फैक्ट फाइंडिंग टीम का दावा-बस्तर में हर 9 नागरिक पर 1 सुरक्षाकर्मी
रायपुर | संवाददाता: बस्तर की ताज़ा स्थिति को लेकर गठित एक फैक्ट फाइंडिंग टीम ने कहा है कि बस्तर देश के सबसे अधिक सैन्यीकृत क्षेत्रों में से एक है, जहां हर नौ नागरिकों पर एक सुरक्षाकर्मी है. इस नागरिक समूह ने आरोप लगाया है कि बस्तर विकास के नाम पर बनाई जाने वाली सड़कें, खनन सुविधाओं के लिए बनाई गई हैं.
‘सुरक्षा और असुरक्षा, बस्तर संभाग, छत्तीसगढ़, 2023–2024’ नाम से दिल्ली प्रेस क्लब में जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरा बस्तर संभाग एक विशाल छावनी में बदल गया है. पिछले कुछ सालों में छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में आदिवासी समुदायों द्वारा अपनी ज़मीन पर सुरक्षा कैंपों की स्थापना के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं. सुकमा जिले के सिलगेर जैसे कुछ मामलों में ये विरोध प्रदर्शन तीन साल से भी ज़्यादा समय से जारी हैं.
रिपोर्ट के साथ जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि सरकार का दावा है कि ‘क्षेत्रीय वर्चस्व’ सुनिश्चित करने और माओवादी आंदोलन के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए कैंपों की स्थापना आवश्यक है. सरकार के अनुसार अर्धसैनिक कैंप सड़कें बिछाने, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र और मतदान केंद्र बनाने के लिए आवश्यक हैं, जो सभी राज्य सेवाओं के लिए आवश्यक हैं. वे यह भी दावा करते हैं कि कैंपों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन ‘माओवादियों द्वारा उकसाया गया’ है क्योंकि वे सुरक्षा बलों की घुसपैठ से घबराए हुए हैं. फरवरी 2023 में चिंतित नागरिकों का एक समूह इस क्षेत्र का दौरा करने और दावों और प्रतिदावों की जांच करने के लिए एक साथ आया था.
जांच टीम का दावा है कि कैंप आदिवासियों की निजी या सामुदायिक संपत्ति पर उनकी सहमति के बिना और पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा), अनुसूचित जनजाति (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 और पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों का गंभीर उल्लंघन में स्थापित किए गए हैं. कैंपों के आस-पास के इलाकों में मानवाधिकारों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन होता है. सुरक्षा बलों द्वारा उत्पीड़न आम बात हो गई है. यहां तक कि साप्ताहिक बाज़ार, जो समुदायों के लिए जीवन रेखा है, और रोज़ की ज़रूरतों की सामग्री की खरीदारी भी निगरानी और पुलिस नियंत्रण के अधीन है.
इस फैक्ट फाइंडिंग टीम ने कहा है कि आम नागरिक सड़कों के निर्माण के खिलाफ़ नहीं हैं, लेकिन यह उनका संवैधानिक अधिकार है कि उनसे यह सलाह ली जाए कि ये सड़कें कैसे और कहाँ बनाई जा रही हैं. सड़कों का लेआउट और चौड़ाई कई मामलों में यह स्पष्ट करती है कि वे खनन कार्यों को सुविधाजनक बनाने के लिए बनाई गई हैं. एक तरफ तो कैंप और सड़कें लोगों की सहमति के बिना बनाई जा रही हैं. वहीं दूसरी तरफ 2022 तक बस्तर क्षेत्र में 51 खनन पट्टे दिए गए हैं, जिनमें से केवल 14 सार्वजनिक क्षेत्र के पास हैं.
विज्ञप्ति में कहा गया है कि क्षेत्र में कैंपों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ गिरफ़्तारियां भी बढ़ी हैं. लोगों को माओवादी आरोपों के तहत फंसाना उनकी वैध संवैधानिक मांगों को दबाने का एक आसान तरीका है. आधिकारिक आंकड़ों के आधार पर, 2011 से 2022 तक बस्तर क्षेत्र में 6,804 गिरफ़्तारियाँ की गई हैं. कैंपों और जिला रिजर्व गार्ड जैसे बलों की मौजूदगी के कररण कथित नक्सलियों और नागरिकों की न्यायेतर हत्याओं की घटनाओं/फ़र्ज़ी मुठभेड़ों में वृद्धि देखी गई है. 1 जनवरी से 15 जुलाई 2024 के बीच 141 हत्याएँ हुई हैं.
विज्ञप्ति के अनुसार बस्तर और अन्य आदिवासी इलाकों में अर्धसैनिक कैंपों के व्यापक निर्माण ने स्थानीय आदिवासियों के जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है . शांतिपूर्ण होने के बावजूद, कैंपों के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों को नज़रअंदाज़ किया गया है, या इससे भी बदतर, लाठीचार्ज से लेकर स्थलों को जलाने और प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी करने जैसे क्रूर तरीकों का इस्तेमाल करके उन्हें दबाने की कोशिश की गयी है. यह बहुत स्पष्ट है कि शिविरों का वास्तविक उद्देश्य आदिवासियों के जीवन और संवैधानिक अधिकारों की कीमत पर कॉर्पोरेट हितों, विशेष रूप से खनन हितों की रक्षा करना और उन्हें बढ़ावा देना है.
विज्ञप्ति में कहा गया है कि समय की मांग है कि कानून के प्रति सम्मान हो, मानवाधिकार उल्लंघनों का अंत हो, पेसा अधिनियम, वनाधिकार क़ानून 2006, पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों को अक्षरशः लागू किया जाए, लोगों की शिकायतों पर गंभीरता से ध्यान दिया जाए और लोगों की सहमति के बिना स्थापित कैंपों को हटाने के लिए एक निश्चित समय सीमा तय की जाए.
इस फैक्ट फाइंडिंग टीम में बेला भाटिया, लिंगराज आज़ाद, मालिनी सुब्रमण्यम, नंदिनी सुंदर, नोह्रत मांडवी, पूजा, राहुल बेदी, रामकुमार दर्रो, शरण्या नायक, शुभजीत बनर्जी, वीएस कृष्णा और वर्जिनियस खाखा शामिल थे.