छत्तीसगढ़ में गुड़ गोबर हुई गोबर ख़रीदी योजना?
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में सरकार की गोबर ख़रीदी योजना सवालों के घेरे में है. 2020-21 के मुकाबले 2021-22 में गोबर खरीदी एक तिहाई से भी कम रह गई है.
हालत ये है कि कई ज़िलों में कागज़ों पर ही गोबर की ख़रीदी हो रही है और कागज़ों में ही कंपोस्ट खाद का निर्माण भी हो जा रहा है.
ज़ाहिर है, इसकी बिक्री भी कागजों में ही हो रही है.
छत्तीसगढ़ सरकार ने जब गोबर ख़रीदी की अभिनव योजना की शुरुआत की थी तो पूरे देश की नज़रें इस योजना पर लगी हुई थीं.
इसे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बदलाव के एक बड़े प्रयोग के तौर पर देखा गया था.
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इसे क्रांतिकारी शुरुआत बताई थी.
लेकिन अब जबकि इस योजना के दो साल से अधिक हो चुके हैं, आंकड़े बता रहे हैं कि गोबर ख़रीदी योजना की हालत पतली है.
जिन उम्मीदों और सपनों के साथ इस योजना को शुरु किया गया था, वो उम्मीदें धरातल पर दम तोड़ती नज़र आ रही हैं.
20 जुलाई 2020 से 31 मार्च 2021 तक के राज्य में 45,72,157.08 क्विंटल गोबर ख़रीदी हुई.
इन 254 दिनों का औसत देखें तो प्रति दिन लगभग 18,000.61 क्विंटल गोबर की ख़रीदी हुई.
राज्य सरकार जिस तरह इस योजना को प्रचारित कर रही थी, उससे अनुमान था कि आने वाले दिनों में यह आंकड़ा और तेज़ी से बढ़ेगा.
लेकिन मामला उलटा हो गया.
इस साल विधानसभा में जो आंकड़े पेश किये गये हैं, उससे पता चलता है कि अगले साल यानी 1 अप्रैल 2021 से 31 मार्च 2022 तक, केवल 21,27,006.39 क्विंटल की ही ख़रीदी हुई.
इस तरह इन 364 दिनों के आंकड़े को देखें तो हर दिन केवल 5843.42 क्विंटल गोबर की ही ख़रीदी हुई.
एक साल में ही 18,000.61 हज़ार क्विंटल प्रतिदिन का यह आंकड़ा घट कर केवल 5843.42 क्विंटल रह जाना, इस गोबर ख़रीदी योजना की कहानी खुद ही कह रहा है.
राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह इस योजना पर पहले ही सवाल उठा चुके हैं. भाजपा विधायक सौरभ सिंह ने एक के बाद एक आंकड़े सामने रख कर गोबर ख़रीदी योजना के भ्रष्टाचार को उजागर किया है. विपक्ष के दूसरे नेता भी इस योजना को लेकर संशय जताते रहे हैं.
लेकिन कांग्रेस पार्टी इसे महज राजनीति बता कर उठने वाले सवालों को खारिज करती रही है.
हालांकि गोबर पर राजनीति अपनी जगह है लेकिन यह भी सच है कि राज्य के अलग-अलग इलाकों से लगातार इस तरह की ख़बरें आती रही हैं, जिसमें कहीं सैकड़ों क्विंटल गोबर बह जाने की शिकायत आई है तो कहीं दो बैल रखने वाले किसान द्वारा सात दिनों में 6400 क्विंटल गोबर बेचने को लेकर विवाद हुआ है.
कुछ ज़िलों में किसानों से गोबर ख़रीदने के बजाये पड़ोसी इलाकों से कई ट्रैक्टर गोबर ख़रीदने के आरोप लगे हैं.
कई जिलों में ऐसे भी मामले सामने आए हैं, जिसमें बिना गोबर ख़रीदी के ही लाखों रुपये का भुगतान हो गया.
जितना गोबर ख़रीदा, उससे अधिक दिया खाद बनाने के लिए
राज्य सरकार के आंकड़े देखें तो गोबर और वर्मी कंपोस्ट की असली कहानी साफ़-साफ़ नज़र आती है.
गरियाबंद ज़िले में 2021-22 में 52,175 क्विंटल गोबर की ख़रीदी हुई लेकिन दावा किया गया कि खाद बनाने के लिए 78,948 क्विंटल गोबर का उपयोग किया गया है.
सूरजपुर ज़िले में 22,230 क्विंटल गोबर की ख़रीदी हुई लेकिन खाद निर्माण के लिए 69,484 गोबर के उपयोग के आंकड़े काग़ज़ों में दर्ज हैं.
गौरेला-पेंड्रा-मरवाही ज़िले में इस दौरान 17,559 क्विंटल गोबर की ख़रीदी हुई लेकिन खाद बनाने के लिए 31,421 क्विंटल गोबर उपलब्ध कराने की जानकारी दी गई है.
कम गोबर ख़रीदा, बना दिया दुगना से अधिक खाद
आम तौर पर गोबर से वर्मी कंपोस्ट बनाने की प्रक्रिया में 30 से 40 फीसदी की कमी आती है. यानी एक किलो गोबर से 600 से 700 ग्राम वर्मी कंपोस्ट का निर्माण होता है.
लेकिन छत्तीसगढ़ के कई ज़िलों में कमाल हो गया.
कहीं गोबर की तुलना में दोगुना से अधिक वर्मी कंपोस्ट बना दिया गया तो कहीं केवल 10 फीसदी वर्मी कंपोस्ट बनने की जानकारी दी गई है.
सरगुजा ज़िले में 2021-22 में 12,385 क्विंटल गोबर का उपयोग वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए किया गया. लेकिन इतने गोबर से 29,371 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट बना लिया गया.
बस्तर ज़िले में 2020-21 में 73,199 क्विंटल गोबर से केवल 2,974 क्विंटल खाद बन पाया लेकिन अगले वर्ष 41,150 क्विंटल से 28,961 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट बन गया.
बीजापुर ज़िले में भी 2020-21 में 41,433 क्विंटल गोबर से महज 642 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट बन पाया.
लेकिन इसी बीजापुर में 2022-23 में जून तक के आंकड़े के अनुसार 9,387 क्विंटल गोबर से 10,797 क्विंटल खाद बना दिया गया.