विदेशी काला धन ही क्यों?
नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: देश में समानांतर काले धन पर चुप्पी क्यों? विदेशी बैंकों में जमा भारतीयों के काले धन पर राजनीतिक घमासान मचा हुआ है. वित्तमंत्री अरूण जेटली ने कहा है कि विदेशी काला धन रखने वालों के नाम उजागार करने से कांग्रेस पार्टी को शर्मिंदा होना पड़ सकता है.
बताया जा रहा है कि विदेशों में करीब 800 भारतीयों के धन जमा हैं फिर उनमें से 136 के नाम बताने की बात सवाल खड़े करती है कि क्या बाकी के धन सफेद हैं. इससे भी महत्वपूर्ण बात है कि भारत में समानांतर तौर पर चल रही काले धन को उजागार करने में कौन सी डबल टैक्सेशन ट्रीटी आड़े आ रही है.
मुहिम की दिशा विदेशों में जमा काले धन की ओर मोड़ दी गई है तथा भारत में चल रहे काले धन की ओर से ध्यान बंट सा गया है. जबकि, देश में विचरण कर रहें काले धन को पकड़ना ज्यादा आसान है. इसका कदापि भी यह अर्थ नहीं नहीं है कि विदेशों में जमा काले धन के मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाये.
भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवामी ने दावा किया था कि विदेशों में भारतीयों के करीब 25 लाख करोड़ रुपये जमा हैं. वहीं, काले धन के खिलाफ मुहिम तलाने वाले बाबा रामदेव के अनुसार विदेशों में भारतीयों के 2 लाख करोड़ रुपयों के काले धन हैं जबकि उससे पहले फिक्की का अनुमान 45 लाख करोड़ रुपयों का था. इन सब के बीच सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण 2013-14 के अनुमानों के अनुसार देश का सकल घरेलू उत्पादन 11 करोड़ 35 लाख 5 हजार 73 करोड़, करोड़ रुपये का है. जाहिर है कि उतनी बड़ी अर्थव्यवस्था में घरेलू काले धन का आकड़ा भी भारी-भरकम होगा.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने भारत के राजनीतिक दलों को मिले चंदे तथा उनके स्त्रोतों का अध्धयन किया है. उल्लेखनीय है कि भारत में राजनीतिक पार्टियों के लिए 20,000 रुपये से ज्यादा के चंदे की सभी जानकारियां चुनाव आयोग को सौंपना ज़रूरी है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स द्वारा सितंबर 2012 में जारी किये गये आकड़ों के अनुसार-
*सबसे बड़ी पांच पार्टियों ने 2004 से 2011 के बीच चंदे और आर्थिक सहयोग से लगभग 39 अरब रुपए की कमाई की.
*इसी तरह की कमाई में सबसे ऊपर है सत्तारुढ़ कांग्रेस पार्टी जिसके बाद भारतीय जनता पार्टी का नंबर आता है. इस सूची में बहुजन समाज पार्टी यहां तक कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी भी शामिल है. सबसे चौंकाने वाली बात ये कि इस धन का 20 फीसदी से भी कम हिस्सा आधिकारिक रुप से सार्वजनिक किया गया है.
*साल 2009 से 2011 के बीच कांग्रेस ने अपने धन का केवल 11.89 फीसदी और भाजपा ने अपनी कमाई के केवल 22.76 फीसदी हिस्से के बारे में जानकारी साझा की.
*वहीं मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी का कहना है कि उसे 2009-2010 के बीच 20,000 रुपए से ज्यादा का चंदा नहीं मिला. हालांकि इस दौरान पार्टी की कमाई का ब्यौरा एक अरब 60 लाख से ज्यादा है.
*सीपीआई एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसने अपनी कमाई के 57 फीसदी हिस्से का ब्यौरा सार्वजनिक किया है.
इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि राजनीतिक पार्टियों को उद्योग समूहों द्वारा दी जा रही चंदे की रकम काला धन हो. इसी तरह से एक अनुमान के अनुसार 2014 के लोकसभा चुनाव में करीब 30 हजार करोड़ की राशि खर्च की गई है. चुनाव में बंटने वाले कथित कैश रकम, साड़ी, शराब के लिये पैसा कहां से आता है इससे जनता अच्छी तरह से वाकिफ है. जरूरत इस बात की भी है कि लोकतांत्रिक सरकारों के चुनाव में काले धन का उपयोग न हो इसे रोका जाये. इस पर सवाल खड़े होतें हैं कि इस पुनीत कार्य को कौन अंजाम देगा, क्या राजनीतिक पार्टिया?
चुनाव की बात छोड़कर, रोजमर्रा के खरीद-फरोख्त में ही कितना काला धन पैदा होता है उसका हिसाब कौन रखेगा. प्रापर्टी डीलिंग में टैक्स की रकम बचाने के लिये क्या उसे कम करके दर्शाया नहीं जाता. टैक्स की चोरी वाले धन को काला धन नहीं तो और क्या कहा जा सकता है.
वास्तव में पूरी अर्थव्यस्था ही उस मोड़ पर खड़ी है जिसमें काले धन का बोलबाला है.सोने और हीरों के सारे आयात-निर्यात का हिसाब सफेद खातों में नहीं रखा जाता. विदेशियों को ठेके देने में उनसे अच्छी-खासी किक बैक वसूली जाती है जो कई सरकारी जांच से साबित हो चुकी है.
करीब-करीब देश की राजनीतिक तथा आर्थिक व्यवस्था ही काले धन को पनपने का मौका देती है. ऐसे में व्यव्स्था पर लगाम कसे बिना काले धन पर रोक लगाने की बात बेमानी है क्योंकि वर्तमान तथा भविष्य में पैदा होने वाले काले धन को रोकना भी उतना ही जरूरी है जितना भूतकाल में जमा किये गये काले धन को वापस लाना है. दिदेशों तथा देश के काले धन को एक समान प्रथमिकता देना ही पड़ेगा.