बांध के नाम पर अरबों रुपये पानी में
लखनऊ।एजेंसी: उत्तर प्रदेश में मानसून के आने से पहले हर साल नदियों पर तटबंध दुरुस्त करने और बांधों के रख-रखाव के लिए अरबों रुपये जारी किए जाते हैं, लेकिन फिर भी तटबंधों के टूट जाने के कारण न सिर्फ हजारों हेक्टेयर फसल जलमग्न हो जाती है, बल्कि लोग अपने घर छोड़ने के लिए भी विवश होते हैं. कुशीनगर में नारायणी नदी के किनारे बने तटबंधों के रखरखाव पर हर साल करोड़ों रुपये खर्च होते हैं, इसके बावजूद हर साल ये तटबंध टूट ही जाते हैं.
नारायणी नदी (बड़ी गंडक) हिमालय के धौलागिरि पर्वत से निकलकर तिब्बत, नेपाल और भारत के हजारों वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को प्रभावित करती है. नेपाल के वाल्मीकिनगर (त्रिवेणी) बैराज के पास भारत में प्रवेश करती है और बिहार के कुछ क्षेत्रों से उत्तर प्रदेश के महराजगंज, कुशीनगर होते हुए पुन: बिहार में प्रवेश कर जाती हैं.
15 जून से 15 अक्टूबर तक बरसात के समय नदी में बाढ़ का खतरा बना रहता है. नदी के तटबंधों की लंबाई नेपाल में 24 किलोमीटर, उत्तर प्रदेश में 106 किलोमीटर और बिहार में 40 किलोमीटर, अर्थात कुल 170 किलोमीटर है. इन तटबंधों की मरम्मत के लिए सरकार हर साल करोड़ों रुपये खर्च करती है.
वर्ष 1968-69 में छितौनी बांध, 1971-72 में नौतार बांध, 1972-73 में रेलवे इक्विपमेंट बांध, 1982 में कटाई भरपुरवा बांध, 1980-81 में सीपी तटबंध बांध, 1980-81 में अमवाखास बांध, 1980-81 में अमवा रिंगबांध का निर्माण कराया गया था.
इसके बाद 1985 के आस-पास पिपरासी रिटायर बांध, अहिरौली-पिपराघाट कट एक और दो, जमींदारी बांध, 1975 में एपी एक्सटेंशन बांध, 1975 में नरवाजोत बांध, 1990-91 में एपी एप्रोच रोड आदि सैकड़ों किलोमीटर लंबे बांध उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से बनवाए गए.
जहां तक खर्च का सवाल है, वर्ष 1968-69 में छितौनी बांध पर 04 करोड़ 68 लाख 82 हजार रुपये, 1971-72 में बने नौतार बांध पर 13 करोड़ रुपये, 1972-73 में बने रेलवे इक्विपमेंट बांध पर 464 लाख रुपये खर्च हुए. इस तरह अन्य बांधों के निर्माण में भी करोड़ों रुपये खर्च हुए.
कुछ वर्ष पहले तक केवल रखरखाव में ही छितौनी बांध पर 84 करोड़ रुपये, नौतार बांध पर 22 करोड़ रुपये और रेलवे बांध पर 66.5 करोड़ रुपये खर्च किए गए. इसी तरह अन्य बांधों के रखरखाव पर अब तक 50 अरब से ज्यादा रुपये खर्च हो चुके हैं.
जाहिर है, यदि सही नीति और नीयत से कार्य हुआ होता तो इतने खर्च में सीमेंट के बांध बना दिए गए होते, जिससे हर साल बाढ़ के खतरे से लोगों को निजात मिल जाती, मगर मिट्टी कार्य करवाकर महज खानापूर्ति की जाती है.
कुशीनगर के सहायक अभियंता उत्कर्ष भारद्वाज का कहना है किनदी अक्सर अपना रुख बदलती रहती है. इसकी धारा बदलने से कटान होता रहता है. ऐसे में सुरक्षा के लिए बांध बनाना पड़ता है. इस काम में धन खर्च होना लाजिमी है.