गेहूं पर आयात शुल्क: इधर कुंआ उधर खाई
नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: नोटबंदी के बाद एक और मुद्दा है जो मोदी सरकार के लिये परेशानी का सबब बन सकता है. हाल ही में केन्द्र सरकार ने गेहूं के आयात पर लगने वाले 10 फीसदी शुल्क को हटा दिया है. इससे पहले सितंबर माह में गेहूं के आयात पर लगने वाले शुल्क को 25 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी कर दिया था.
सितंबर माह में गेहूं के आयात शुल्क में 15 फीसदी की कमी करने के बाद देश के बड़े कारोबारियों ने विदेशों से करीब 5 लाख टन गेहूं आयात किया है.
अब गेहूं पर से आयात शुल्क पूरी तरह से हटा लेने से इस मैदान के बड़े खिलाड़ी जैसे कारगिल, लुइस ड्रेयफस और ग्लेनकोर बड़े पैमाने पर विदेशों से गेहूं का आयात करेंगे तथा भारतीय बाजार में कम दामों में बेचेंगे.
गौरतलब है कि किसी भी वस्तु को विदेशों से आयात करने पर देसी उत्पादकों को गलाकाट प्रतियोगिता से बचाने के लिये उस पर आयात शुल्क लगाया जाता है. ताकि आयातित वस्तु का दाम भी देसी उत्पाद के बराबर का हो जाये. इस तरह से सरकार को राजस्व की प्राप्ति होती है तथा देसी उत्पादकों के हितों को चोट भी नहीं पहुंचती है.
गेहूं के मामले में सरकार की मंशा आयात शुल्क हटा देने का यह है कि इससे भारतीय बाजारों में गेहूं तथा आटे के दाम कम हो. यह दिगर बात है कि इससे विदेशी कंपनियों को गेहूं को भारतीय बाजार में घुसपैठ करने का सुनहरा अवसर मिलने जा रहा है.
दूसरी तरफ, इससे देश में गेहूं का उत्पादन करने वालों किसानों को नुकसान होगा. लोग उनके गेहूं को खरीदने की बजाये विदेशों से आयातित गेहूं व उससे बने आटे को खरीदेंगे.
उल्लेखनीय है कि देश में सबसे ज्यादा गेहूं का उत्पादन उत्तर प्रदेश तथा पंजाब में होता है. इसमें उत्तर प्रदेश गेहूं के उत्पादन के मामले में पहले नंबर पर है तथा पंजाब दूसरे नंबर पर है. उत्तर प्रदेश की 76 फीसदी आबादी तथा पंजाब की 63 फीसदी आबादी खेती पर ही निर्भर है.
इस कारण से सबसे ज्यादा नुकसान इन्हीं दोनों राज्यों के गेहूं उत्पादक बड़े, छोटे एवं मध्यम किसानों पर पड़ेगा. यहां के किसानों को अपने गेहूं को कम कीमत पर बेचना पड़ेगा. जिससे उन्हें नुकसान होगा. इससे गेहूं उत्पादक किसानों में केन्द्र सरकार के खिलाफ माहौल बनेगा.
अब इन दोनों राज्यों में विधानसभा के चुनाव भी होने हैं. भाजपा, खास तौर पर उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव को महत्व दे रही है. भाजपा, उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के नतीजों को दोहराना चाहती है. इस तरह से भाजपा लोकसभा चुनाव के ट्रेंड को जारी रखना चाहती है.
ऐसे में उत्तर प्रदेश तथा पंजाब के किसानों की नाराजगी से भाजपा को कितना नुकसान होता है यह चुनाव नतीजे आने पर ही मालूम चलेगा.
इस बीच नोटबंदी पर हमलावर रुख अपनाये हुये विपक्ष को गेहूं के आयात शुल्क को हटा देने के फैसले से एक और मुद्दा मिल गया है जिसे वह विधानसभा चुनावों में जरूर भुनवाने का प्रयास करेगी. मोदी सरकार को किसान विरोधी के रूप में पेश करेगी. जबकि गेहूं-आटे के दाम कम होने का लाभ सीधे आम जनता को मिलेगा.
इस तरह से गेहूं के आयात शुल्क को हटाना मोदी सरकार के लिये इधर कुंआ उधर खाई के समान है.