राममोहन कहते थे-आदिवासियों को हक दो
रायपुर | संवाददाता: सीमा सुरक्षा बल के पूर्व महानिदेशक ई एन राममोहन हमेशा कहते थे कि आदिवासियों को हक दे दिया जाये तो माओवाद खत्म हो जायेगा. वे एक ऐसे आईपीएस अधिकारी थे, जिन्होंने पूर्वोत्तर से लेकर कश्मीर तक स्थानीय लोगों के बीच अपनी विशिष्ट पहचान बनाई थी. 2010 में बस्तर में सीआरपीएफ के 76 जवानों की माओवादी हमले में मौत के मामले की जांच के लिये केंद्र सरकार द्वारा ईएन राममोहन को ही नियुक्त किया गया था.
1965 बैच के आईपीएस ई एन राममोहन का 77 वर्ष की उम्र में रविवार को दिल्ली में निधन हो गया. पिछले महीने वे फिसल कर गिर पड़े थे, जिनसे उनकी पसलियां टूट गई थीं. इसके अलावा वे प्रोस्टेट कैंसर से भी जूझ रहे थे. लगभग दस दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहने के बाद उनका निधन हो गया.
मूलतः केरल के रहने वाले राममोहन फौज में जाना चाहते थे लेकिन अकेली संतान होने के कारण परिवार के लोग इसके लिये तैयार नहीं हुये. अंततः राममोहन ने सिविल सर्विसेस की परीक्षा दी और बतौर आईपीएस उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की. उन्होंने पूर्वोत्तर से लेकर कश्मीर तक काम किया और वे 1997 से 2000 तक सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक भी रहे. यह भी एक दुखद प्रसंग है कि उन्होंने फौज में शामिल होने के अपने सपने को मरने नहीं दिया और अपने इकलौते बेटे को फ़ौज में भेजा. लेकिन अगस्त 2008 में चीता हेलिकॉप्टर की दुर्घटना में राममोहन के एकलौते बेटे का निधन हो गया.
A legend hangs his boots forever….
Shri E N Rammohan, former Director General Border Security Force, left for heavenly abode today.
Prahari Pariwar prays that he rests in peace 🙏 pic.twitter.com/n5o9wmHTHC
— BSF (@BSF_India) April 8, 2018
पूर्व महानिदेशक के निधन पर भारतीय पुलिस सेवा एसोसिएशन ने भी अपने ट्विटर हैंडल पर शोक जताते हुए कहा कि, ‘हमने अपने समय के अनुभवी और आदर्श आईपीएस ऑफिसर और बीएसएफ के पूर्व महानिदेशक ई एन राममोहन के निधन के बाद काफी दुखी मन से अंतिम विदाई दी. उन्होंने पुलिस विभाग में काफी नैसर्गिक योगदान दिया. हमेशा घुसपैठ के मामलों से सख्ती से निपटने और राजनीति से दूर रहने के पक्षधर रहे.’
With profound grief, we bid adieu to one of the legendary IPS officers of our times, former DGP of @BSF_India Sri EN Rammohan. He made sterling contributions to policing; vigorously advocated for professional handling of Insurgency, & leaving politics out of it. Salutes. RIP Sir! pic.twitter.com/KtpcyQ9xxI
— IPS Association (@IPS_Association) April 8, 2018
मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनरैड संगमा ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए एक ट्वीट में कहा, ‘राममोहन के निधन से दुखी हूं.’
सीजी खबर से एक लंबी बातचीत में उन्होंने कहा था कि सरकारें अवैध तरीके से चल रही हैं, इसलिये आदिवासियों में आक्रोश है. इस आक्रोश को माओवादी हवा दे रहे हैं. लोकतंत्र को धरातल पर अगर लागू किया जाये तो माओवादियों को पनपने की जगह नहीं मिलेगी.
राममोहन ने कहा था कि भारतीय संविधान में ‘पांचवी अनुसूची’ का प्रावधान है, जिसके तहत आदिवासी बहुल इलाकों में राज्यपाल को शासन का अधिकार है. लेकिन आज तक कभी भी किसी भी राज्यपाल ने संविधान के इस हक़ का पालन ही नहीं किया. उन्होंने कहा था कि आदिवासी परिषद बना कर आदिवासी बहुल इलाके में सत्ता चलाई जाती तो स्थितियां दूसरी होती. जल, जंगल, ज़मीन पर आदिवासी का हक़ होता. उनकी ज़मीन से निकलने वाले खनिज से उन्हें लाभ मिलता. लेकिन स्थितियां दूसरी हैं. आदिवासी अपनी ही ज़मीन से खदेड़े जा रहे हैं.
राममोहन ने कहा था कि संविधान में बहुत साफ साफ लिखा है कि पांचवीं अनुसूची के इलाके में राज्यपाल का शासन होगा. लेकिन पद पर बने रहने के कारण कोई भी राज्यपाल इस विषय को छूने से भी कतराता है. यह लोकतंत्र के हक़ में नहीं है.
छत्तीसगढ़ के पूर्व राज्यपाल केएम सेठ का उदाहरण देते हुये राममोहन ने कहा था कि राज्यपाल सेठ के साथ मेरे अच्छे संबंध रहे हैं और वे ईमानदार माने जाते हैं. उन्हें मैंने पांचवीं अनुसूची के बारे में समझाने की कोशिश की तो उन्होंने अपने क़ानूनी सलाहकार का हवाला दे कर कुछ भी करने से इंकार कर दिया. राममोहन ने कहा- सरकार को लूट की छूट दे कर आदिवासी हितों की रक्षा का अगर आप ढोंग करेंगे तो इससे लोकतंत्र कमज़ोर ही होगा.
माओवादियों की राजनीति का विरोध करने वाले राममोहन का कहना था है कि यह दुर्भाग्य है कि बस्तर के इलाके में किसी ने आदिवासियों की समझने जानने की कोशिश ही नहीं की. उन्हें माओवादियों ने हाथ दिया और वे माओवादियों के साथ खड़े हो गये. यह हमारी सबसे बड़ी विफलता है.