रमन राज में हर दिन 3 किसान आत्महत्या
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के राज में हर दिन 3 से अधिक किसान आत्महत्या कर रहे थे. नेशनल क्राइम रिसर्च ब्यूरो ने आत्महत्या के जो ताज़ा आंकड़े जारी किये हैं, उसके अनुसार 2016 में खेती किसानी से जुड़े लोगों की आत्महत्या के आंकड़े चौंकाने वाले हैं.
तत्कालीन रमन सिंह की सरकार इन आंकड़ों को झुठलाती रही है. यहां तक कि राज्य सरकार के मंत्री दावा करते रहे हैं कि यह किसानों की आत्महत्या नहीं है, बल्कि लोगों की जान शराब पीने से गई है. ताज़ा आंकड़े भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाले नेशनल क्राइम रिसर्च ब्यूरो ने जारी किये हैं.
नेशनल क्राइम रिसर्च ब्यूरो ने तीन साल की देरी से किसानों की आत्महत्या के आंकड़े जारी किये हैं. जुलाई 2018 में केंद्र सरकार ने लोकसभा में बताया था कि 2016 में भारत में देश भर में 11,370 किसानों ने आत्महत्या की थी. लेकिन सरकार ने कहा था कि ये प्रोविजिनल यानी की अनंतिम आंकड़ा है. अब जा कर कहीं नेशनल क्राइम रिसर्च ब्यूरो ने अंतिम आंकड़े जारी किये हैं.
किसानों की आत्महत्या के अंतिम आंकड़े इससे पहले 2015 में जारी किये गये थे.
नेशनल क्राइम रिसर्च ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 2015 में छत्तीसगढ़ में 6705 लोगों ने आत्महत्या की. इनमें खेती किसानी से जुड़े 1267 लोग शामिल थे. एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2016 में फार्मिंग सेक्टर में कार्यरत 24 महिलाओं समेत 682 लोगों ने आत्महत्या की. वहीं फार्मिंग सेक्टर में कार्यरत किसानों की संख्या 585 थी, जिसमें 13 महिलायें शामिल हैं.
इन आंकड़ों के अनुसार 2016 में आत्महत्या करने वाले खेती-किसानी से जुड़े 416 लोग ऐसे थे, जो अपनी ज़मीन पर खेती कर रहे थे. जबकि 169 लोगों ने दूसरे लोगों से अधिया या बंटाई पर खेती ले रखी थी. 97 लोग ऐसे थे, जो बतौर खेतिहर मज़दूर खेती के काम में जुटे हुये थे.
जब किसानों की आत्महत्या के छुपाये गये आंकड़े
छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनने के बाद से आंकड़ों को देखें तो किसान आत्महत्या की भयावह स्थिति नज़र आती है. छत्तीसगढ़ में 2006 से 2010 के बीच हर साल औसतन 1,555 किसानों ने आत्महत्याएं की हैं. हालत ये है कि भारत सरकार के आंकड़ों के ही अनुसार 2009 में राज्य में किसानों की आत्महत्या के 1,802 मामले दर्ज किये गये. लेकिन जब इन आंकड़ों को लेकर सवाल उठने लगे तो सरकार ने आत्महत्या के कारणों को जानने या उन्हें दूर करने के बजाये आंकड़ों को ही छुपाना शुरु कर दिया.
सरकार अपनी इस कोशिश में कामयाब भी रही और 2011 में भारत सरकार के NCRB ने जो आंकड़े जारी किये, उसमें छत्तीसगढ़ के आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या शून्य पर आ गई. कहां तो एक साल पहले तक हर दिन लगभग चार किसानों की आत्महत्या के आंकड़े सामने आये थे और कहां एक भी किसान की आत्महत्या का नहीं होना चकित करने वाला आंकड़ा था. अगले साल यानी 2012 में यह आंकड़ा चार पर आया. लेकिन 2013 में फिर से राज्य सरकार ने बताया कि राज्य में किसी भी किसान ने आत्महत्या नहीं की है.
हालांकि जब मामला सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर पहुंचा तो छत्तीसगढ़ सरकार के सुर बदल गये. केंद्र सरकार ने 2017 में किसानों से संबंधित एक याचिका की सुनवाई के समय जो आंकड़े पेश किये, उसके अनुसार देश भर में किसानों की आत्महत्या के मामले में छत्तीसगढ़ पांचवें नंबर पर है. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर की पीठ को अपनी रिपोर्ट में बताया कि छत्तीसगढ़ में पिछले साल कुल 954 किसानों ने आत्महत्या की है.
इसी तरह महाराष्ट्र में 4291, कर्नाटक में 1569, तेलंगाना में 1400 और मध्यप्रदेश में 1290 किसानों ने आत्महत्या की थी. इस क्रम में पांचवा नंबर छत्तीसगढ़ का है. लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार ने दूसरे राज्यों की तरह आज तक न तो केंद्र से इस मद में कभी मदद मांगी और ना ही अपने ही आंकड़ों को स्वीकार करते हुये उसे सुलझाने की कोशिश की.