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छत्तीसगढ़ वन विभाग में लटके कई फैसले

रायपुर | संवाददाता : छत्तीसगढ़ के वन विभाग में जंगलराज कायम है. सरकारी फ़ैसलों पर दो साल बाद भी अमल नहीं हो रहा है. राज्य के अलग-अलग इलाकों में कैंपा मद से हज़ारों करोड़ रुपये खर्च कर दिए गये लेकिन वन्यजीवों से संबंधित ज़रुरी फैसलों की फाइलें जहां की तहां अटकी हुई हैं.

हालत ये है कि वन विभाग ने वाइल्ड लाइफ बोर्ड की नवंबर 2019 के बाद से कोई बैठक ही नहीं बुलाई है. यह तब है, जब वन विभाग में ताबड़तोड़ तबादले हुए हैं, वन विभाग तरह-तरह के आयोजन भी कर रहा है और बजट खर्च करने को लेकर अधिकारियों की बैठकें लगातार जारी है.

राज्य सरकार ने गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व बनाने का निर्णय नवंबर 2019 में हुई राज्य वन्य जीव बोर्ड की 11वीं बैठक में ले लिया था. इस टाइगर रिजर्व को राज्य सरकार ने ख़ूब प्रचारित भी किया था.


लेकिन करीब 2000 वर्ग किलोमीटर में प्रस्तावित टाइगर रिजर्व की फाइल, वन विभाग के अधिकारियों की आलमारियों में धूल खा रही हैं.

नवंबर 2019 में ही वाइल्ड लाइफ़ बोर्ड में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक में राज्य में शिकार और वन्य अपराधों को रोकने के लिये एसटीएफ के गठन का फ़ैसला किया गया था. इससे संबंधित यू ओ क्रमांक 494, दिनांक 30 मई 2020 और वन्यप्राणी 41/2697 16 जुलाई 2020 को भेजा गया था. लेकिन यह फाइल भी मंत्रालय में पड़ी हुई है.

29 मई 2020 को ही पत्र क्रमांक 2044 प्रमुख सचिव, वन विभाग की फाइल मंत्रालय में अटकी हुई है. प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्यप्राणी का यह प्रस्ताव वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम की धारा 38 यू के अंतर्गत राज्य में बाघों के संरक्षण के लिये मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाने का प्रस्ताव दिया गया था.

अचानकमार टाइगर रिजर्व और उदंती-सीतानदी टाइगर रिज़र्व में बाघों के संरक्षण व संवर्धन हेतु बाघ क्षेत्रों एवं बाघ विचरण क्षेत्रों को जोड़ने वाले स्थलों की पहचान करने के साथ साथ बाघों की संख्या में वृद्धि करने के लिये भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून से सहयोग प्राप्त करने का फ़ैसला लिया गया था. इस फ़ैसले पर अनुमति प्रदान करने की फाइल क्रमांक 5243, 27 जनवरी 2020 को भेजी गई थी.

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