बढ़ेगा जबकि सरकार खर्च कम कर रही हैं.
जहां तक गैरसंचारी रोगों की बात है 1 जनवरी 2015 से 31 दिसंबर 2015 के बीच देशभर में 1 करोड़ 09 लाख 35 हजार 375 लोगों की सरकारी अस्पतालों में जांच करने पर उनमें से 9 लाख 30 हजार 277 लोगों को डायबिटीज, 12 लाख 79 हजार 858 लोगों में उच्च रक्तचाप, 82 हजार में हृदयरोग 338 तथा 11 हजार 652 में कैंसर पाया गया. ऑकड़ें अपने आम में स्थिति की भयावहता का ऐलान करते हैं.
जाहिर है कि इनमें से ज्यादातर ऑकड़ें सरकारी हैं इस कारण से सरकार के नीति निर्माताओं से छुपे हुये नहीं है. लेकिन इसके बाद भी जन स्वास्थ्य पर खर्च करने में कंजूसी की जाती है इसका कारण है कि स्वास्थ्य पर सरकार को कितना खर्च करना है इसका फैसला जो लोग करते हैं उन्हें खुद कभी बीमार पड़ने पर अपनी अंटी से खर्च करके ईलाज करवाना नहीं पड़ता है. इसलिये बीमार पड़ने पर लोगों की जमीनें बिक जाया करती हैं, गहने गिरवी रखने पड़ते हैं, बीमारी से हुई मौत के कारण एक पूरा परिवार उजड़ जाता है इसका अहसास सत्ता तथा प्रशासन के उच्च पदस्थ लोगों को नहीं हो पाता है. इसीलिये तो कहा जाता है किसी का भी राज जो जन स्वास्थ्य हमेशा भाड़ में ही गया है.