छत्तीसगढ़ में फर्जी आदिवासी बन नौकरी, कोई कार्रवाही नहीं
रायपुर | संवाददाता : छत्तीसगढ़ में फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी करने वालों के ख़िलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है.राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग ने सामान्य प्रशासन विभाग को पत्र लिख कर ऐसे मामलों में दोषियों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करने और वसूली के लिए भी अनुरोध किया है.
ऐसे सैकड़ों मामले सामने आए हैं, जिसमें अनुसूचित जनजाति का फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर लोगों ने सरकारी नौकरी हथिया ली या स्थानीय निकाय में जगह बना ली. लेकिन जांच रिपोर्ट के बाद भी इनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है.
छत्तीसगढ़ अनुसूचित जनजाति आयोग ने राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग को पत्र लिख कर अफसोस जताया है कि अनेक व्यक्तियों के जाति प्रमाण पत्र उच्च स्तरीय छानबीन समिति द्वारा निरस्त किया जा चुका है तथा संबंधित विभाग, संस्था को नियमानुसार कार्यवाही करने हेतु लिखा गया है किंतु राज्य शासन के अनेक विभाग एवं स्थानीय निकाय, संस्थाओं द्वारा ऐसे व्यक्तियों के विरुद्ध कोई भी कार्यवाही नहीं की जाती है.
आयोग ने अपने पत्र में कहा है कि 2012-13 में सामाजिक प्रास्थिति प्रमाण पत्र जारी करने तथा निरस्त करने आदि के संबंध में कार्यवाही के निर्देश दिए गये हैं. जिसका पालन नहीं हो रहा है. आयोग ने इस मामले में राज्य के समस्त विभागों और सभी कलेक्टरों को आवश्यक दिशा निर्देश जारी करने का अनुरोध किया है.
छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में ऐसे मामले सामने आये हैं, जिसमें लोगों ने अनुसूचित जनजाति के फर्ज़ी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर सरकारी नौकरी हासिल कर ली थी. कुछ लोगों स्थानीय निकाय में निर्वाचित हुए थे.
इसके बाद राज्य सरकार ने हाई पावर कमेटी बना कर फर्जी जाति प्रमाण पत्र की जांच के निर्देश दिए थे.
इस हाई पावर कमेटी को आदिवासी होने का फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी करने या निर्वाचित होने वालों से संबंधित पिछले 20 सालों के 758 मामले मिले थे. इनमें से 659 मामलों की जांच के बाद हाई पावर कमेटी ने पाया कि कम से कम 267 मामलों में नौकरी के लिए फर्जी जाति प्रमाण पत्र का उपयोग किया गया था.
इसके बाद हाई पावर कमेटी ने इन मामलों को संबंधित विभागों में भेज दिया. लेकिन इनमें से कई मामले अभी हाईकोर्ट में अटके हुए हैं और हाईकोर्ट के स्टे के कारण केवल एक मामले में एक सरकारी कर्मचारी को बर्खास्त किया गया है. जबकि कई मामलों में राज्य सरकार के विभाग ने ही चुप्पी साध ली है.