शेर नहीं, गुजरात को नाक प्यारी
नई दिल्ली | संवाददाता: गुजरात के गिर से कुछ एशियाई शेरों को मध्यप्रदेश के कूनो-पालपुर लाने को भले सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी मिल गई हो लेकिन गुजरात सरकार शेरों पर अपना एकाधिकार नहीं खोना चाहती. भले ही गिर के सारे शेर किसी महामारी या आग लगने की हालत में हमेशा-हमेशा के लिये खत्म हो जायें. देश के कई पर्यावरण प्रेमियों ने कहा है कि गुजरात सरकार को शेरों की नहीं, अपनी प्रतिष्ठा की चिंता है.
गुजरात सरकार एक बार फिर पूरे मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जा सकती है और इस मुद्दे को लंबा खिंचा जा सकता है. गुजरात सरकार के प्रवक्ता नितिन पटेल ने कहा कि आदेश का अध्ययन करने के बाद आगे की रणनीति पर विचार किया जाएगा. मतलब ये कि मोदी की सरकार फिलहाल इन शेरों को मध्यप्रदेश भेजने के मूड में नहीं है.
गौरतलब है कि भारत में विलुप्तप्राय एशियाई शेर केवल गुजरात के गिर में हैं. कुछ समय पहले नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ ने आशंका जताई थी कि अगर इस इलाके में किसी कारण से महामारी फैलती है या जंगल में आग लगती है तो शेरों की यह प्रजाति हमेशा-हमेशा के लिये खत्म हो जाएगी.
इसके लिये नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ ने कुछ एशियाई शेरों को मध्यप्रदेश के कूनो-पालपुर अभयारण्य में शिफ्ट करने की योजना बनाई थी. लेकिन गुजरात सरकार इन शेरों को मध्यप्रदेश भेजने के लिये तैयार नहीं हुई.
इसके बाद इस मामले में एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुये जस्टिस केएस राधाकृष्णन और जस्टिस चंद्रमौलि कुमार प्रसाद की पीठ ने नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ के फैसले को सही ठहराते हुये गुजरात सरकार को आदेश दिया है कि वह शेरों की शिफ्टिंग की कार्रवाई पर रोक नहीं लगाये.
फैसले में कहा गया कि शेरों की लुप्त प्रजाति पर मंडरा रहे खतरे को देखते हुये वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को बिना देर किये जल्दी से जल्दी इन शेरों को कूनो-पालपुर शिफ्ट करने की व्यवस्था करनी चाहिये.