छत्तीसगढ़ में प्रदूषण फैलाती औद्योगिक राख
रायपुर | एजेंसी: छत्तीसगढ़ में प्रदूषण एक विकराल समस्या बनती जा रही है. सूबे में लगे उद्योगों, ऊर्जा संयंत्रों, लौह उत्पादक कारखानों एवं अन्य उद्योगों से सालाना 2.4 करोड़ टन राख, फ्लाई-ऐश उत्सर्जित होती है.
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, 2013 में देश में 17.5 करोड़ टन राख उत्सर्जित हुई, जबकि इस्तेमाल में सिर्फ 55.6 फीसदी ही लाई गई. छत्तीसगढ़ में आंकड़ा इससे भी अधिक चौंकाने वाला रहा, जहां सिर्फ 26.97 फीसदी राख का ही इस्तेमाल हो पाया. यह राष्ट्रीय औसत से काफी कम है.
एक गणना के मुताबिक 1,000 मेगावॉट बिजली उत्पादन करने वाले संयंत्र में 50 लाख टन कोयले की जरूरत होती है और इसमें से 20 लाख टन राख निकलती है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि समस्या कितनी बड़ी है, क्योंकि छत्तीसगढ़ 15,000 मेगावॉट बिजली का उत्पादन करता है.
यही वजह है कि फ्लाई-ऐश देशव्यापी समस्या बन चुकी है, क्योंकि जितनी मात्रा में फ्लाई-ऐश निकल रही है, उसका उतनी मात्रा में प्रबंधन नहीं हो पा रहा है, जिससे ये फ्लाई-ऐश पर्यावरण, प्राणी, जीव-जंतु सभी के लिए खतरा बनती जा रही है.
विकराल रूप ले रही समस्या को लेकर बुधवार को शहर में देश-विदेश से आए वैज्ञानिकों, उद्योग जगत के प्रतिनिधियों और गैर सरकारी संगठनों के बीच मंथन हुआ. इस सम्मेलन में जागरण पहल के चैयरमैन एसएम शर्मा भी विशेष रूप से उपस्थित हुए.
‘कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी ग्रुप इंडिया’ द्वारा आयोजित इस सम्मेलन में हिस्सा लेने आए जमशेदपुर स्थित राष्ट्रीय धातु विज्ञान प्रयोगशाला में ऊर्जा एवं पर्यावरण संसाधन के मुख्य वैज्ञानिक संजय कुमार ने बताया कि जमशेदपुर में भारत की पहली जीयोपॉलीमर प्रौद्योगिकी पर आधारित इकाई स्थापित की गई है.
इस इकाई में फ्लाई-ऐश को रासायनिक प्रक्रिया से गुजारकर ईंटें बनाई जा रही हैं. इसे ग्रीन प्रोसेस भी कहा जाता है. इस प्रक्रिया से ईंट बनाने में किसी तरह के सीमेंट या अन्य किसी धातु का इस्तेमाल नहीं हो रहा है और ये ईंटें सामान्य ईंटों से कहीं अधिक मजबूत भी होती हैं.
कोयले से विद्युत उत्पादन के दौरान भारी मात्रा में फ्लाई-ऐश निकलती है. दूसरी ओर दूसरे विशाल उद्योगों से बड़ी मात्रा में फ्लाई-ऐश निकलती है.
सम्मेलन में बताया गया कि फ्लाई-ऐश एक प्रकार का औद्योगिक कचरा है. लेकिन अत्यधिक मात्रा में निकलने के कारण इसे इकट्ठा करके रख पाना मुमकिन नहीं हो पा रहा. इसलिए इसके उत्सर्जन के साथ ही इसका इस्तेमाल ही एक मात्र उपाय है.