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गैस पाइप लाइन बिछाने गेल की मनमानी, किसान की मौत

रायपर | संवाददाताः छत्तीसगढ़ में एलपीजी गैस पाइप लाइन बिछा रही गेल कंपनी की मनमानी से किसान परेशान हैं.कंपनी की कारगुजारियों के कारण किसानों की जान पर बन आई है.

जांजगीर-चांपा जिले का एक किसान खेत छीन जाने और मुआवजा नहीं मिलने से काफी तनाव में आ गया और उसकी मौत हो गई.

किसान के बेटे ने भारतीय गैस प्राधिकार लिमिटेड यानी गेल के अधिकारियों को मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया है.

आरोप है कि गैस पाइप लाइन बिछाने के लिए गेल कंपनी, किसानों की अनुमति के बिना उनके खेतों को खोदकर पाइप लाइन बिछा रही है. इसके एवज में किसानों को मुआवजा राशि भी नहीं दिया जा रहा है.

पाइप लाइन का काम छत्तीसगढ़ के कई जिलों में चल रहा है. सभी जगह इसका विरोध भी हो रहा लेकिन किसानों की कहीं सुनवाई नहीं हो रही है.

मौत का आरोप

जांजगीर-चांपा जिले के अकलतरा थाना के ग्राम कोटगढ़ निवासी किसान सावन धीवर के खेत में भी गेल कंपनी ने पाइपलाइन बिछाई है.

किसान के पास मात्र 23 डिसमिल जमीन थी और उसी से किसान और परिवार का जीवकोपार्जन चलता था.

कंपनी ने खेत में लगभग 7 फीट गड्ढा खोद दिया था, जिससे किसान के लिए अपने खेत के दूसरे हिस्से में भी आना-जाना मुश्किल हो रहा था.

यही कारण है कि किसान इस वर्ष खेत में धान भी नहीं लगा पाया था.

वह मुआवजा के लिए गेल कंपनी के साथ सरकारी दफ्तरों का काफी दिनों से चक्कर लगा रहा था. तहसीलदार और एसडीएम को ज्ञापन सौंपने के अलावा जनसमस्या निवारण शिविर में भी फरियाद लेकर पहुंचा था.

कहीं भी सुनवाई नहीं होने से किसान सावन धीवर तनाव में था. इस बीच 29 जुलाई को किसान की हार्ट अटैक से मौत हो गई.

मृतक किसान सावन धीवर के बेटे श्यामलाल धीवर ने थाने में शिकायत करते हुए कंपनी के अधिकारियों पर धमकी देने का आरोप लगाते हुए, पिता की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया है.

श्यामलाल धीवर ने गेल के अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की है.

दुर्ग में भी विरोध

दुर्ग जिले के 21 गांवों से होकर गेल इंडिया कंपनी की मुंबई नागपुर झारसुगुड़ा गैस पाइप लाइन गुजर रही है. जिले के दुर्ग और धमधा ब्लॉक के 850 से अधिक किसानों की जमीन पर गैस पाइप लाइन बिछा रही है.

गेल पर आरोप है कि किसानों की अनुमति के बिना उनके खेतों को खोद दिया गया है. किसानों ने कंपनी के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए दुर्ग में धरना-प्रदर्शन करते हुए कलेक्टर के नाम ज्ञापन सौंपा था.

कंपनी ने जिले के कई गांवों में खेतों में लगी फसल को गाड़ी से रौंदते हुए खुदाई की है.

अहिवारा में भी खड़ी फसल को तबाह किया गया है.

इसके विरोध में युवा कांग्रेस ने तहसील कार्यालय के सामने प्रदर्शन किया था.

किसानों का कहना है कि गेल कंपनी किसानों को गुमराह कर रही है. हर गांव के केवल 4-5 किसानों के खाते में मामूली पैसा डालकर बाकी किसानों के खेतों में पाइप लाइन बिछा दिया है.

विरोध करने पर दबाब डाला जाता है. मुआवजा बाद में देने का आश्वासन देते हैं लेकिन अधिकांश किसानों को मुआवजा नहीं मिला है.

दुर्ग के किसान नेता रवि ताम्रकार ने कहा- गेल कंपनी वाले पिछले दो साल से किसानों को परेशान करके रखे हुए हैं. किस आधार पर इन्होंने मुआवजे का निर्धारण किया है, यह अब तक समझ से बाहर है.

रवि ताम्रकार ने आरोप लगाया कि कंपनी ने साल भर पहले जो लिखित मुआवजा प्रकरण बनाया था, उसमें एक चौंथाई की कटौती कर दी गई है.

ताम्रकार ने कहा कि दो-तीन दिन पहले ही ढौर और अहेरी में खड़ी फसल पर गाड़ी चलाते हुए खुदाई कराई गई है.

अपनी फसलों को रौंदे जाने का एक किसान रघुवर साहू ने विरोध किया तो उसे थाने में रात भर बैठा दिए थे.

कंपनी के अधिकारियों के साथ खड़ी फसलों को रौंद कर पाइपलाइन बिछाने के लिए अहिवारा के तहसीलदार साथ में पहुंचे थे.

गेल ने सर्वे कब कराया पता ही नहीं चला

पाइप लाइन बिछाने के लिए किसानों के खेतों का सर्वे गेल द्वारा कब हुआ, किसानों को पता ही नहीं चला.

किसानों को पहली नोटिस मार्च 2022 में मिली तब जानकारी हुई.

दावा-आपत्ति के लिए 21 दिन का समय दिया गया था. लेकिन जानकारी के अभाव में अधिकांश किसान आपत्ति ही नहीं कर पाए.

आपत्ति आवेदन भी जिले से बाहर राजधानी रायपुर के दफ्तर में करना था.

इस बीच अंतिम अधिसूचना जारी हो गई, और काम शुरू हो गया.

पंचनामा में अनियमितता

सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पटेल ने बताया कि पंचनामा में काफी अनियमितता है. साल 2022 में पंचनामा बनाया गया.

जिस समय पंचनामा बनाया गया, उस समय नियमित पटवारी उपलब्ध नहीं थे. किसानों को गोपनीयता का हवाला दे कर पंचनामा की प्रति भी नहीं दी गई. अब किसानों को चौक-चौराहों में पंचनामा की प्रति दी जा रही है.

संदीप पटेल ने आरोप लगाया कि किसानों के पास मुआवजा को लेकर जानकारी अभी भी स्पष्ट नहीं है. किसानों को जो साल भर पहले सहमति पत्र दिया गया था, उसमें किसान का नाम, जिला, खसरा नंबर लिखा गया है लेकिन रकम के स्थान को खाली छोड़ दिया गया है. उसी पत्र में किसानों से हस्ताक्षर करा लिए थे.

आरोप है कि कई गांव के सहमति पत्र में रकम लिखा गया था. अब उन्ही किसानों को दोबारा पर्ची भेजा जा रहा है, उसमें राशि में काफी अंतर है. पथरिया के एक किसान को पहले 42 हजार मुआवजा मिलना था, अब वह घटकर 14 हजार हो गया है.

हमने इस संबंध में गेल कंपनी का पक्ष लेने की कोशिश की लेकिन इस बारे में कोई बात करने के लिए तैयार नहीं हुआ.

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