‘मकोका’ के समान गुजरात में ‘गुजटोक’ पारित
गांधीनगर | समाचार डेस्क: गुजरात विधानसभा ने मंगलवार को आतंकवाद तता संगठित अपराध विरोधी जीसीटीओसी विधेयक पारित कर दिया है. उम्मीद की जा रही है कि केन्द्र में एनडीए की सरकार होने कारण राष्ट्रपति इसे इस बार मंजूरी दे देंगे. गौरतलब है कि इससे पहले राष्ट्रपति कलाम तथा पाटिल ने इसे वापस कर दिया था. इस जीसीटीओसी विधेयक में की कई धारायें विवादस्पद है जिसके कारण से कई संगठन इसका विरोध कर रहें हैं. जिनमें पुलिस को सबूत जुटाने के लिये टेलीफोन टैप करने का अधिकार देना, पुलिस के उच्चाधिकारी के सामने दिया गया बयान अदालत में मान्य होना तथा पुलिस को आरोप पत्र पेश करने के लिये तीन की जगह छः माह का समय देना शामिल हैं. विपक्ष के कड़े विरोध और सदन से बहिर्गमन के बीच गुजरात विधानसभा ने गुजरात आतंकवाद तथा संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक मंगलवार को पारित कर दिया. प्रस्तावित कानून का उद्देश्य राज्य में आतंकवाद व संगठित अपराध से निपटना है. यह विधेयक साल 2003 से ही लटका पड़ा है, जब इसे राज्य के तत्कालीन गृहमंत्री अमित शाह ने इसे पेश किया था.
विधानसभा में बहुमत के कारण विधेयक पारित कराने में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी सरकार को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी, लेकिन अतीत में राष्ट्रपति तीन बार इस विधेयक को लौटा चुके हैं.
पहली बार इस विधेयक को साल 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे.अब्दुल कलाम ने लौटा दिया था. उस वक्त केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार थी.
विधेयक के संशोधित स्वरूप को साल 2008 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने खारिज कर दिया था. उस वक्त केंद्र में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की पहली सरकार थी. बाद में राज्य के राज्यपाल ने इस विधेयक के कानून बनने में अड़ंगा लगा दिया था.
विधानसभा में विधेयक पेश करते हुए प्रदेश के गृह मंत्री रजनी पटेल ने कहा, “यह कानून समय की मांग है. केवल आतंकवाद ही नहीं, बल्कि संगठित अपराध से भी कड़ाई से निपटने की जरूरत है.”
कांग्रेस नेता शक्ति सिंह गोहिल ने कहा, “सरकार वोट बैंक की राजनीति कर रही है. विधेयक का केवल नाम बदला गया है. विधेयक की सामग्री जस की तस है. सरकार ने हमारे द्वारा उठाए गए तकनीकी मुद्दों को भी नहीं स्वीकारा.”
गुजरात आतंकवाद एवं संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक के नाम से यह विधेयक महाराष्ट्र के महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून की तर्ज पर ही है. विधेयक का नया प्रारूप संशोधनों के साथ है.
आलोचकों व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के मुताबिक, अदालत में सबूत के रूप में पेश करने के लिए यह पुलिस को टेलीफोन टैपिंग सहित कई अधिकार प्रदान करता है.
इस विधेयक के अन्य प्रावधानों में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के समक्ष की गई स्वीकारोक्ति अदालत में सबूत के रूप में पेश करने के लिए मान्य होगी. कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि इस कानून के परिणामस्वरूप मनमाना बयान लेने के लिए हिरासत में संदिग्ध का उत्पीड़न किया जा सकता है.
विधेयक के एक अन्य प्रावधान के मुताबिक, यह संदिग्ध के 15 दिनों की हिरासत के बजाय 30 दिनों के हिरासत की मंजूरी देता है, और पुलिस आरोपी के खिलाफ आरोप पत्र वर्तमान में 90 दिनों की जगह 180 दिनों में दाखिल कर सकती है.