छत्तीसगढ़

किसानों के पुनर्वास अनुदान में भी कटौती

रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में किसानों के पुनर्वास अनुदान पर भी कटौती कर दी गई है.सरकार ने ‘आपसी सहमति से भूमि क्रय नीति 2016’ में बदलाव कर दिया है और ज़मीन के मामले में प्रभावित किसान को अतिरिक्त पुनर्वास अनुदान की रकम पर कैंची चला दी है.

2016 में सरकार ने निर्णय लिया था कि राज्य सरकार किसी की निजी भूमि की अगर खरीदी करेगी तो उसके लिये कलेक्टर दर से लगभग दोगुनी कीमत चुकायेगी. इसके अलावा जमीन के मालिक को बंजर या पड़त ज़मीन के लिये प्रति एकड़ न्यूनतम छह लाख, एक फसली ज़मीन के लिये आठ लाख और दो फसली ज़मीन के लिये कम से कम 10 लाख रुपये का मुआवजा अलग से दिया जायेगा.

सरकार के इस निर्णय के अनुसार ज़मीन के मूल्य निर्धारण के बाद ज़मीन देने वाले प्रत्येक विक्रेता परिवार को पांच लाख रुपए पुनर्वास अनुदान के रूप में अलग से दिया जाता था. 1 अप्रैल 2016 के छत्तीसगढ़ के राज पत्र में इस नीति का प्रकाशन किया गया था.

लेकिन अब राज्य सरकार ने पांच लाख रुपये के पुनर्वास अनुदान में कटौती कर दी है. सड़क, पुल-पुलिया, एनीकट-स्टापडेम अन्य अधोसंरचना निर्माण और विकास परियोजनाओं के लिये किसानों को दिये जाने वाले अतिरिक्त पुनर्वास अनुदान में ‘प्रत्येक विक्रेता परिवार को पांच लाख रुपये पुनर्वास अनुदान के रुप में पृथक से’ देने का प्रावधान था. इसे संशोधित करते हुये सरकार फैसला लिया है कि “प्रत्येक विक्रेता परिवार (खाते) को भूमि मुआवजा के अतिरिक्त पुनर्वास अनुदान के रुप में इतनी राशि प्रदान किया जाये, जो भूमि के मुआवजा का 50 प्रतिशत के बराबर, जो अधिकतम पांच लाख रुपये होगी.”

1 जनवरी 2014 को भी सरकार ने यही नीति लागू की थी. लेकिन बाद में इसमें संशोधन करते हुये प्रत्येक ज़मीन के खाते पर पांच लाख रुपये के पुनर्वास अनुदान का फैसला लिया गया था. यानी ज़मीन का रकबा भले कितना भी हो, पांच लाख रुपये का पुनर्वास अनुदान मिलना तय था.

लेकिन अब भूमि के मुआवजा का 50 प्रतिशत के बराबर की ही रकम किसानों को मिलेगी. अर्थात अगर एक एकड़ पड़त भूमि के लिये छह लाख रुपये का मुआवजा मिलता है तो किसान को पुनर्वास अनुदान के रुप में केवल 3 लाख रुपये की रक़म ही मिलेगी. पहले यह रक़म न्यूनतम 5 लाख रुपये थी.

27 सितंबर को राजस्व एवं आपदा प्रबंधन के संयुक्त सचिव पी निहलानी द्वारा जारी इस संशोधन पत्र को लेकर किसानों में गहरा आक्रोश है.

किसान नेता नंद कश्यप और आनंद मिश्रा ने कहा है कि राज्य सरकार एक के बाद एक ऐसे किसान विरोधी फैसले ले रही है, जिससे किसानों का जीवन संकट में आ गया है. अब सरकार विस्थापित किसानों को भी मुश्किल में डाल रही है. नेताओं ने कहा कि सरकार निजी कंपनी की तरह काम कर रही है और एक लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा छत्तीसगढ़ में खत्म हो चुकी है.

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