मक्खियां में छिपा जीवन का राज
नई दिल्ली | बीबीसी: मक्खियों में मनुष्य के जीवन का वह राज छिपा है जिसे अभी तक खोजा न जा सका है. डार्विन ने जीवन का विकास कैसे हुआ इसकी खोज की थी. जीवन का दूसरा राज डीएनए से खुला कि आखिरकार जीवन में क्या है. जीवन का तीसरा राज मक्कियों के जरिये खुलेगा कि जीन में समानता होने के बावजूद भी मनुष्य तथा मक्खी इतने अलग-अलग क्यों हैं. हालांकि, मक्खियां किसी को पसंद नहीं होतीं. खाने पर बैठें तो उन्हें फ़ौरन भगाया जाता है. शरीर पर बैठें तो उन्हें तुरंत उड़ाया जाता है. उनकी भिनभिनाहट बड़ी चिढ़ पैदा करती है. मगर, जिन मक्खियों से हम इतनी नफ़रत करते हैं, वो इंसान के बड़े काम आती हैं. पिछले सौ सालों में उनके बारे में जितना पता लगाया गया है, उतना ही इंसान को अपने से जुड़े सवालों के जवाब मिले हैं.
मक्खियों की ज़िंदगी कुछ हफ़्तों की होती है. इतना कम ज़िंदा रहने के चलते उन पर रिसर्च करना आसान होता है. तीन चार हफ़्तों में ही मक्खियां दादी-नानी बन जाती हैं. इसलिए उनकी तीन-चार पीढ़ियों पर कुछ ही वक़्त में रिसर्च हो जाती है. उन्हें लैब में निगरानी में रखना आसान होता है. क्योंकि उन्हें रखने, उनके खाने का ख़र्च बहुत कम आता है. औसत तापमान पर एक मक्खी रोज़ 30 से 50 तक अंडे देती है. उनका आकार सिर्फ़ तीन मिलीमीटर का होता है. इसलिए लाखों मक्खियों को छोटी सी जगह में रखा जा सकता है.
जिन मक्खियों को हम नफ़रत से उड़ा देते हैं, उन्होंने विज्ञान की कई नई खोजों की बुनियाद रखी है. 1933 में वैज्ञानिक थॉमस हंट मॉर्गन ने मक्खियों पर अपनी रिसर्च की बदौलत नोबेल पुरस्कार जीता था. उस रिसर्च से ये पता चला था कि हमारे जीन, डीएनए के ज़रिए एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाते हैं.
मक्खी का वैज्ञानिक नाम ‘ड्रॉसोफिला मेलानोग्लैस्टर’ है. 1933 में मॉर्गन के रिसर्च के बाद से ही, मक्खियों पर रिसर्च करके पांच वैज्ञानिक नोबेल पुरस्कार जीत चुके हैं. मक्खियों पर हुए तजुर्बे से ही हमें पता चला है कि हमारा विकास कैसे होता है. हमारे बर्ताव की वजह क्या होती है. हम बूढ़े क्यों होते हैं. आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि इंसानों की 75 फ़ीसद बीमारियों की वजह के जीन मक्खियों में भी पाए जाते हैं.
मक्खियों में चार जोड़े क्रोमोज़ोम होते हैं. क्रोमोज़ोम, हमारे शरीर की कोशिकाओं के अंदर वो चीज़ होती है, जिसमें डीएनए रहता है. यानी हमारी बनावट और हमसे जुड़ा जीव वैज्ञानिक कोड. मक्खियों में कुल 14 हज़ार जीन होते हैं. वहीं इंसानों में 22 हज़ार 500. वही यीस्ट में केवल 5800 जीन होते हैं. इसी से पता चलता है कि मक्खियों से हम कितना नज़दीकी ताल्लुक़ रखते हैं.
हमारे और मक्खी के जीन की बनावट का ये मेल, तमाम तरह के रिसर्च में मददगार होता है. इंसानों से जुड़े तमाम सवालों के जवाब मक्खियों पर रिसर्च करके मिल जाते हैं. शराब की लत कैसे होती है, इसका पता मक्खियों को शराब पिलाकर लगाया गया. हमें नींद क्यों आती है और चाय-कॉफ़ी का नींद पर क्या असर होता है.
इस सवाल का जवाब भी मक्खियों को कॉफ़ी पिलाकर खोजा गया था. हवाई जहाज़ में उड़ने से जो थकान या ‘जेट लैग’ होती है उसकी वजह भी मक्खियों पर तजुर्बा करके खोजी गई थी. आप हैरान होंगे ये जानकर कि मक्खियों को भी हवाई उड़ान से थकान होती है.
दुनिया भर में हज़ारों वैज्ञानिक मक्खियों पर तरह-तरह के तजुर्बे करते हैं. अंतरिक्ष में पहली बार जो कोई जीव भेजा गया था तो वो मक्खियां ही थीं. इस वक़्त धरती के ऊपर मंडरा रहे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर मक्खियों पर रिसर्च के लिए अलग से एक प्रयोगशाला बनी है. मक्खियों पर तजुर्बों से हमें ये पता चलता है कि अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में रहने के दौरान जल्दी क्यों बीमार पड़ते हैं.
ऐसे में सवाल ये भी है कि अगर इंसान और मक्खी में इतनी समानता है तो हमारे बीच इतना फ़र्क़ क्यों है? ब्रिटिश वैज्ञानिक डॉक्टर पीटर लॉरेंस इसका जवाब देते हैं. वो कहते हैं कि ये सवाल, ज़िंदगी का तीसरा राज़ है. जिस पर से पर्दा उठना बाक़ी है.
डॉक्टर पीटर लॉरेंस मानते हैं कि ज़िंदगी का पहला राज़ था धरती पर जीवों के विकास का सिद्धांत, जिसे खोला ब्रिटिश वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन ने.
दूसरा राज़ था डीएनए. जिस पर से पर्दा उठने से पता चला कि कोई जीव कैसे हैं, उनका चेहरा कैसा है, उनका बर्ताव कैसा है. ये सब बातें डीएनए में कोड के तौर पर दर्ज होती हैं.
डॉक्टर पीटर लॉरेंस के मुताबिक़ ज़िंदगी का तीसरा राज़ मक्खियों के ज़रिए ही खुलेगा. हालांकि अभी इसमें वक़्त लग सकता है. वो ये कि हमारे जीन में इतना मेल होने के बावजूद हम मक्खी से इतने अलग क्यों होते हैं. जैसे कि बाघ और तेंदुए में फ़र्क़ कैसे होता है? दरियाई घोड़े और गैंडे में कैसे अंतर पैदा हो जाता है?
दो इंसानों के जीन में ज़्यादा फ़र्क़ नहीं होता. फिर भी हमारा चेहरा, नाक की बनावट, हमारे बालों का अंदाज़ और हमारा बर्ताव बिल्कुल अलग होता है. ये सारे राज़ जीन के अंदर ही छुपे होते हैं. लेकिन अभी इन बातों पर से पर्दा उठना बाक़ी है. इस काम में मक्खी बड़े काम की साबित हो सकती है.
हम रोज़ाना देखते हैं कि बच्चे अपने मां-बाप जैसे दिखते हैं. लेकिन दूसरों से बिल्कुल अलग होते हैं. मगर इसका राज़ क्या है? ये अभी वैज्ञानिकों को पता लगाना है.
जैसे कोई आर्किटेक्ट, इमारत से पहले उसका नक़्शा बनाता है. उसकी दिशा तय करता है. इसी तरह इंसान या किसी और जीव का नक़्शा भी उसके जीन में दर्ज होता है. कोई जीव उसी नक़्शे की बुनियाद पर बनता है. वो नक़्शा कहां छुपा होता है, इसका जवाब मक्खियों से मिल सकता है.
वैज्ञानिकों ने इस बात पर काफ़ी रिसर्च की है कि मक्खियों की अलग-अलग पीढ़ियों में कुछ बदलाव कैसे आ जाते हैं. कुछ के पंख बड़े कैसे हो जाते हैं. इसका राज़ भी उनके जीन में ही छुपा था. जिसे वैज्ञानिकों ने उजागर किया.
मक्खियों के जीन, जिन और जीवों से मिलते हैं, उनसे तुलना करके, उन जीवों के बारे में और जानकारी जुटाने की कोशिश जारी है.
डॉक्टर पीटर लॉरेंस कहते हैं कि अभी ज़िंदगी के कई ऐसे राज़ हैं, जिनका सच सामने आना बाक़ी है. इस काम में मक्खी मददगार साबित हो सकती है.
इसलिये जनाब, अगली बार जब कोई मक्खी आपके खाने पर बैठे, तो उसे इतनी हिक़ारत से मत देखें क्योंकि हमें तथा हमारे वैज्ञानिकों को इसी की मदद से कई खोजें तथा आविष्कार अभी करने हैं.