प्रसंगवश

मरते किसानों के साथ सेल्फी

अखिलेश श्रीवास्तव
11, अशोक रोड स्थित भाजपा दफ्तर में बिछे रेड कारपेट पर शाही अंदाज में कदम बढ़ाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आगे-पीछे उनके सिपहसालार. शूट-बूट में मौजूद सैकड़ों पत्रकार और ‘सरकार’ के साथ सेल्फी खिंचाने की मारामार. छोटे पर्दे पर आधे घंटे का ये एपिसोड रणबीर-दीपिका के बड़े पर्दे पर आए ‘तमाशे’ के एक दिन बाद लाइव प्रसारित किया गया. ‘तमाशा’ देखकर लौटे कुछ लोग फिल्म को इतना बकवास बता रहे हैं कि आप ‘हिम्मतवाला’ देखकर भी अपना मूड फ्रेश कर सकते हैं. ‘सेल्फी का तमाशा’ आयोजित करने वालों और उसमें जाने वालों की हिम्मत की भी दाद देनी होगी.

सेल्फी के लिए आतुर पत्रकार और बेहद खुशनुमा माहौल देखकर कोई इस भ्रम में पड़ सकता है जैसे कि देश की जीडीपी कुंलाचें भर रही है और दिवाली के बाद बुंदेलखंड से लेकर विदर्भ तक हर तरफ हरियाली ही हरियाली है. क्या सचमुच देश में इतने ‘अच्छे दिन’ हैं कि हम सब सरेआम सेल्फियाना हो जाएं?

होली के बाद से बुंदेलखंड में हालात विकराल हैं. पहले खरीफ की फसल चौपट हुई और अब रबी की तो बुआई भी ना हो पाई. पिछले करीब तीस बरस से मैंने वहां के हालात को करीब से देखा है. अकाल और सूखे की बातें मुझे किताबी लगती थीं लेकिन इस बार जो हालात हैं वो भयावह हैं. पहली बार देख रहा हूं कि सूखे के चलते ज्यादातर जमीन बिना बौनी के खाली पड़ी है. खेत ना कोई अधिया-बटिया पर लेने को राजी है और ना ठेके पर. बुंदेलखंड का हर इलाका चाहे वो मध्यप्रदेश का हो या उत्तर प्रदेश का हालात कमोबेश एक जैसे हैं.

यहां के बिगड़ते हालात पर ना तो राज्य सरकारों ने संवेदनशीलता दिखाई और ना केंद्र ने. ललितपुर-झांसी जिलों के कई गांव केवल बूढ़े और अनप्रोडक्टिव लोगों की बस्तियां बनकर रह गए हैं. ज्यादातर जवान लड़के गांव छोड़कर शहर की फैक्ट्रियों में काम करने निकल चुके हैं. शहर की सोसाइटियों में गार्ड बनना उन्हें खेती से ज्यादा फायदे का सौदा नजर आ रहा है. खेत पर दिन-रात मेहनत करने वाले किसान के बेटे अब अपार्टमेंट्स में गार्ड बनकर खुद को मेहनत की आदत से दूर कर रहे हैं. विदर्भ के हालात तो इतने खराब हैं कि किसानों की आत्महत्याओं का आंकड़ा हर महीने नए रिकॉर्ड को छू रहा है.

कुछ एक रिपोर्टों को छोड़ दें तो इन इलाकों के असल हालात से रूबरू कराने वाली रिपोर्टें मीडिया में दिखाई नहीं देती. सूट-बूट वाले पत्रकार अब लगता है महज सरकार के साथ सेल्फी खिंचाने में व्यस्त हैं और स्टूडियो में इनटॉलरेंस पर बहसें कर रहे हैं. दिवाली के बीस रोज बाद भी दिवाली का जश्न मनाया जा रहा है लेकिन बुंदेलखंड और विदर्भ के किसानों की दिवाली भी अंधेरे में बीती और होली भी बेरंग होने जा रही है. स्वराज अभियान के बुंदेलखंड के हालात पर किए हालिया सर्वे के मुताबिक वहां सूखा अब अकाल के कगार पर पहुंच गया है. पिछले महीने 53 प्रतिशत गरीब परिवारों ने दाल नहीं खाई और 69 फीसदी ने दूध नहीं पिया. होली से अब तक 38 प्रतिशत गाँवों से भुखमरी की रिपोर्ट है. 40 फीसदी परिवारों ने अपने पशु बेच दिए और 27 फीसदी किसानों ने अपनी जमीन या तो बेच दी या गिरवी रख दी है.

‘सरकार’ के साथ सालाना मिलन समारोह में पत्रकार वो नहीं कर सकते जो कि उनका असल काम है तो ऐसे आयोजन का औचित्य क्या है. क्या पीएम के साथ सेल्फी और महज शाही भोज? वे देश के हालात और सरकार के कामकाज पर उनका विजन नहीं जान सकते. एक साथ करीब चार सौ पत्रकार जुटे हों और वो केवल सेल्फी खिंचाकर विदा हो लें, इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता. महज अपने ‘मन की बात’ कह देने की वन-वे कम्युनिकेशन की यह शैली पत्रकारों को ठीक उसी तरह नाकारा बनाने की साजिश है जैसे किसान के बेटे का खेती करने के बजाय गार्ड बन जाना.
किसान का बेटा हो सकता मजबूरी में ऐसा कर रहा हो लेकिन पत्रकार साजिशन इसका शिकार हो रहे हैं. कम बोलने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी कभी-कभार खुलेआम पत्रकारों के सवालों की बौछार का सामना करने का साहस दिखाते थे लेकिन संवादप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सवालों का सामना करने के बजाय पत्रकारों को सेल्फी के खेल में उलझा रहे हैं. पत्रकार हैं कि इस साजिश को समझने के बजाय सेल्फियाना हुए जा रहे हैं.

*लेखक अमर उजाला, नई दिल्ली में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार हैं. अमर उजाला से साभार.

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