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चौथी औद्योगिक क्रांति से सर्वनाश

रायपुर | जेके कर: जिस चौथी औद्योगिक क्रांति की बात की जा रही है उससे देश तथा दुनिया का सर्वनाश होगा. गत माह दावोस में हुये विश्व आर्थिक मंच में चौथी औद्योगिक क्रांति की चर्चा हुई. कुछ ने इसका विरोध किया तो कईयों ने इसका समर्थन किया. दावे किये गये कि इससे रोजगार बढ़ेगा, ग्रामीण आबादी की आय बढ़ेगी, खेती कंटेनर में भी की जा सकेगी जिसमें पानी कम लगेगा, 3डी प्रिंटिंग से उत्पादन होने से परिवहन खर्च तथा उसमें लगने वाली ऊर्जा बच जायेगी तथा इससे एक विकेन्द्रीकृत लोकतांत्रिक समाज का निर्माण होगा. जाहिर है कि इस औद्योगिक क्रांति से छत्तीसगढ़ भी अछूता नहीं रहेगा. छत्तीसगढ़ खबर उस पर एक रिपोर्ट प्रकाशित करना चाहता है.

औद्योगिक क्रांतियां
गौरतलब है कि पहली औद्योगिक क्रांति 1700 ईस्वी के आसपास शुरू हुई, जिसमें मानवीय शक्ति के स्थान पर भाप इंजन की शक्ति का उपयोग शुरू हुआ.

दूसरी क्रांति 1900 इस्वी के आसपास शुरू हुई. इसमें बिजली से चलने वाली मशीनों का उपयोग शुरू हुआ.

तीसरी क्रांति 1960 के दशक में शुरू हुई, जो कंप्यूटर और सूचना प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रॉनिक्स और स्वचालित मशीनों पर आधारित थी.

चौथी औद्योगिक क्रांति आज की क्रांति है, जो प्रमुखत: इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IOT), अनवरत इंटरनेट कनेक्टिविटी, तेज रफ्तार संचार, डिजाइन का लघु रूपांतरण और 3डी प्रिंटिंग पर आधारित है. 3डी प्रिंटिंग के तहत वस्तुओं का विनिर्माण और उत्पादन उसी जगह पर हो सकता है, जहां उसकी जरूरत है. भारत जैसे देश खासतौर से आईओटी और 3डी प्रिंटिंग के जरिए चौथी औद्योगिक क्रांति का हिस्सा बन सकते हैं.

सीजीखबर की पड़ताल
चौथी औद्योगिक क्रांति की पड़ताल करने के लिये छत्तीसगढ़ खबर ने जानकारों से सवाल किये कि क्या कथित चौथी औद्योगिक क्रांति से छत्तीसगढ़ तथा देश में कृषि उत्पादन बढ़ेगा? क्या इससे छत्तीसगढ़ तथा देश में रोजगार बढ़ेगा? क्या इससे छत्तीसगढ़ तथा देश में विकेन्द्रीकृत लोकतांत्रिक समाज का निर्माण होगा.

छत्तीसगढ़ खबर की पड़ताल से जो कुछ निकलकर आया है वह बड़ा ही भयावह है. इसके अनुसार इस चौथी औद्योगिक क्रांति से मुठ्ठीभर लोगों को ही फायदा होगा तथा अधिसंख्य आबादी पर चार्ल्स डारविन का सिद्धांत “survival of the fittest” फिर से लागू हो जायेगा. यह मानव समाज को उस पड़ाव तक ले जायेगी जहां Harakiri ही रास्ता बच जायेगा.

हालांकि, अभी चौथी औद्योगिक क्रांति अपनी भ्रूण अवस्था से निकलना चाह रहा है तथा प्रसव पीड़ा के दौर से गुजर रहा है. आगे क्या होगा वह भी भविष्य अपने गर्भ में छुपाये बैठा है. दावोस में चौथी औद्योगिक क्रांति को लेकर काफी हंगामा हुआ. हम उस कथित चौथी क्रांति पर अपनी पड़ताल पेश कर रहें हैं.

यह तीसरी औद्योगिक क्रांति की असफलता की स्वीकारोक्ति है
भोपाल में रहने वालें वामपंथी चिंतक हिन्दी पट्टी के जाने-माने वामपंथी नेता बादल सरोज का कहना है कि चौथी औद्योगिक क्रान्ति का दावा दिलचस्प है. दिलचस्प इस मामले में है कि एक तो यह औद्योगिक क्रान्ति की मूल समझदारी का नकार है, दूसरे यह जिसे तीसरी औद्योगिक क्रान्ति बताया गया है उसके स्खलन और असफल हो जाने की सार्वजनिक स्वीकारोक्ति है. रूपक में कहा जाए तो यह अनिर्मित और अनपकी रह गयी ईंटों से नयी तामीर करने का दावा है. इस पर चर्चा और अनुमान, अंदेशे और मीजान तो लगाए जा सकते हैं किन्तु हासिल कुछ नहीं होगा.

वर्ल्ड इकनोमिक फोरम के संस्थापक और सीईओ क्लॉस श्वाब के ही शब्दों में कहें तो “यह समझदारी साझी करना जरूरी है कि नयी तकनीक समूची मानवता की ज़िंदगी को किस तरह प्रभावित कर रही है. उनके आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक जीवन और मानवीय परिवेश पर किस प्रकार का असर डाल रही है. इससे ज्यादा उम्मीदों और इससे अधिक विनाश का समय पहले कभी नहीं रहा.” संस्थापक की चिंता जायज है. नयी टेक्नॉलॉजी की संभावनाओं और उसके ऊपर नियंत्रण के स्वरुप के अंतर्विरोधी रिश्तों ने चिंताएं अधिक उत्पन्न की हैं.

जब बादल सरोज से पूछा गया कि क्या कथित चौथी औद्योगिक क्रांति से कृषि उत्पादन बढ़ेगा? तो उन्होंने कहा इसकी शुरुआत इस आंकलन से की जानी चाहिए कि क्या उत्पादन बढ़ाने के वर्तमान सारे तरीके आजमाए जा चुके हैं? मध्यप्रदेश में एक तिहाई से भी कम कृषि भूमि एक से अधिक फसल के लिए उपयोग में आ रही है. सिंचाई एक समस्या है, मगर बीज-खाद और उपज का बाजार ज्यादा बड़ी समस्या है. कंटेनर खेती से मंडी या लागत की अधिकता का संकट दूर नहीं होगा. लिहाजा बहुतायत खेतिहर आबादी के लिए यह दूर की कौड़ी रह जाएगी. बड़े पूंजी निवेश की क्षमता वाले मुट्ठी भर लोग इसका उपयोग कर भी लेंगे तो उनके उत्पादन से होने वाले लाभों की तुलना में उनके चलते होने वाला विस्थापन कहीं विकराल होगा.

चौथी औद्योगिक क्रांति से रोजगार बढ़ने के दावों पर उन्होंने कहा निस्संदेह नहीं बढ़ेगा. गुजरे 25 वर्ष का विश्व बैंक सहित समस्त अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों का आंकलन है कि शुरू के दशक में यह “रोजगार हीन” विकास Jobless growth रहा. बाद के डेढ़ दशक में यह “रोजगार छीन ” विकास jobloss growth रहा. दुनिया के तजुर्बे से अलग परिणाम कैसे उत्पन्न हो सकते हैं.

क्या इससे विकेन्द्रीकृत लोकतांत्रिक समाज का निर्माण होगा के जवाब में बादल सरोज ने कहा लोकतंत्र समता, समानता और भागीदारी का सूत्र है. विषमतायें बढ़ाने वाली आर्थिक सामाजिक स्थिति लोकतंत्र में संकुचन ही पैदा करती है. पिछले दौर में परिपक्व लोकतंत्रों में लोकतांत्रिक अधिकारों के छीनने के उदाहरण दिखे है. विकसित होते लोकतंत्र में लोक और तंत्र दोनों ही असुरक्षित हुए हैं. पूंजी का केंद्रीकरण लोकतंत्र का विकेंद्रीकरण मुहैया नहीं करा सकता वह सत्ता का केंद्रीकरण ही लाता है.

डिजाइन्स के दुनिया भर में पहुँचने से माल का उत्पादन विकेंद्रीकृत होने की बात की गयी है. यह कमोबेश एक दशक से जारी भी है. मगर सवाल यह है कि फ्रांस से लेकर लाइबेरिया और भारत से लेकर साइबेरिया तक उन डिजाइंस के आधार पर उत्पादन करने वाली कंपनी तो एक ही है या उसकी ही कोई सब्सिडियरी है. नतीजे में दाम घटने की बजाय एकाधिकार बढ़ा है और मुनाफे का केंद्रीकरण बढ़ा है .. सामाजिक संस्थाएं इससे उलट आचरण करेंगी, अर्थात विकेंद्रीकृत और लोकतांत्रिक हो जाएंगी यह संभव ही नहीं है.

फिर रास्ता क्या है के जवाब में उन्होंने सीजीखबर को बताया बहुत ही साधारण सा रास्ता है. विज्ञान और तकनीकी उपलब्धिया समूचे मानव समाज की साझी संपत्ति हैं. इनका नियंत्रण भी समूचे मानव समाज के हाथों में/ उसके हितों के अनुकूल रहे. प्रगति के मानदंड सुविधाओं और सेवाओं के मानव समाज में विस्तार के हों- मुनाफों के नहीं.

उत्पादन लागत में बढ़ोतरी, बाजार की कमी तथा बेरोजगारी बढ़ेगी
चौथी औद्योगिक क्रांति से संबंधित सवालों के जवाब में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में रहने वाले कृषि मामलों के जानकार तथा समाजशास्त्री नंद कश्यप ने सीजीखबर से कहा चौथी औद्योगिक क्रांति में आधुनिकतम तकनीक के उपयोग पर बल दिया है जिससे कृषि क्षेत्र मे भी आधुनिकतम, यहां तक कि रोबोट और कम्प्यूटर के इस्तेमाल की गुंजाईश हो जाती है. जिससे उत्पादन तो कई गुना बढ़ जायेगा, साथ ही चौथी पीढी के बीज न सिर्फ अधिक उत्पादक हैं वे मौसम और तापमान वृद्धि को भी टालरेट कर लेते हैं. इसलिये साल भर फल और सब्जियों का उत्पादन होता है. इस तरह हमे लगातार फल सब्जिया मिलते रहता है.

उन्होंने आगे बताया टेक्नालाजी के और अधिक परिष्कृत होते जाने का मतलब यह भी है कि कृषि उत्पादन लागत में बढोत्तरी होना और बाज़ार की कमी के खतरे. तीसरी पीढी के ही तकनीक के कारण बडी तादात मे किसान खेती छोडने पर मज़बूर हुए हैं. चौथी क्रांति आधे से अधिक किसानो को खेती से बेदखल कर देगी और कृषि व्यापार (Agribusiness) बड़े कारपोरेट मॉल आदि मे सिमट जायेंगे. जिससे न सिर्फ किसान वरन फुटकर सब्जी विक्रेता भी बेरोजगार हो जायेंगे. चौथी औद्योगिक क्रांति तो सामन्य विशेषज्ञो को भी बेरोजगार करने वाली है.

नंद कश्यप ने कहा कि चौथी औद्योगिक क्रांति अपने दावों के ठीक विपरीत न सिर्फ सम्पत्ति के केंद्रीयकरण को तेज करेगा बल्कि हमारे सामाजिक ढांचे को भी तहस-नहस कर हमारी विकेंद्रीकृत पंचायती व्यवस्था को भी तोड़कर एक केंद्रीकृत, अति गरीब बहुल, चंद अमीरों वाले समाज जो लगभग सैन्य तानाशाही के अंदाज मे चलेगा को निर्मित कर लेगा.

उनके अनुसार वस्तुतः चौथी क्रांति white collar professional को भी बेरोजगार बनायेगा यानि डाक्टर, विष्लेशक, चार्टर्ड एकाउंटेंट यहां तक कि पत्रकार को भी रोबोट से बदल देगा. इसलिये अब जो बेरोजगारी होगी वह न सिर्फ आर्थिक विषमता लायेगा वरन पूरे मानवता पर ही प्रश्न चिन्ह लगा देगा. इसीलिये अब विकसित देशों मे तकनीक पर व्यक्तियो या कारपोरेट की जगह सामाजिक नियंत्रण की आवाज़ उठने लगी है.

मनुष्य का शोषण तथा कार्पोरेट का मुनाफा बढ़ायेगा
चौथी औद्योगिक क्रांति के बारें में छत्तीसगढ़ माकपा के सचिव संजय पराते ने छत्तीसगढ़ खबर के बताया कि किसी भी औद्योगिक क्रांति ने मानवता को शोषण से मुक्त नहीं किया है, बल्कि केवल मेहनतकशों के शोषण के रूप ही बदले हैं. इसका कारण यही हैं कि इन औद्योगिक क्रांतियों ने तकनीक विस्तार के रूप में पूंजीवादी शोषण को सुगम ही बनाया है. वास्तविकता यही है कि दुनिया में वैज्ञानिक व प्रौद्योगिकीय तकनीक की बदौलत पूंजीवाद ने उत्पादक शक्तियों के विकास की अपनी सामर्थ्य को और बढ़ाया ही है. आज वह नवउपनिवेशवाद के जरिये पूंजीवादी बाज़ार का विस्तार ही कर रहा है.

चूंकि पूंजीवादी व्यवस्था मुनाफे पर टिकी व्यवस्था होती है, यह औद्योगिक क्रांति उसके मुनाफे को अधिकतम करने में मददगार साबित होगी. ऐसी क्रांति घरेलू उद्योगों को बर्बाद करती है और घरेलू उत्पादकों को विस्थापित. आज जब पूरा विश्व आर्थिक संकट से गुजर रहा है और एक टिकाऊ समाज व्यवस्था के रूप में पूंजीवाद संकटग्रस्त है, कथित चौथी औद्योगिक क्रांति के जरिये वह इस संकट से निकालने का रास्ता खोज रहा है.

विश्व आर्थिक मंच मुख्यतः पूंजीवादी देशों के हितों को आगे बढाने का मंच है. यह मंच साम्राज्यवादी वैश्वीकरण को आगे बढाने में दिलचस्पी रखता है. वह अपने हितों की रक्षा के लिए राजकीय क्षेत्रों का विनिवेशीकरण करना चाहता है, खनिज संसाधनों पर निजी नियंत्रण स्थापित करना चाहता है, आत्म-निर्भर कृषि व्यवस्था का खात्मा करना चाहता है, व्यापार शुल्कों से मुक्त होना चाहता है….और इसके लिए मानव स्वभाव को बदलना चाहता है. इस बदलाव को लाने के लिए वह प्रगतिशील-जनवादी सांस्कृतिक मूल्यों पर भी आक्रमण करता है. इसलिए इसका चरित्र साररूप में तानाशाहीपूर्ण होता है. वह अपने मुनाफे के विस्तार के लिए जनतांत्रिक संस्थाओं, जनतांत्रिक प्रक्रियाओं तथा जनता की संप्रभुता को भी कमजोर करता है.

इस औद्योगिक क्रांति से न छत्तीसगढ़ में कृषि उत्पादन बढेगा, न रोजगार और न ही विकेन्द्रीकृत लोकतांत्रिक समाज का निर्माण होगा. हां, छद्म राष्ट्रवाद के उन्माद को भड़काकर कारपोरेटों को देश बेचने का जो नज़ारा आज दिख रहा है, उसमें और तेजी ही आएगी.

इन तमाम प्रतिक्रियाओं के अलावा भी पाठकों से हमारा सवाल है कि क्या मशीने, मनुष्य का स्थान ले सकती है?

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