राष्ट्र

तीन तलाक का आधिकारिक विरोध

नई दिल्ली | समाचार डेस्क: केन्द्र सरकार ने तीन तलाक का सुको में विरोध किया है. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में केन्द्र सरकार ने तीन तलाक का विरोध किया है. केन्द्र सरकार के हलफनामे में कहा गया है की तीन तलाक महिलाओं के साथ लैंगिग तौर पर भेदभाव करता है.

हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा है कि पर्सनल लॉ के आधार पर किसी को संवैधानिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता. तीन तलाक महिलाओं के साथ लैंगिक भेदभाव है. महिलाओं की गरिमा के साथ किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता.

तीन तलाक के मामले में ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड पहले ही सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर चुका है. हलफनामे में कहा है कि पर्सनल लॉ को सामाजिक सुधार पर दोबारा से नहीं लिखा जा सकता. तलाक की वैधता सुप्रीम कोर्ट तय नहीं कर सकता.

गौरतलब है कि तीन तलाक कई मुस्लिम देशों में बैन है. भारत के पड़ोसी पाकिस्तान में साल 1961 तथा बांग्लादेश में 1971 से बैन है. वहीं इजीप्ट में 1929 से, सूडान में 1935 से तथा सीरिया में 1953 से इस तीन तलाक पर बैन लगा दिया गया है.

उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल की रहनेवाली इशरत ने याचिका दाखिल कर तीन तलाक़़, निकाह हलाला और बहुविवाह को अंसवैधानिक और मुस्लिम महिलाओँ के गौरवपूर्ण जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन बताया है. दरअसल, इशरत के पति ने दुबई से फ़ोन पर उसे तलाक़़ दे दिया था.

इस याचिका से पहले शायरा बानो, नूरजहां नियाज, आफरीन रहमान नाम की पीडि़त महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगा कर ट्रिपल तलाक को चुनौती दी थी. इनके अलावा फरहा फैज नाम की एक महिला ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर ट्रिपल तलाक़ और मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड को चुनौती दी है.

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