नीरव मोदी घोटाला पर पीएम मोदी को लिखी थी चिट्ठी
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के असली लड़ाके इसके खिलाफ आवाज उठाने वाले यानी व्हिसल ब्लोअर्स हैं. नीरव मोदी और उनके साथियों द्वारा बैंक के साथ 11,400 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के मामले में व्हिसल ब्लोअर की भूमिका को नजरंदाज किया जा रहा है. 2016 में बेंगलुरु के हरि प्रसाद ने प्रधानमंत्री कार्यालय और कंपनी रजिस्ट्रार को नीरव मोदी के पार्टनर और गीतांजली जेम्स के मालिक मेहुल चोकसी द्वारा की जा रही गड़बड़ियों को लेकर आगाह किया था. इसके बावजूद चोकसी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और चोकसी का नाम तब सार्वजनिक हुआ जब प्रसाद ने खुद के द्वारा पहले ही दी गई चेतावनी के बारे में मीडिया से बातचीत की.
सरकारी अधिकारी इन चेतावनियों को गंभीरता से नहीं लेते. यह कोई नई बात नहीं है. 2003 में युवा इंजीनियर सत्येंद्र दुबे ने स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना की गड़बड़ियों का सवाल उठाया था. बाद में उनकी हत्या कर दी गई. तब से लेकर अब तक कई व्हिसल ब्लोअर्स की हत्या हुई है. कई लोगों पर हमले हुए हैं और बहुतों को धमकियां मिली हैं. जब ये घटनाएं होती हैं तो मीडिया में आती हैं और बाद में गायब हो जाती हैं.
लोकसभा ने 2014 में ही व्हिसल ब्लोअर्स सुरक्षा कानून पारित कर दिया था. लेकिन यह अब तक लागू नहीं हुआ. 2015 में इसे संशोधित करके नरेंद्र मोदी सरकार ने पेश किया. इसमें कई महत्वपूर्ण प्रावधानों को कम प्रभावी कर दिया गया है. यह हैरान करने वाला है. क्योंकि यह सरकार हमेशा भ्रष्टाचार का विरोध करते दिखती है और कई बार व्हिसल ब्लोअर्स की भूमिका को महत्वपूर्ण बता चुकी है. 2015 में उस समय के वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने राज्यसभा में कहा था कि व्हिसल ब्लोअर्स द्वारा दी गई सूचनाओं के आधार पर सरकार काले धन के खिलाफ कार्रवाई करने जा रही है.
इसके बावजूद संशोधित कानून में व्हिसल ब्लोअर्स को आधिकारिक गोपनीयता कानून से बचाने का कोई प्रावधान नहीं है. इसमें कहा गया है कि राज्य की संप्रभुता, एकता, सुरक्षा और आर्थिक हितों को प्रभावित करने वाली सूचनाओं की जांच नहीं होगी और इन्हें तब तक सार्वजनिक नहीं किया जा सकता जब तक सूचना के अधिकार कानून के तहत ऐसा करने का निर्देश नहीं हो. इसमें बौद्धिक संपदा और ट्रेड सिक्रेट को भी शामिल किया गया है. सूचना का अधिकार कानून की धारा 8.1 के तहत गोपनीयता कानून का हवाला देकर इन सूचनाओं को सार्वजनिक नहीं किए जाने का प्रावधान है. इसके अलावा इसमें यह भी है कि वैसी सूचनाओं को भी सार्वजनिक नहीं किया जा सकता जिसे अदालत सार्वजनिक करने से प्रतिबंधित कर दे, जिससे किसी व्यक्ति को खतरा हो, जो कैबिनेट बैठक से जुड़ी हों या फिर जो संसद और विधानसभाओं के विशेषाधिकार से संबंधित हों.
यूरोप में इस बारे में एक रिपोर्ट आई है. इसमें कहा गया है कि यूरोप में व्हिसल ब्लोअर्स को कानूनी सुरक्षा कम है और इससे नागरिकों, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण का नुकसान हो रहा है. इसमें यह भी कहा गया है कि अगर इन कमियों को दूर नहीं किया गया तो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के अहम साझेदार ‘जनता’ को हम इस लड़ाई में अपने साथ नहीं बनाए रख पाएंगे. भारत में सरकारी और कॉरपोरेट भ्रष्टाचारों का उजागर करने का अधिकांश काम व्हिसल ब्लोअर्स और आरटीआई कार्यकर्ताओं ने किया है.
कई ईमानदार अधिकारियों और पुलिसकर्मियों ने अपनी जान जोखिम में डालकर कई जानकारियों को सामने लाया. गुजरात के पुलिस अधिकार संजीव भट्ट इनमें एक हैं. भारतीय वन सेवा के अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने हरियाण में पोस्टिंग में गड़बड़ियों को उजागर किया और साथ ही उन्होंने दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में चल रही अनियमितताओं को भी सामने लाया. कॉरपोरेट जगत में भी भ्रष्टाचार है. कई कंपनियों में व्हिसल ब्लोअर्स की सुरक्षा की नीति है. हालांकि, इनका कितना पालन होता है, यह कहना मुश्किल है. हालिया मामला एक विमानन कंपनी का है. जहां एक कर्मचारी ने वह वीडियो सार्वजनिक कर दी जिसमें दूसरा कर्मचारी एक यात्री को पीट रहा था. वीडियो सार्वजनिक करने वाले कर्मचारी को कंपनी ने निकाल दिया. इससे पता चलता है कंपनियां भी इन नीतियों का पालन नहीं करतीं.
सूचना का अधिकार के जो ड्राफ्ट नियम 2017 में तैयार हुए हैं, उसमें लिखा है कि अगर किसी मामले में अपील केंद्रीय सूचना आयोग के पास है और इस बीच आवेदक की मौत हो जाती है तो वह सूचना नहीं दी जाएगी. आरटीआई कार्यकर्ताओं ने इसे खतरनाक प्रावधान बताया है. देश भर में अब तक 65 आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है. कई कार्यकर्ताओं पर हिंसक हमले हुए हैं.
भारतीय न्याय व्यवस्था में गवाहों की सुरक्षा की भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं है. विधि आयोग, राष्ट्रीय पुलिस आयोग और मलिमथ समिति ने इस बारे में सिफारिशें की थीं लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ. सुनवाई के वक्त गवाहों का मुकर जाना बेहद आम है. मध्य प्रदेश के व्यापम मामले में, गुजरात के बेस्ट बेकरी मामले में, नई दिल्ली के जेसिका लाल मामले में और हाल ही में मुंबई में सोहराबुद्दीन शेख मामले में यह हुआ.
अगर सरकार भ्रष्टाचार खत्म करने और इसे उजागर करने वालों को सुरक्षा देने के मामले में गंभीर है तो उसे तीन बातों पर ध्यान देना होगा- व्हिसल ब्लोअर्स की सुरक्षा, गवाहों की सुरक्षा और आरटीआई कार्यकर्ताओं की सुरक्षा. निजी कंपनियों के कर्मचारी, सरकारी कर्मचारी या जागरूक आम लोग भी वाॅचडाॅग का काम कर सकते हैं. अगर कोई भी सरकार भ्रष्टाचार और अन्याय से लड़ना चाहती है तो उसे इन पब्लिक हीरो की सुरक्षा करनी ही चाहिए.
1966 से प्रकाशित इकॉनामिक एंड पॉलिटिकल वीकली के नये अंक का संपादकीय